देहरादून (उत्तराखंड): तीन अक्टूबर (शुक्रवार) रात करीब 11.30 बजे नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप का असर भारत तक देखा गया है. दिल्ली एनसीआर समेत यूपी और उत्तराखंड में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं. नेपाल के जाजरकोट और रुकुम पश्चिम जिले में भूकंप का सबसे ज्यादा असर देखने को मिला है, जहां अभी तक भूकंप के कारण 157 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं काफी बड़ी संख्या में लोग घायल भी हुए हैं. आशंका जताई जा रही है कि मौत का आंकड़ा अभी और बढ़ सकता है. इस भूकंप के बाद एक बार फिर उत्तराखंड को लेकर चिंता जाहिर की गई है, क्योंकि उत्तराखंड भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील क्षेत्र में आता है.
नेपाल में आए भूकंप ने एक बार फिर हिमालयी राज्यों को सोचने के मजबूर कर दिया है कि कहीं विकास के नाम पर ये राज्य विनाश की तरफ तो नहीं बढ़ रहे हैं. उत्तराखंड को लेकर विशेषज्ञ पहले ही कई बार अपनी चिंता जता चुके हैं. वहीं नेपाल की बात की जाए तो पिछले आठ सालों में नेपाल में कई बड़े भूकंप आए हैं, जिससे नेपाल को बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ा है.
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नेपाल सरकार के आंकड़ों पर गौर करें तो नेपाल में बीते 8 सालों में पांच बड़े विनाशकारी भूकंप आए हैं. इनमें एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. यह आंकड़ा नेपाल आपदा प्रबंधन विभाग का है. वहीं इन भूकंप से करीब 80 लाख से ज्यादा लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं.
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16 हजार लोगों की गई थी जान:साल 1934 में नेपाल में 8 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसमें करीब 16 हजार लोग मार गए थे. उस भूकंप के कारण नेपाल से लगे भारत से सीमावर्ती राज्य यूपी और बिहार में भी काफी नुकसान हुआ था. इसके बाद 1980 में भी भूकंप के कारण नेपाल में करीब 200 लोगों की जान चली गई थी और 5 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए थे.
1988 में गई थी एक हजार की जान: नेपाल में ऐसा ही एक भूकंप 1988 में आया था, जिसमें 1000 लोग मारे गए थे. इसके बाद 2015 में भी भूकंप की वजह से नेपाल में सबकुछ तहस नहस हो गया था. इस भूकंप में करीब 8800 लोग की मौत हुई थी. वहीं अब साल 2023 में तीन नवंबर को आए भूकंप में अभी तक 141 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. नेपाल में आए ये तमाम वे हादसे हैं, जिनसे उत्तराखंड को सबक लेने की जरूरत है.
भूकंप आने का बड़ा कारण: भू वैज्ञानिक वीरेंद्र दत्त (बीडी) जोशी की मानें तो हिमालयी क्षेत्र और खासकर नेपाल में एक के बाद एक बड़े भूकंप इसलिए आ रहे हैं, क्योंकि ये इलाके दो बड़े टेक्टोनिक प्लेट (इंडो ऑस्ट्रेलियन और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स) के नीचे बसे हुए हैं. जब इन दोनों इंडो ऑस्ट्रेलियन और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स के बीच टकराव होता है तो नेपाल में भूकंप आते हैं.
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हिमालयी राज्यों को बड़ा खतरा: भू वैज्ञानिक बीडी जोशी ने बताया कि इसके अलावा ये दोनों प्लेट्स 5 सेंटीमीटर नीचे की तरफ खिसक रही हैं, और हिमालय भी हर साल 5 मिमी ऊपर उठता जा रहा है. भू वैज्ञानिक बीडी जोशी के मुताबिक यह खतरा सिर्फ नेपाल पर ही नहीं है, बल्कि उत्तराखंड, हिमाचल और अन्य हिमालयी राज्यों पर भी है, जिसके लिए अभी से कोई ठोस रणनीति बनानी पड़ेगी.
