इंदौर। गुटखा खाकर किसी भी सार्वजनिक स्थान पर थूक कर उस स्थान को पीकदान में तब्दील करने वाले गुटखे और पान के शौकीन अब जरूरत पड़ने पर इको फ्रेंडली पीरदान का उपयोग कर सकेंगे. दरअसल देशभर में सार्वजनिक स्थानों पर थूकने और सड़कों पर गंदगी फैलाने वाले लोगों द्वारा जहां-तहां थूकने की समस्या से निजात दिलाने के लिए इंदौर में एक स्टार्टअप द्वारा बाकायदा इको फ्रेंडली पीकदान विकसित कर यह पहल की गई है. इन पीकदान का उपयोग करके न केवल सार्वजनिक स्थानों को गंदा होने से बचाया जा सकेगा. बल्कि गुटखा और पान खाने वालों को थूकने को लेकर भी व्यवस्थित विकल्प उपलब्ध हो सकेगा.
थूक से सुंदर स्थान हो रहे बर्बाद: भारत में सदियों से पान और गुटके खाकर थूकने की नवाबी परंपरा अब सार्वजनिक स्थानों पर थूके जाने के कारण स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिहाज से चुनौती बन चुकी है. भारत में ही स्थिति यह है कि कई शहरों के सुंदर सार्वजनिक स्थान लोगों के गुटका और पान खाकर सूखने से विकृत होकर बर्बाद हो चुके हैं. हालत यह है कि शासकीय कार्यालयों को थूकने और गंदगी करने से बचाने के लिए अब धार्मिक प्रतीकों और देवी देवताओं के चित्रों तक का उपयोग किया जाता है. बावजूद इसके गुटका और पान खाकर थूक ने वाले जहां-तहां थूकने से बाज नहीं आ रहे हैं.
नए विकल्प की खोज: इस स्थिति के मद्देनजर हाल ही में एक सर्वे में यह बताया गया था कि भारत में प्रतिवर्ष लोगों के द्वारा थूके जाने के फल स्वरुप ओलंपिक साइज के 212 स्विमिंग पूल भरे जा सकते हैं. यही स्थिति रेलवे की है जो लोगों के थूकने की गंदगी से निपटने के लिए सालाना 12 सौ करोड़ रुपए खर्च करने को मजबूर है. हावड़ा ब्रिज और अन्य स्थान जो लगातार थूके जाने के कारण पीकदान में तब्दील होकर जर्जर हो चुके हैं. देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में मेडिकल एंटरप्रेन्योर अतुल काला और आकृति जैन ने अस्पतालों में भी इसी समस्या को देखा तो उन्होंने थूके जाने की स्थिति से निपटने के लिए बाजार में विकल्प की खोज की, लेकिन कोई भी प्रभावी विकल्प नहीं मिलने के कारण उन्होंने खुद ही इको फ्रेंडली पीकदान तैयार करने का फैसला किया. इसके बाद लंबे रिसर्च और खोजबीन के परिणाम स्वरूप उन्होंने आधुनिक तरीके का पीकदान (Biospitoon और Spit Cup) तैयार कर लिया है.