बलरामपुर :किसी भी क्षेत्र के विकास की पहचान उसकी बुनियादी जरुरतों को देखकर हो जाती है.क्योंकि सड़क,पानी,बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य ये वो चीजें हैं जिनके बूते किसी भी क्षेत्र का भविष्य तय होता है.लेकिन बलरामपुर जिले में एक जगह ऐसी है जहां इन बुनियादी चीजों को अपने गांव में शायद ही किसी ने देखा हो.क्योंकि आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव में लोग पुरातन जीवन जी रहे हैं.
गांव से बुनियादी सुविधाएं कोसों दूर :रामचंद्रपुर विकासखंड क्षेत्र के ग्राम पंचायत लूर्गी के पूरब टोला पहाड़ पारा का हाल कुछ ऐसा है कि यहां रहने वाले लोगों के लिए संघर्ष ही जीवन है.पीने का पानी हो, चलने के लिए सड़क हो, रात के अंधेरे में बिजली की जरुरत हो या फिर बच्चों के लिए स्कूल इन सभी चीजों के लिए यहां पैदा होने वाले बच्चों को संघर्ष करना सीखा दिया जाता है.फिर ये संघर्ष एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ट्रांसफर हो जाती है.
पढ़ाई के लिए तीन किलोमीटर दूर बच्चे पैदल करते हैं सफर :ग्राम पंचायत लूर्गी के पूरब टोला पहाड़ पारा में बुनियादी सुविधाओं के हाल का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यहां आज तक बिजली नहीं पहुंची है.करीब पचास परिवारों वाले इस ग्राम पंचायत की सुध लेने कोई नहीं आया. अच्छी सड़क और स्वास्थ्य सुविधा तो आप भूल ही जाइए.यहां बच्चों के लिए एक अदद आंगनबाड़ी की स्थापना भी सरकार नहीं कर सकी है.बच्चों को पढ़ने के लिए उबड़ खाबड़ रास्ते से होते हुए तीन किलोमीटर तक का सफर तय करना पड़ता है.तब कहीं जाकर किताबों में लिखे अक्षरों का बोध नौनिहालों को होता है.
खंबा है पर बिजली नहीं :ग्राम पंचायत लूर्गी के पूरब टोला पहाड़ पारा में बिजली भी नहीं आई है. प्रशासन के अफसरों ने सिर्फ खंबे लगाकर अपना काम पूरा कर लिया है. लेकिन खंबों में तार डालकर बिजली पहुंचाने की जिम्मेदारी शायद भूल चुके हैं. इसलिए आज भी रात के अंधेरे में जंगली जानवर और सांप बिच्छुओं के साथ यहां के लोग रात गुजारने को मजबूर हैं.इस शर्मनाक नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे जिस छत्तीसगढ़ में सरप्लस बिजली पैदा होती है.जहां से दूसरे राज्यों को बिजली दी जाती है.वहां के एक गांव में एक बल्ब को रोशन करने के लिए बिजली का तार तक नहीं पहुंच सका है.