बड़े खतरे की चेतावनी: भू वैज्ञानिक जोशी का कहना है कि उत्तराखंड में फिलहाल भूकंप से यदि कोई बड़ा नुकसान नहीं हो रहा है तो इसका मतलब ये नहीं है कि भविष्य में कुछ नहीं होगा. उनका कहना है कि महीने या हफ्ते में एक-दो बार तो उत्तराखंड में भूकंप के झटके जरूर महसूस किए जाते हैं, जो भविष्य के बड़े खतरे की चेतावनी की तरफ इशारा करते हैं.
भूकंप के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र: भू वैज्ञानिक बीडी जोशी ने आगे बताया कि उत्तराखंड और हिमाचल का एक बड़ा हिस्सा भूकंप के लिहाज से संवेदनशीलता जोन पांच में आता है. लगातार रिसर्च में यह बातें सामने आ रही हैं कि उत्तराखंड में जिस तरह से पहाड़ों पर भारी निर्माण कार्य किए जा रहे हैं, वो बिल्कुल सही नहीं हैं. उत्तराखंड के चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ जिले भूकंप के लिए काफी संवेदनशील क्षेत्र में आते हैं. यहां बड़ी तबाही की आशंका बनी रहती है.
भूकंप प्रभावित क्षेत्र की जब बात की जाती है तो उसको कई जोन में बांटा जाता है. जैसे- सिस्मिक जोन 5 इसका मतलब अति संवेदनशील या सबसे खतरनाक जोन होता है.
- पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के 5 जिले इस खतरनाक अति संवेदनशील जोन 5 में आते हैं.
- राज्य में रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चमोली, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिले अति संवेदनशील जोन पांच में आते हैं.
- वहीं, हरिद्वार, पौड़ी, उधमसिंह नगर, नैनीताल, चंपावत और अल्मोड़ा सिस्मिक जोन चार में आते हैं.
- जबकि देहरादून और टिहरी को हिस्सा सिस्मिक जोन 4 और 5 में आता है.
दिल्ली तक खतरा:देहरादून स्थितवाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक कालाचंद साईं ने तो यहां तक कह दिया है कि उत्तराखंड में जिस दिन बड़ा भूकंप आया, उसका असर दिल्ली तक देखा जाएगा. निदेशक कालाचंद की मानें तो उत्तराखंड में बीते कई सालों से भूकंप के छोटे-छोटे झटके आ रहे हैं. यह बात सही है कि इस तरह से एनर्जी रिलीज तो हो रही है, लेकिन भविष्य में कितना बड़ा भूकंप आएगा, इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है.
निदेशक कालाचंद के मुताबिक, नेपाल में जिस तरह से 6 और 7 तीव्रता के भूकंप तबाही मचा रहे हैं, उसी तरह का भूकंप यदि उत्तराखंड में आता है तो उस जगह की तस्वीर ही बदल जाएगी. लगातार वैज्ञानिक इस बात के लिए चेता रहे हैं कि हिमालयी क्षेत्र में घर बनाने का काम हो या फिर अन्य सरकारी काम उसमें बिल्डिंग कोड का पालन जरूर करना चाहिए. यह काम नेपाल में साल 2015 से तेजी से हो रहा है, लेकिन उत्तराखंड में आज भी पहाड़ों पर बिल्डिंग कोड सख्ती से लागू नहीं किया जा रहा है.
उत्तराखंड पहले भी झेल चुका है भूकंप का दंश:वैज्ञानिकों की मानें तो हिमालय में लंबे समय से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है. इसी से अंदाजा लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में कोई बड़ा भूकंप आ सकता है. 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली में दो बड़े भूकंप आ चुके हैं. इन भूकंप की तीव्रता 6.8 मापी गई थी. 1991 उत्तरकाशी भूकंप में 768 लोगों की जान गई थी जबकि चमोली भूकंप में भी करीब 100 लोगों की मौत हुई थी. इसके साथ ही 1905 में कांगड़ा और 1934 में बिहार-नेपाल की सीमा पर बड़ा भूकंप आया था.