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Valentine Day Special: दिलचस्प है 'पद्मा-भोलानाथ' की Love Story, मरने के बाद भी निभाया वादा

सच्चे प्रेम की ये कहानी है 95 वर्षीय बुजुर्ग भोलानाथ आलोक की है. भोलानाथ आलोक का पत्नी के प्रति प्रेम ऐसा था कि 35 साल से वे 'पद्मा' की अस्थियों को संभाल कर रखे हुए थे और सिर्फ अपनी मौत का इंतजार कर रहे थे. हालांकि पिछले साल जून में 'प्रेम का ये पात्र दुनिया' छोड़कर चला गया. बावजूद इसके यहां भी इस प्रेम कहानी का अंत नहीं हुआ. बल्कि दामाद और बेटियों ने 'पद्मा और भोलानाथ' के प्रेम को फिर से जीवित कर दिया. आगे पढ़िए इस रिपोर्ट में प्रेम की ये अद्भुत कहानी-

पूर्णिया के भोलानाथ और पद्मा की कहानी
पूर्णिया के भोलानाथ और पद्मा की कहानी

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Published : Feb 14, 2023, 10:04 AM IST

भोलानाथ और पद्मा की बेमिसाल लव स्टोरी

पूर्णिया: दुनिया में वैलेंटाइन डे वीक मनाया जा रहा है. आज के युवा प्रेमी जोड़ों पर इस त्योहार की खुमारी सिर चढ़कर बोल रही है. प्रेमी अपने प्रेमिका का दिल जीतने के लिए तरह-तरह के उपायों को अपना रहे हैं. मंगलवार को वैलेंटाइन डे वीक का आखिरी दिन है. इस दिन बॉयफ्रेंड और गर्ल फ्रेंड के मिलन का दिन होता है. लेकिन क्या यही असल प्यार है? शायद नहीं ! प्यार समर्पण का दूसरा नाम है. पूर्णिया के भोलानाथ और पद्मा की कहानी इसकी एक मिसाल है. जिसे देखकर आज हर प्रेमी जोड़ा कह उठेगा 'प्रेम हो तो ऐसा !' जब भी प्रेम का ये मौसम आएगा 'पद्मा और भोलानाथ' की कहानी जवां हो उठेगी.

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पूर्णिया के 'पवित्र प्यार' की कहानी: प्यार की ये अनोखी कहानी है बिहार के पूर्णिया जिले के न्यू सिपाही टोला इलाके में रहने वाले भोला नाथ आलोक की. वे अब इस दुनिया में नहीं रहे. मगर उनकी अनूठी प्रेम कहानी पूरे इलाके में चर्चित है. 95 वर्षीय बुजुर्ग भोलानाथ आलोक अपनी पत्नी पद्मा से बेहद प्यार करते थे. एक दिन रात को उनकी पत्नी ने उनसे आकर कहा कि 'आप मेरे बगल में सोइये, मैं सुहागन मरूंगी.' उस वक्त भोलानाथ अपनी पत्नी की इस बात को समझ नहीं सके. तब उन्होंने जवाब दिया कि ''ऐसा कभी नहीं होगा, दोनों साथ जिएंगे और साथ मरेंगे.''

''बाबू जी अब इस दुनिया में नहीं, मगर बाबू जी के उस परंपरा को अब हमने कायम रखा है. घर के सभी सदस्य इस स्थान पर मत्था टेक कर ही घर में आते हैं या फिर बाहर जाते हैं. अस्थियों की पोटली देखकर हमे महसूस होता है वे हमारे पास ही हैं और ये पवित्र प्रेम कहानी जैसे फिर से लिखी जा रही है.''- अशोक, भोलानाथ के दामाद



जब आलोकनाथ को अकेला छोड़कर चली गईं पद्मा: सुबह जब आंख खुली तो पत्नी दुनिया को अलविदा कह चुकी थीं. पत्नी की आकस्मिक मौत के बाद भोलानाथ को बहुत शॉक लगा. लेकिन, बच्चों के लिए उन्हें जीना था. भले ही वे एक साथ जी न सके. एक साथ मारें इसलिए उन्होंने पत्नी की अस्थियों को विसर्जित करने के बजाए पिछले 35 साल तक पत्नी की अस्थियों को उन्होंने संभालकर रखा, ताकि मौत के बाद दोनों एक साथ दुनिया से विदा हों जाए.



''भोलानाथ आलोक का अपनी पत्नी के प्रति अगाध और आत्मीय प्रेम था. वह हम सबों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. वे जीवित अपनी पत्नी का अस्थि कलश अपने सामने रखे हुए हैं ताकि वह उस प्रेम को प्रतिदिन महसूस कर सकें. भोलानाथ आलोक के नाती प्रिय आलोक बताते हैं कि उनके नाना जब तक जीवित रहे, पेड़ पर लगे अस्थि कलश को छूकर प्रणाम करते थे और उनकी पूजा करते थे. मेरे नाना हर प्रेमी जोड़े के लिए मिसाल है. प्रेम क्या है अगर इससे जानना हो, तो हर किसी को इनकी कहानी जननी चाहिए.''- अनिल चौधरी, सोशल एक्टिविस्ट


पद्मा से किया वादा निभाया : भोलानाथ आलोक के दामाद अशोक सिंह बताते हैं कि 'भोलानाथ आलोक का पत्नी के प्रति प्रेम ऐसा था कि वे जब तक जीवित रहे पत्नी की अस्थियां संभाल कर अपने मकान के बाउंड्री के अंदर आम के पेड़ पर बांधकर रखे हुए थे. सिर्फ अपने मृत्यु का इंतजार कर रहे थे. पिछले साल जून में साहित्यकार भोला नाथ आलोक की तबियत बिगड़ी और फिर 95 वर्ष की उम्र में वे दुनिया छोड़कर चले गए. उनकी इच्छा के मुताबिक मौत के बाद उनकी छाती पर पत्नी की अस्थि कलश रखकर उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई. वे कहते हैं बाबू जी कहते थे, अभी ना सही परंतु ऊपर जब 'पदमा' से मिलूंगा तब यह तो बता सकूंगा कि मैंने अपना वादा निभाया.



अभी नहीं हुआ प्रेम कहानी का अंत: अशोक कहते हैं कि जमाने की नजर में भले ही बाबू जी की मौत के साथ दोनों की प्रेम कहानी का अंत हो गया हो. मगर सच कहे तो इस प्रेम कहानी का नया अध्याय शुरू हो गया. बाबू जी की मौत के बाद उनकी व मां की अस्थियों को दाहसंस्कार के बाद हमने उसी आम के पेड़ पर बांधकर रख दिया, जहां बाबू ने मां की अस्थियों को रखा था.


''आज की युवा पीढ़ी वैलेंटाइन डे तो मनाती है लेकिन उन्हें सच्चा प्यार क्या होता है यह सीखना चाहिए. इस सामाजिक जीवन के उधेड़बुन में भी वे पत्नी पद्मा को नहीं भूले. पत्नी के साथ जी नहीं सके तो साथ मरने के लिए पत्नी की अस्थियों को संजोए रखा. उन्होंने नीचे तुलसी का पौधा लगा रखा था. वे प्रतिदिन पत्नी को याद करते थे और उनकी पूजा करते थे.''- गोविंद, साहित्यकार

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