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इंदौर में स्वच्छता की 'एक पहल', पान और गुटके के शौकीनों के लिए तैयार इको फ्रेंडली पीकदान

देश के सबसे साफ शहर इंदौर में गुटखे और पान के थूक से निपटने के लिए एक अनोखी पहल की जा रही है. गुटखे और पान के शौकीन लोग सार्वजनिक स्थानों को गंदा न करें इसके लिए इको फ्रेंडली पीकदान ईजाद किया गया है.

eco friendly peekdan in indore
इंदौर में इको फ्रेंडली पीकदान

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Published : Jun 1, 2023, 12:28 PM IST

इंदौर। गुटखा खाकर किसी भी सार्वजनिक स्थान पर थूक कर उस स्थान को पीकदान में तब्दील करने वाले गुटखे और पान के शौकीन अब जरूरत पड़ने पर इको फ्रेंडली पीरदान का उपयोग कर सकेंगे. दरअसल देशभर में सार्वजनिक स्थानों पर थूकने और सड़कों पर गंदगी फैलाने वाले लोगों द्वारा जहां-तहां थूकने की समस्या से निजात दिलाने के लिए इंदौर में एक स्टार्टअप द्वारा बाकायदा इको फ्रेंडली पीकदान विकसित कर यह पहल की गई है. इन पीकदान का उपयोग करके न केवल सार्वजनिक स्थानों को गंदा होने से बचाया जा सकेगा. बल्कि गुटखा और पान खाने वालों को थूकने को लेकर भी व्यवस्थित विकल्प उपलब्ध हो सकेगा.

इको फ्रेंडली पीकदान

थूक से सुंदर स्थान हो रहे बर्बाद: भारत में सदियों से पान और गुटके खाकर थूकने की नवाबी परंपरा अब सार्वजनिक स्थानों पर थूके जाने के कारण स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिहाज से चुनौती बन चुकी है. भारत में ही स्थिति यह है कि कई शहरों के सुंदर सार्वजनिक स्थान लोगों के गुटका और पान खाकर सूखने से विकृत होकर बर्बाद हो चुके हैं. हालत यह है कि शासकीय कार्यालयों को थूकने और गंदगी करने से बचाने के लिए अब धार्मिक प्रतीकों और देवी देवताओं के चित्रों तक का उपयोग किया जाता है. बावजूद इसके गुटका और पान खाकर थूक ने वाले जहां-तहां थूकने से बाज नहीं आ रहे हैं.

नए विकल्प की खोज: इस स्थिति के मद्देनजर हाल ही में एक सर्वे में यह बताया गया था कि भारत में प्रतिवर्ष लोगों के द्वारा थूके जाने के फल स्वरुप ओलंपिक साइज के 212 स्विमिंग पूल भरे जा सकते हैं. यही स्थिति रेलवे की है जो लोगों के थूकने की गंदगी से निपटने के लिए सालाना 12 सौ करोड़ रुपए खर्च करने को मजबूर है. हावड़ा ब्रिज और अन्य स्थान जो लगातार थूके जाने के कारण पीकदान में तब्दील होकर जर्जर हो चुके हैं. देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में मेडिकल एंटरप्रेन्योर अतुल काला और आकृति जैन ने अस्पतालों में भी इसी समस्या को देखा तो उन्होंने थूके जाने की स्थिति से निपटने के लिए बाजार में विकल्प की खोज की, लेकिन कोई भी प्रभावी विकल्प नहीं मिलने के कारण उन्होंने खुद ही इको फ्रेंडली पीकदान तैयार करने का फैसला किया. इसके बाद लंबे रिसर्च और खोजबीन के परिणाम स्वरूप उन्होंने आधुनिक तरीके का पीकदान (Biospitoon और Spit Cup) तैयार कर लिया है.

व्यक्तिगत उपयोग के लिए स्पिट कप: 'एक पहल' नामक स्टार्टअप के जरिए पीरदान तैयार करने वाली आकृति जैन बताती हैं कि स्पिट कप का उपयोग पान और गुटखा खाने वाले व्यक्तिगत तौर पर कर सकते हैं. इसमें 30 से 40 बार आसानी से थूका जा सकता है. करीब 240 मिलीलीटर क्षमता वाले स्पिट कप को कार में घर में या बुजुर्ग लोग अपनी जरूरत के अनुसार अपने पास रखते हुए उपयोग में ला सकते हैं. खास बात यह है कि इसमें लिक्विड तौर पर थूके जाने वाला द्रव एक खास पदार्थ से मिलकर बर्फ जैसा रूप ले लेता है जो कप को छलक ने नहीं देता. इसके अलावा कप दुर्गंध रहित होकर इको फ्रेंडली है. जिसे मनचाहे तरीके से उपयोग में लाया जा सकता है.

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सार्वजनिक उपयोग के लिए बायो स्पिट्टून: बायो स्पिट्टून का उपयोग बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, मेट्रो स्टेशन समेत उन स्थानों पर सुविधाजनक तरीके से किया जा सकता है जहां लोगों की आवाजाही सर्वाधिक होती है. इसे इस तरह से तैयार किया गया है कि पेड़ से इसका ढक्कन ओपन करके लोग इस में आसानी से थूक सके. इसमें भी एक बार में 500 से 600 स्पिट की जा सकती हैं और इसके बावजूद इसे 5 से 10 मिलीलीटर पानी से ही आसानी से साफ किया जा सकता है. वहीं, इसमें इस तरह के केमिकल का उपयोग किया गया है कि स्पिट को स्वच्छ पानी में बदलकर उसे भी उपयोग में लाया जा सकता है. स्टार्टअप संचालक डॉक्टर अतुल काला बताते हैं कि ''इसके उपयोग की शुरुआत सार्वजनिक तौर पर इंदौर विकास प्राधिकरण और अटल इंदौर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस की बसों में शुरू किया जा रहा है. इसके अलावा इंदौर के मेट्रो स्टेशन और अन्य स्थानों पर जल्द ही यह पीकदान दिखाई देंगे.''

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