नई दिल्ली : संसद की एक समिति ने सरकार को नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों (एम्स) को नई दिल्ली की प्रमुख इकाई के समान बनाने के साथ ही सेवाओं और शिक्षा की समान गुणवत्ता बनाए रखने के लिए संकायों के आदान-प्रदान (Exchange of Faculties ) तथा ‘रोटेशन’ की व्यवहार्यता का पता लगाने की पुरजोर सिफारिश की है.
‘सभी एम्स संस्थानों की प्रगति की समीक्षा’ संबंधी प्राक्कलन समिति की 12वीं रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि जब सभी नए एम्स संस्थान वर्ष 2012 में संशोधित एम्स अधिनियम 1956 द्वारा संचालित हो रहे हैं, ऐसे में उपकरणों की खरीद के लिए दी गयी वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियों तथा विशेषज्ञों तथा पढ़ाई के संदर्भ में कोई अंतर नहीं होना चाहिए.
लोकसभा में पेश की गयी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को कार्यकारी निदेशक को प्रमुख के रूप में नियुक्त करने के बदले हर नए एम्स संस्थान में निदेशक की नियुक्ति के लिए कानून के प्रावधानों का कड़ाई से पालन करना चाहिए. समिति ने 65 वर्ष से अधिक आयु के किसी भी व्यक्ति को प्रशासनिक पदों पर नियुक्त नहीं करने की भी सलाह दी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति एम्स को मेडकिल उत्कृष्टता के प्रतीक के रूप में देखना चाहेगी जो केवल अनुभवी प्रतिभाओं के साथ भौतिक व्यवहार्यता के साथ ही संभव होगा और यह 70 वर्ष की आयु सीमा के साथ व्यवहार्य नहीं लगता है. समिति महसूस करती है कि नए एम्स में निदेशक के पद पर नियुक्ति के लिए मंत्रालय को मौजूदा प्रोफेसरों के लिए करियर के अवसरों तथा नयी प्रतिभा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए.