पटना : देश की आजादी में तरियानी के छपरा गांव का योगदान अविस्मरणीय है. इस गांव के 11 लोगों ने आजादी की लड़ाई में कुर्बानी दी थी. जन सहयोग से यहां शहीदों की याद में शहीद स्मारक बनाया गया. कई सरकारें आयीं और चली गयीं, लेकिन किसी ने इसकी सुध नहीं ली. इस कारण स्थानीय लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश है.
भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए देश के कई वीर सपूतों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी, जिसमें पूर्व का सीतामढ़ी और वर्तमान शिवहर जिले का तरियानी छपरा गांव ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस गांव के 11 वीर सपूत 30 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों की गोली से शहीद हुए थे. इस बलिदान और त्याग को लेकर इस गांव के लोग बेहद गौरवान्वित महसूस करते हैं.
'एक ही गांव के 11 लोगों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. लेकिन, इसके बावजूद सरकार की ओर से इन शहीदों की याद को सहेजने के लिए आज तक कोई प्रयास नहीं किया गया, जो बेहद ही शर्मनाक और दुखद है.'
इन लोगों ने दी थी शहादत
शहीदों के वंशज और जानकारों का कहना है कि 30 अगस्त 1942 की शाम अंग्रेज पूरी तैयारी के साथ बेलसंड के रास्ते बागमती नदी को पार कर तरियानी छपरा गांव पहुंचे और वहां मौजूद आंदोलनकारी के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें छपरा गांव निवासी नवजद सिंह, भूपन सिंह, जय मंगल सिंह, परसन साह, बुधन महतो, बलदेव साह, सुखदेव सिंह, सुंदर राम, बंसी दास और छठु साह शहीद हो गए थे. जबकि, श्याम नंदन सिंह को झूठे मुकदमे में फंसाकर बक्सर सेंट्रल जेल भेज दिया गया था. जहां वह अनशन करते हुए 32वें दिन शहीद हो गए थे. जानकारों का कहना है कि जिन 10 लोगों को गोली मारी गई थी. उसमें से 9 लोग घटनास्थल पर ही शहीद हो गए थे. जबकि बुधन महतो 2 सितंबर 1942 को शहीद हुए थे.