बिलासपुर :आंखें किसी भी इंसान के लिए अनमोल हैं. आंखें न हों तो धन-संपत्ति, रुपये-पैसे सब बेकार. क्या कोई दोनों आंखों से नेत्रहीन व्यक्ति अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकता है. लाजिमी है आपका जवाब होगा नहीं. लेकिन आज हम आपको मिलवाएंगे इसे मुमकिन कर दिखाने वाले बिलासपुर के (Ghanshyam Vaishnav Bilaspur ) घनश्याम वैष्णव से. तो आइये जानते हैं घनश्याम की कहानी.
दोनों आंखों से नहीं देख पाते घनश्याम :बिलासपुर के सकरी निवासी घनश्याम वैष्णन बचपन से ही दोनों आंखों से नहीं देख पाते हैं. ईश्वर ने उनसे आंखें तो छीन लीं, लेकिन उन्हें भरपूर हुनर से नवाजा है. घनश्याम के गले में मां सरस्वती निवास करती हैं. इसी का नतीजा है कि वे पक्षियों की आवाज, कार बैक करने की आवाज, एंबुलेंस की आवाज के साथ-साथ दर्जनों तरह की आवाज के बेताज बादशाह हैं. इसी आवाज के जरिये वे अपना और अपनी मां का भरण-पोषण करते हैं.
रोटी की जुगाड़ रोज शहर निकलता है घनश्याम :सकरी से रोज एक नई उम्मीद के साथ नेत्रहीन धनश्याम अपनी बूढ़ी मां और अपने लिए दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में घर से शहर की ओर निकलता है. भिक्षा वृत्ति की बजाए खुदा से मिले टैलेंट के दम पर रोजगार चलकर परिवार का पेट चलाता है. बिलासपुर शहर से 10 किलोमीटर दूर सकरी गांव निवासी दृष्टिबाधित घनश्याम वैष्णव ने नेत्रहीन होने के बाद भी अपनी जमीर से समझौता नहीं किया. अपने हुनर से लोगों का दिल जीतकर मिलने वाली छोटी-मोटी रकम से अपना घर चला रहा है.
तीन माह की उम्र में ही चली गई थी आंखों की रोशनी :घनश्याम की आंखों की रोशनी बचपन में ही तीन माह की उम्र में चली गई थी. डॉक्टरों ने आंखों की जांच कर बताया कि आंखों की नसें सूख गई हैं. अब वह कभी देख नहीं सकेगा. उसका अंधत्व 100 फीसदी है. घनश्याम ने बताया कि महज 3 माह की उम्र में आंखों की रोशनी चली गई. गरीबी के चलते आखों का उचित इलाज नहीं हो सका. 4 साल की उम्र तक उसे हल्का-हल्का दिख रहा था. फिर इस बीच पिता की मौत हो गई और उसका इलाज भी नहीं हुआ.