नई दिल्ली : 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आज का दिन पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए बहुत खास रहा. दोनों गठबंधनों ने अपने-अपने घटक दलों की बैठक की. यूपीए, जिसका नाम अब इंडिया रख दिया गया है, उनके पास 26 दल हैं, तो एनडीए के पास 38 दल हैं. हालांकि, अभी भी तस्वीर पूरी तरह से साफ नहीं हुई है. कुछ दल ऐसे हैं, जिन्होंने अभी तक निर्णय नहीं लिया है, और ये दल अपने-अपने राज्यों में काफी मायने रखते हैं. आप ये भी कह सकते हैं कि इनका रूख या तो इंडिया (गठबंधन) की स्थिति मजबूत कर सकता है, या फिर एनडीए की.
जो दल इन दोनों ही गठबंधनों की बैठक में शामिल नहीं हुए हैं, अगर उन्होंने इनमें से किसी भी गठबंधन के लिए अपना निर्णय लिया, तो जाहिर है उनका पलड़ा भारी हो जाएगा. इन दलों में बीजू जनता दल (ओडिशा), वाईएसएआरसीपी (आंध्रप्रदेश), टीडीपी (आंध्रप्रदेश), बीआरएस (तेलंगाना) और बीएसपी (यूपी) शामिल हैं. टीडीपी और बीएसपी को छोड़कर बाकी दल अपने-अपने राज्यों में सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं.
बीजद ओडिशा में, वाईएसआरसीपी आंध्र प्रदेश में और बीआरएस तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टियां हैं. ये सभी दल मजबूत भी हैं. ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटें, आंध्र प्रदेश में 25 और तेलंगाना में लोकसभा की 17 सीटें हैं. कुल 63 सीट हैं. 2019 में ओडिशा में भाजपा को आठ और तेलंगाना में चार सीटें मिली थीं. आंध्र प्रदेश में भाजपा का खाता भी नहीं खुल सका था. इसलिए भाजपा की इन पर नजर बनी हुई है.
आंध्र प्रदेश में भाजपा इस बार अभिनेता पवन कल्याण की जनसेना पार्टी के साथ गठबंधन कर रही है. हालांकि, सूत्र बताते हैं कि भाजपा टीडीपी को भी अपने पाले में करना चाहती है, लेकिन उनकी योजना अभी तक सफल नहीं हुई है. पवन कल्याण और चंद्रबाबू नायडू के बीच अच्छा राजनीतिक संबंध है, लिहाजा उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में शायद इस पर कोई निर्णय हो सके.
लेकिन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक जो राजनीतिक परिदृश्य देखा गया है, निश्चित तौर पर वाईएसआरसीपी ने भाजपा को कई बार संकट से उबारा है, खासकर तब जबकि उनका कोई महत्वपूर्ण बिल राज्यसभा में अटक जाता है. इसलिए आंध्र प्रदेश में ऊंट किस करवट बैठेगा, कहना मुश्किल है. साथ ही यहां यह भी जानना होगा कि अभी हाल ही में भाजपा ने आंध्र प्रदेश में डी पुरंदेश्वरी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. पुरंदेश्वरी टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू की साली हैं. अब लोग ये जानना चाह रहे हैं कि कहीं इनके जरिए भाजपा ने टीडीपी पर दबाव तो नहीं बढ़ा दिया है.
जहां तक बात तेलंगाना की है, तो भाजपा ने यहां पर अपने प्रदेश अध्यक्ष संजय बंडी को हटाकर जी. किशन रेड्डी को जिम्मेदारी सौंप दी है. संजय बंडी जिस आक्रामक तरीके से काम कर रहे थे, उससे उन्हें अच्छा रिस्पॉंस मिल रहा था. लेकिन पार्टी ने रणनीति बदल ली. पार्टी ने चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी एटाला राजेंद्रन को सौंपी. एटाला बीआरएस पार्टी छोड़कर भाजपा में आए हैं. उनका नाम राज्य के कद्दावर नेताओं में आता है. सूत्र बताते हैं कि एटाला संजय बंडी की कार्यशैली से खुश नहीं थे. 2019 में भाजपा ने चार सीटें लेकर सबको चौंका दिया था. इस बार पार्टी का परफॉर्मेंस क्या रहेगा, कहना मुश्किल है. शहरी इलाकों में भाजपा को ट्रैक्शन मिल रहा है. निगम चुनाव में भाजपा ने सत्ताधारी पार्टी को कड़ी चुनौती पेश की है.