देहरादून/दिल्लीःउत्तराखंड के उत्तरकाशी में कथित 'लव जिहाद' के मामले में 15 जून को होने वाली महापंचायत का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट व गृह मंत्री अमित शाह तक पहुंच गया है. हिंदू संगठनों ने 15 जून को पुरोला में महापंचायत बुलाई है. लेकिन दूसरी तरफ हिंदू संगठनों द्वारा प्रस्तावित महापंचायत के संबंध में दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद झा और अशोक वाजपेयी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. याचिका में दोनों प्रोफेसरों ने सुप्रीम कोर्ट से महापंचायत पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है. वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद मौलाना महमूद असद मदनी ने गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर मामले का संज्ञान लेने की अपील की है.
प्रोफेसर अपूर्वानंद झा और अशोक वाजपेयी ने याचिका में उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से भी महापंचायत पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है. उन्होंने याचिका में कहा है कि महापंचायत होने पर सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा मिल सकता है. दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के निष्कासन की खुली धमकी पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए जमीयत उलमा-ए-हिंद मौलाना महमूद असद मदनी ने गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर विभाजन फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आग्रह किया.
विभाजनकारी ताकतों पर कार्रवाई हो: उन्होंने पत्र में लिखा, 'मैं आपसे 15 जून 2023 को होने वाले कार्यक्रम (महापंचायत) को रोकने का अनुरोध करता हूं, जिससे राज्य में सांप्रदायिक संघर्ष हो सकता है और हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच खाई और बढ़ सकती है. मैं आपसे न केवल व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करने और आवश्यक आदेश जारी करने का अनुरोध करता हूं.
पत्र में धर्म संसद का किया जिक्र: सरकार और उसकी एजेंसियों की निष्क्रियता को दोष देते हुए, मदनी ने कहा कि इसने केवल 'इस गंभीर सांप्रदायिक स्थिति को बढ़ा दिया है'. उन्होंने याद दिलाया कि यह उत्तराखंड की धरती है जहां कुछ साम्प्रदायिक तत्वों ने 'धर्म संसद' आयोजित कर मुसलमानों का नरसंहार करने की धमकी दी थी. पिछले साल उत्तराखंड में प्रमुख धार्मिक नेताओं, दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं, कट्टरपंथियों और हिंदुत्व संगठनों का एक विशाल संग्रह मुसलमानों के खिलाफ अभद्र भाषा और हिंसा के असाधारण प्रदर्शन के लिए एक साथ आया था।
सांप्रदायिक सद्भाव खतरे में: मदनी ने कहा, 'जिन लोगों ने एक साल पहले इन कार्यक्रमों का आयोजन किया था, वे न केवल कानून की पहुंच से बाहर हैं, बल्कि वे इस मौजूदा घटना में नफरत फैलाने वालों और डराने वालों में भी शामिल हैं.' उन्होंने आगे कहा, 'वे खुलेआम पोस्टर लगा रहे हैं और वीडियो जारी कर रहे हैं और दुर्भाग्य से स्थानीय पुलिस केवल तमाशबीन बनकर खड़ी है. राज्य में बढ़ता इस्लामोफोबिया और सांप्रदायिकता समाज को विभाजित कर रहा है और सांप्रदायिक सद्भाव को खत्म कर रहा हैं.'
उन्होंने कहा, 'यहां यह ध्यान रखना उचित है कि उत्तराखंड की पवित्र भूमि से कथित रूप से 'अवैध' मुस्लिम दुकानदारों और विक्रेताओं को बाहर निकालने के लिए हिंदुत्व की भीड़ द्वारा हाल ही में चलाए गए अभियान की पृष्ठभूमि में घृणा फैलाने वाले भाषणों और अतिसतर्कता के उदाहरण सामने आए हैं'.
ये है पूरा मामलाः 26 मई को उत्तरकाशी के पुरोला में मुस्लिम युवक उबैद द्वारा अपने दोस्त जितेंद्र सैनी के साथ मिलकर एक हिंदू नाबालिग लड़की को भगाने की कोशिश की थी. हालांकि, स्थानीय लोगों ने ऐसा होने नहीं दिया और दोनों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया. दोनों आरोपी यूपी नजीबाबाद के रहने वाले हैं जबकि पुरोला में रजाई और गद्दे की दुकान पर काम करते थे. इस घटना के बाद उत्तरकाशी जिले में हिंदू संगठनों ने मुस्लिम समुदाय और बाहरी व्यापारियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और 15 जून से पहले अपने घर और दुकानों को छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया. चेतावनी के बाद जिले के कई मुस्लिम समुदाय व्यापारी जिले से पलायन कर चुके हैं.
ये भी पढ़ेंःउत्तराखंड के पुरोला में धारा 144 लागू करने की तैयारी, महापंचायत को लेकर बैकफुट पर प्रधान संगठन