भिंड।लगभग 6 साल पहले विकास पथ पर फर्राटे से दौड़ते चंबल एक्सप्रेस वे का सपना मध्य प्रदेश की सीएम शिवराज सिंह चौहान ने चंबल की जनता को दिखाया था (Atal Progress way in MP). 2017 में इस महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा हुई, कमलनाथ सरकार में कुछ बदलाव हुए. अब नाम भी अटल एक्सप्रेस वे हो चुका है, लेकिन आज तक यह प्रोजेक्ट ज़मीन पर नहीं आ सका. सरकार के नुमाइंदे अब तक सर्वे और भूमि अधिग्रहण का कार्य होने का हवाला देते आए थे. लेकिन भिंड और मुरैना में भूमि अधिग्रहण के नाम पर जिन किसानों की ज़मीनें इस सरकारी योजना में जा रही हैं, उन्होंने विरोध और आंदोलन की राह अपना ली. नतीजा, इस साल होने वाले चुनाव को देखते हुए सरकार किसानों की बगावत को नज़र अंदाज नहीं कर सकी और अब मुख्यमंत्री ने एक बार फिर सर्वे कार्य दोबारा कराये जाने और सरकारी जमीन का ज्यादा अधिग्रहण कराने के निर्देश दे दिए हैं. जिससे किसानों की खेती और जमीन बच सके.
साल 2017 में अस्तित्व में आया था चम्बल एक्सप्रेस-वे:वर्ष 2017 में जब इस चम्बल एक्सप्रेस वे की घोषणा हुई, उस समय इस प्रोजेक्ट की कुल लंबाई 300 किलोमीटर थी. लेकिन कुछ समय बाद नाम में बदलाव के साथ इसे नया रूप मिला और 2021 में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इसे भारत माला परियोजना का हिस्सा बनाते हुए प्रथम चरण में स्वीकृति प्रदान की थी. साथ ही इस एक्सप्रेस वे को मध्य प्रदेश के साथ साथ उत्तर प्रदेश और राजस्थान से भी जोड़ा गया जो राजस्थान के कोटा से शुरू होकर उत्तर प्रदेश के इटावा पर ख़त्म होता है. इसकी कुल लंबाई बढ़ाकर 404 किलोमीटर हो गई. इस तरह यह एक्सप्रेस 360 किलोमीटर के साथ मध्य प्रदेश का सबसे लंबा एक्सप्रेस वे माना जाता है, जो प्रदेश के तीन जिलों श्योपुर, मुरैना और भिंड से होकर गुज़रेगा. इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत करीब साढ़े 7 हज़ार करोड़ रुपए मानी जा रही थी. DPR तैयार होने के बाद लगभग एक साल से भूमि अधिग्रहण का कार्य भी जारी है. लेकिन इतना समय बीतने के बाद भी यह योजना सिर्फ कागजों तक ही सीमित है.
विरोध जताने चंबल से दिल्ली तक पहुंचे किसान:बीते लगभग दो महीनों से भिंड के अटेर क्षेत्र के 2 दर्जन से अधिक गांव और मुरैना के आधा सैकड़ा से ज्यादा गांव के किसान अटल प्रोग्रेस-वे के तहत हो रही भूमि अधिग्रहण का विरोध जता रहे थे. जिसकी वजह थी कि कई किसान ऐसे थे जिनके पूरे खेत ही इस प्रोजेक्ट के रास्ते में आ रहे थे. ऐसे में बीते दिनों से किसानों का प्रदर्शन लगातार जारी है. कई बार ये किसान केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुरैना स्थित बंगले का भी घेराव करने पहुंचे, जिस पर केंद्रीय मंत्री ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया था. लेकिन जब भूमि अधिग्रहण का कार्य जारी रहा तो किसानों का प्रदर्शन तेज हो गया. इसी को लेकर मुरैना के जौरा विधानसभा के बीजेपी विधायक सूबेदार सिंह रजौधा इन पीड़ित किसानों को लेकर मंगलवार को दिल्ली गए थे. जहां किसानों के साथ मिलकर केंद्रीय कृषि मंत्री के साथ उनके बंगले पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया और किसानों की समस्या सामने रखी.
दोबारा सर्वे के दिए निर्देश:इन किसानों की समस्या को देखते हुए बैठक में वीडियो कांफ्रेंस के ज़रिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके साथ भिंड कलेक्टर सतीश कुमार एस, मुरैना कलेक्टर अंकित अष्ठाना और श्योपुर कलेक्टर शिवम वर्मा को भी जोड़ा गया. मंत्री नरेंद्र तोमर और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सामने किसानों ने अपनी समस्या रखी. इसके बाद सीएम ने किसानों को आश्वासन दिया कि किसी किसान को नुक़सान नहीं होने दिया जाएगा. उन्होंने तीनों कलेक्टर से भी सर्वे का कार्य नये सिरे से कराने के निर्देश दिए हैं.
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फिर बढ़ेगा प्रोजेक्ट का समय:पहली ही यह एक्सप्रेस वे का काम करीब 5 वर्ष डिले हो चुका है. ऐसे में सर्वे का काम दोबारा शुरू होने से योजना शून्य हो चुकी है. क्योंकि यह मध्यप्रदेश में भिंड के 28 गांव, श्योपुर के 57 गांव और मुरैना के 119 गांव से गुजरेगा. मुरैना कलेक्टर की मानें तो जब तक अलाइनमेंट रिपोर्ट उपलब्ध नहीं कराई जाती तब तक नया रूट और समय अवधि के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है. ऐसे में अटल प्रोग्रेस-वे का काम कम से कम ढाई वर्ष के लिए आगे बढ़ गया है. क्योंकि इस वर्ष ही विधानसभा चुनाव हैं तो 6 महीने बाद अचार संहिता भी लग जाएगी. ऐसे में सरकार का पूरा फोकस चुनाव और इससे संबंधित गतिविधियों पर होगा.
इनका कहना है:इस संबंध में जब ईटीवी भारत ने भिंड कलेक्टर सतीश कुमार से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि ''अटल एक्सप्रेस वे को लेकर बैठक हुई है, लेकिन मैं इस पर कुछ भी कहने के लिए अधिकृत नहीं हूं''. वहीं, मुरैना कलेक्टर अंकित अस्थाना ने बताया कि ''वीडियो कांफ्रेंस में कहा गया है कि सर्वे दोबारा से कराया जायेगा और सर्वे से पहले NHAI अलाइनमेंट रिपोर्ट सबमिट करेगी. फिलहाल समय को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है. क्योंकि जब तक नया अलाइनमेंट नहीं आएगा तब तक पता नहीं चलेगा कि कितना रूट बदला है और कितने किसान बदले हैं. जब तक ये पता नहीं चलेगा तब तक टाइमलाइन भी क्लियर नहीं की जा सकती है''. मध्य प्रदेश शासन के राज्यमंत्री ओपीएस भदौरिया ने बताया कि ''मुख्यमंत्री ने सर्वे दोबारा से कराने के निर्देश दिये हैं. क्योंकि कई जगह से लगातार ये शिकायत आ रही थी कि भूमि अधिग्रहण में किसानों की जमीन का ज्यादा नुकसान हो रहा है. इसलिए दोबारा सर्वे होगा और ज़्यादा से ज्यादा इसमें सरकारी ज़मीन को लिया जाएगा. अभी समय के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि सिर्फ उन्हीं स्थानों पर सर्वे होगा जहां से शिकायतें आ रही हैं या किसानों को समस्या हो रही है''.