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मोहर्रम 2022 : राजस्थान के अजमेर में हाइदौस खेलने की 800 बरस पुरानी अनूठी परंपरा, पेश होता है कर्बला का मंजर - अजमेर में हाइदोस खेलने की परंपरा

पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके जां निसार साथियों की शहादत की याद में हर साल मोहर्रम पर ताजिए निकाले जाते हैं. अजमेर में भी तलवारों के जरिए हाइदोस (unique tradition of playing Hydos in Ajmer) में करबला की जंग के मंजर को साकार किए जाने की परंपरा भी है. आजादी के बाद हाइदौस के लिए तलवारें और तोप प्रशासन उपलब्ध कराता है. पंचायत के आग्रह पर मालखाने से तलवारें और तोप दी जाती हैं.

unique tradition of playing Hydos in Ajme
unique tradition of playing Hydos in Ajme

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Published : Aug 9, 2022, 8:40 AM IST

Updated : Aug 9, 2022, 12:13 PM IST

अजमेर. राजस्थान के अजमेर में मोहर्रम के अवसर पर दरगाह क्षेत्र में अंदरकोट इलाके में 800 वर्षों से हाइदोस खेलने की अनूठी परंपरा (unique tradition of playing Hydos in Ajmer) है. सैकड़ों लोग हाथों में नंगी तलवारे लेकर चीखते चिल्लाते तलवारे लहराते हुए कर्बला की जंग का मंजर पेश करते हैं. खास बात यह है कि हाइदौस की प्राचीन पारंपरा के निर्वहन के लिए बाकायदा प्रशासन 100 तलवारें मालखाने से देता है. विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में आने वाले देश के कोने-कोने से जायरीन के लिए हाइदौस विशेष आकर्षण रहता है.

अंदरकोटियान बिरादरी के लोग मोहर्रम की 9 की रात्रि और 10 तारीख को हाइदौस खेला जाएगा. नंगी तलवारों के साथ (800 years old Hydos playing tradition) हाइदौस खेलने की परंपरा 800 साल पुरानी है. बताया जाता है कि देश में केवल अजमेर में ही हाइदौस खेला (Moharram Hydos tradition in ajmer) जाता है. हाइदौस में व्यवस्थाओं का जिम्मा बिरादरी के लोगों का ही रहता है. हालांकि, मूलभूत सुविधाओं के लिए प्रशासन और सुरक्षा का जिम्मा पुलिस संभालती है. अंदरकोटियान पंचायत के कार्यवाहक अध्यक्ष मुख्तयार बख्श बताते हैं कि हाइदौस की परंपरा अजमेर में अंदरकोटियान पंचायत की ओर से निभाई जाती है. उन्होंने बताया कि प्रशासन की ओर से तलवारें और तोप दी जाती है. उन्होंने बताया कि इमाम हुसैन की याद में हाइदौस खेला जाता है. हाइदौस खेलते हुए कर्बला का मंजर पेश किया जाता है.

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पाकिस्तान के हैदराबाद में हाइदौस: अंदरकोटियान पंचायत के कार्यवाहक अध्यक्ष मुख्तयार बख्श बताते हैं कि हाइदौस खेलने के वक़्त बिरादरी के व्यक्ति की भावना होती है कि इमाम हुसैन के साथ हम होते तो हम भी शहादत देते. उन्होंने बताया कि देश में केवल अजमेर में ही हाइदौस खेला जाता है. वहीं, कुछ लोग अंदरकोटियान बिरादरी के पाकिस्तान के हैदराबाद प्रान्त में भी हैं. वहां भी हाइदौस खेला जाता है.

अजमेर में हाइदौस खेलने की परंपरा

अजमेर प्रशासन देता है 100 तलवार और एक तोप: हाइदौस की परम्परा 800 साल पुरानी है. बताया जाता है कि औरंगजेब ने जब धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया था उस वक़्त भी हाइदौस खेला जाता था. अंदरकोटियान पंचायत के कंवीनर एसएम अकबर ने बताया कि अंग्रेज हुकूमत के वक़्त भी हाइदौस खेला जाता था. आज़ादी के बाद बिरादरी के लोगों ने तलवारें और एक तोप प्रशासन के सुपुर्द की थी. अब हर साल हाइदौस खेलने के लिए अंदरकोटियान पंचायत प्रशासन से 100 तलवारें और तोप देने की स्वीकृति लेता है. बाकायदा हर तलवार के साथ खेलने वाले को लाइसेंस दिया जाता है. उन्होंने बताया कि विभिन्न विभागों की ओर से व्यवस्थाएं की जाती है. उन्होंने बताया कि पंचायत के सदस्य ही हाइदौस खेलते हैं.

अजमेर प्रशासन देता है 100 तलवार और एक तो

डोले शरीफ की निकलती है सवारी: अंदरकोटियान पंचायत के उपाध्यक्ष आज़म खान ने बताया कि हाइदौस को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं. हाइदौस खेलने से पहले तोप दागी जाती है. उसके बाद तलवारें लहराते हुए लोग कर्बला के मंजर को याद करते हैं. उन्होंने बताया कि इस दौरान डोले शरीफ की सवारी भी निकाली जाती है. ज्यादातर लोग इस दिन रोजा रखते हैं. कई लोग लंगर तकसीम करवाते हैं. उन्होंने बताया कि 1946 से अंदरकोटियान पंचायत का पंजीयन है. उन्होंने बताया कि 100 वर्ष से भी अधिक पुराने दस्तावेजों में हाइदौस का जिक्र है.

Last Updated : Aug 9, 2022, 12:13 PM IST

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