भोपाल। भारत से लुप्त हो चुकी चीतों की प्रजाति को एक बार फिर मध्यप्रदेश के कूनो में बसाने की तैयारी पूरी कर ली गई है. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर को कूनो नेशनल पार्क में अफ्रीकी देश नामीबिया से लाए जा रहे चीतों को नया ठिकाना मिलने जा रहा है. टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में कुछ साल पहले अच्छी संख्या में चीते पाए जाते थे, लेकिन इनकी खूबसूरत खाल ही इसकी जान की दुश्मन बनी. राजशाही के दौरान शिकार के शौकीन महाराजाओं ने चीतों का इस कदर शिकार किया कि देश से इसकी नस्ल ही खत्म हो गई. अब एक बार फिर चीतों को भारत में बसाने की कोशिशें की जा रही हैं. वन्यजीव विषेशज्ञ भी मानते हैं कि भारत में अफ्रीका के मुकाबले अच्छा वेदर है और जंगल भी पर्याप्त हैं. यह भविष्य में देश में ही चीतों की संख्या बढ़ाने में मदद करेगा.
खूबसूरत खाल बनी जान की दुश्मन:करीबन 75 साल बाद मध्ययप्रदेश में एक बार फिर चीते दिखाई देंगे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन के मौके पर मध्यप्रदेश के कूनो पार्क में पीएम खुद इन्हें बाडे में छोड़ेंगे. चीते भारत में पहले भी पाए जाते थे, लेकिन इनकी खूबसूरत खाल के लिए और राजामहाराजाओं ने अपने शौक के लिए इनका अंधाधुंध शिकार किया. अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा रहे छत्तीसगढ़ का रामगढ़, जो अब घासीदास नेशनल पार्क है, में दिसंबर 1947 में तीन चीतों का शिकार किया गया था. यह शिकार कोरिया के राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने किया था. कहा जाता है शौक के शिकार बने 2 चीतों की साल 1967-68 में सीधी के जंगलों में मौजूदगी की खबरें मिलीं थीं. इसके बाद फिर न कभी इन्हें देखा गया और न ही इसके देखे जाने की चर्चा हुई.
कब-कब हुआ चीतों का शिकार :वन्यजीव विशेषज्ञ और रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी सुदेश बाघमारे कहते हैं कि चीतों की खूबसूरत खाल और राजा-महाराजाओं के शिकार के शौक की वजह से भारत से चीतों की नस्ल ही समाप्त हो गई. लगातार शिकार के चलते भारत में कुछ साल पहले अच्छी खासी संख्या में पाए जाने वाले चीते खत्म होते चले गए. 1903 - नौगांव में 1 चीते का शिकार किया गया.
1911- रीवा में लार्ड हार्डिंग ने एक चीते का शिकार किया.
1919- छिंदवाड़ा दो चीते दिखे, मादा चीता का हुआ शिकार.
1925- रीवा में तीन चीतों का शिकार हुआ, 1 को बचाया गया.
1926- हरारी जागीर छिंदवाड़ा में एक चीते का शिकार हुआ.
एमपी में कब तक दिखी चीतों की मौजूदगी:
1867- सागर में 2 चीतों को एक शावक के साथ देखा गया
1887 - सागर में 2 चीते दिखाई दिए.
1914 - रानीपुर बैतूल में चीते की आवाज सुनाई दी
1919- छिंदवाड़ा दो चीते दिखे
1935- सिवनी में एक चीते की मौजूदगी के निशान मिले
1941- रीवा स्टेट की सीमा में दो चीते दिखे, दोनों का हुआ शिकार 1967-68 सीधी में आखिरी बार दो चीतों की मौजूदगी का पता चला.
मध्यप्रदेश की परिस्थितियां चीतों के अनुकूल:वन्यजीव विशेषज्ञ एसएस राजपूत के मुताबिक मध्यप्रदेश पूर्व में भी चीतों का रहवास रह चुका है. यहां के जंगल चीतों के रहने और वंशवृद्धि के अनुकूल हैं. मध्यप्रदेश का मौसम दक्षिण अफ्रीका के मौसम से बेहतर है. कूनो में चीतों के पानी पीने के लिए कूनो नदी है. शिकार के लिए जंगलों में भरपूर संख्या में चीतल हैं. विशेषज्ञों को पूरी उम्मीद है कि अफ्रीका से आने वाले चीते यहां के जंगल में जल्द एडजस्ट हो जाएंगे. वन्य जीव विशेषज्ञ सुदेश बाघमारे कहते हैं कि मध्यप्रदेश में लाए जा रहे चीते अफ्रीकन नस्ल के हैं. वे बताते हैं कि भारत में पाए जाने वाली नस्ल के कुछ चीते सिर्फ ईरान में पाए जाते हैं. ये चीते अफ्रीकन चीते से थोडी छोटी हाइट के होते हैं.
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क्या तेंदुए से चीतों को खतरा है:कूनो नेशनल पार्क में घुसे तीन तेंदुओं को वन कर्मियों ने काफी मशक्कत के बाद चीतों के बाड़े से बाहर निकाल दिया है. इसको लेकर सवाल उठ रहा है कि क्या तेंदुओं से चीतों को कोई खतरा होगा. वन्यजीव विशेषज्ञ और वन विहार के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर एके जैन कहते हैं कि इसकी संभावना कम ही है कि तेंदुओं से चीतों को कोई नुकसान होगा. ऐसा हो सकता है कि यदि कभी चीतों ओर तेंदुओं का आमना-सामना हुआ तो तेंदुए इन्हें देखकर डरेंगे. वन्य जीव विशेषज्ञ बताते हैं कि तेंदुए और चीते पेड़ों पर चढते हैं. दोनों अपने शिकार को खींचकर पेड़ पर टांग देते हैं इससे हो सकता है कि शिकार को लेकर इनमें झगड़े हों, लेकिन इसमें चीते, तेंदुओं पर भारी पड़ेंगे, क्योंकि चीते हाइट में तेंदुआ से बड़ा होता और शारिरिक रूप से भी मजबूत होता है. तेंदुआ अकसर अकेले शिकार करता जबकि चीते झुंड में भी रहते हैं. इसलिए खतरे वाली बात नहीं है.
आते ही किया जाएगा मेडिकल टेस्ट: नामीबिया से आ रहेचीते मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में 17 सितंबर से पहले ही पहुंच जाएंगे. मध्यप्रदेश लाए जा रहे सभी चीतों का पहले ही मेडिकल चेकअप किया जा चुका है. कूनो में लाए जाने के तत्काल बाद एक बार फिर इनका बारीकी से मेडिकल टेस्ट किया जाएगा और देखा जाएगा कि इनके ट्रांसलोकेशन के दौरान इन्हें कोई चोट तो नहीं आई. चीतों के साथ दक्षिण अफ्रीका के वन्य जीव विशेषज्ञ भी आ रहे हैं. चीतों के रहन-सहन और देखरेख के लिए कूनो नेशनल पार्क के डायरेक्टर से लेकर रेंजर और डॉक्टर्स को दक्षिण अफ्रीका में ट्रेनिंग दिलाई जा चुकी है. इन सब बातों से उम्मीद जागी है कि अफ्रीकन चीतों को अपना नया घर कूनो खासा पसंद आएगा.