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एसडीएम ज्योति मौर्या केस में पुलिस ने नहीं लिया एक्शन, इसलिए बढ़ी इतनी टेंशन

पीसीएस अधिकारी ज्योति मौर्या के केस में प्रयागराज पुलिस की बड़ी चूक सामने निकल कर आ रही है. पुलिस ने सात मई को दर्ज कराई गई एफआईआर को बहुत ही सतही तरीके से हैंडल किया. नतीजतन एक महिला प्रशासनिक अधिकारी को अनचाही फजीहत झेलनी पड़ रही है.

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Published : Jul 12, 2023, 7:22 PM IST

लखनऊ :वर्ष 2015 बैच की पीसीएस अधिकारी ज्योति मौर्या ने प्रयागराज के धूमनगंज थाने में 7 मई को आईटी एक्ट व दहेज हिंसा की धारा में एफआईआर दर्ज कराई थी. आरोप था कि उनके पति आलोक मौर्य ने उनका व्हाट्सएप हैक किया और उनके व्यक्तिगत चैट और ऑडियो सोशल मीडिया में वायरल किए. हालांकि तब तक एक दो ही चैट और ऑडियो बाहर आए थे, लेकिन बीते ढाई माह में प्रयागराज पुलिस की शिथिलता के चलते ज्योति मौर्या से जुड़े दर्जनों ऑडियो सोशल मीडिया में वायरल हो गए. इनमें कई आपत्तिजनक बातचीत भी शामिल हैं. ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि ज्योति मौर्या की एफआईआर में आखिर पुलिस ने ऐसी क्या कार्रवाई की थी कि ऑडियो वायरल न होने के बजाए दो गुनी रफ्तार उसे उन्हें वायरल किया जाने लगा.

एसडीएम ज्योति मौर्या केस में पुलिस की लापरवाही.

एसडीएम ज्योति मौर्या प्रकरण में उनके कथित पुरुष मित्र होमगार्ड कमांडेंट मनीष दुबे के खिलाफ हुई विभागीय जांच में उन्हे दोषी पाया गया है. डीजी होमगार्ड ने शासन को रिपोर्ट सौंपते हुए विभागीय कार्रवाई और निलंबन करने की सिफारिश भी कर दी है. वहीं बीते दिनों ज्योति मौर्या को भी लोक भवन में तलब किया गया था. जहां ज्योति मौर्या ने शासन के सामने अपनी सफाई पेश की थी. इसके अलावा इस प्रकरण को सभी के सामने लाने वाले ज्योति मौर्या के पति आलोक मौर्य भी प्रयागराज पारिवारिक न्यायालय में केस लड़ रहे हैं. हालांकि इस बीच उस असल मुद्दे पर न ही किसी प्रकार की चर्चा हो रही है और न ही नजर ही गई.

प्रयागराज पुलिस का जवाब.




पत्नी की कॉल रिकॉर्डिंग वायरल करने का हक नहीं

पूर्व पुलिस अधिकारी ज्ञान प्रकाश चतुर्वेदी कहते हैं कि झगड़ा दोस्तों में हो, पति-पत्नी या भाइयों में किसी भी पक्ष को कानून यह हक नहीं देता कि आप किसी भी चीज को सोशल मीडिया में वायरल करेंगे. खासकर महिला की निजता का हनन तो कर ही नहीं सकते. इस केस में आलोक मौर्य सभी तस्वीरों और रिकॉडिंग विवेचक या कोर्ट को सौंप सकते थे, लेकिन उन्होंने सोशल मीडिया में वायरल किया जो गैर कानूनी है. जब दो माह पहले ही एफआईआर दर्ज हो चुकी थी. ऐसे में सवाल विवेचक पर भी उठता है कि उन्होंने इन दो महीनों में क्या किया. क्या उन्होंने आरोपी आलोक मौर्य को कुछ भी सामग्री वायरल न करने की हिदायत दी, क्या आरोपी के मोबाइल की जांच करवाई. यदि ऐसा नहीं तो इसमें विवेचक को भी हीलाहवाली है.

ज्योति मौर्या की FIR पर हुई नहीं सही दिशा में जांच


यूपी पुलिस के साइबर सलाहकार अमित दुबे कहते हैं कि ज्योति मौर्या एक पीसीएस अधिकारी हैं, यानी सरकार का एक हिस्सा. ऐसे में निसंदेह तस्वीरें और ऑडियो रिकॉर्डिंग वायरल होने पर एक सिस्टम की जग हंसाई हुई है. कानून किसी की भी आइडेंटिटी भंग करने का अधिकार नहीं देता है, लेकिन ज्योति के मामले में ऐसा हुआ है. पुलिस को इस मामले में ज्योति मौर्या और आरोपी आलोक मौर्य के मोबाइल फोन को फोरेंसिक भेजना चाहिए था, जिससे पता लगाया जा सके कि व्हाट्सएप और फोन कैसे हैक हुआ और तस्वीरें वायरल कैसे की गईं, लेकिन शायद ऐसा नहीं हुआ. लिहाजा सोशल मीडिया में सामग्री इन ढाई माह में वायरल होती गईं. पुलिस ने इस मामले को महज पति-पत्नी के झगड़े के तौर पर देखा. नतीजन न चाहते हुए वे लोग भी आईटी एक्ट 67c के तहत दोषी हो गए. जिन्होंने ज्योति मौर्या की फोटो, ऑडियो और व्हाट्सएप चैट सोशल मीडिया में पोस्ट की हैं.



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