इंफाल :हाल ही में हुए मणिपुर विधानसभा चुनाव 2022 की मतगणना न केवल मणिपुर बल्कि पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए भी महत्वपूर्ण है. इस क्षेत्र के राजनीतिक पंडितों का मानना है कि गुरुवार को मणिपुर चुनाव के नतीजे न केवल मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में अगले साल की शुरुआत में होने वाले चुनावों को प्रभावित करेंगे. सियासी समझ रखने वाले लोगों का मानना है कि पूर्वोत्तर में चुनावी सफलता भाजपा की संभावनाओं के दृष्टिकोण से भी अहम है. इनका मानना है कि साल 2016 के बाद पूर्वोत्तर में भाजपा का जनाधार लगातार बढ़ता दिख रहा है. मतदाताओं के रुझान में भी बदलाव देखा गया है.
भाजपा पहली बार 2016 में क्षेत्रीय दलों की मदद से असम में सत्ता में आई और 2021 में लगातार दूसरी बार भी सत्ता बरकरार रखी. भाजपा मणिपुर, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में भी सरकार बनाने में सफल रही. 2017, 2018 और 2019 के विधानसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद क्षेत्रीय दलों की मदद से भाजपा ने पूर्वोत्तर के कई राज्यों में सत्ता हासिल की.
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पांच साल बाद हुए मणिपुर विधानसभा चुनाव 2022 इसलिए अहम हैं क्योंकि मणिपुर सहित कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ भाजपा का गठबंधन तनावपूर्ण बना हुआ है. हाल ही में हुए मणिपुर चुनावों में, भाजपा ने नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) से अलग होकर पार्टी के उम्मीदवारों को स्वतंत्र रूप से मैदान में उतारा. एनपीपी और एनपीएफ ने न केवल भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए, बल्कि भाजपा के कई बागी विधायकों को भी जनाधार बढ़ाने में मदद की.
गौरतलब है कि भाजपा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर में दो बार प्रचार किया, जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी दो चरणों में होने वाले चुनावों से पहले दो बार राज्य का दौरा किया था. मणिपुर में रैलियों को संबोधित करने वाले अन्य वीवीआईपी प्रचारकों में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी शामिल रहीं.
इस बीच, मणिपुर में कांग्रेस के अभियान का नेतृत्व राहुल गांधी ने किया. यूपी की सड़कों पर ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार करती दिखीं प्रियंका गांधी ने मणिपुर में एक वर्चुअल रैली को संबोधित किया. कांग्रेस ने मणिपुर में चुनावों की देखरेख के लिए जयराम रमेश जैसे दिग्गजों को भी नियुक्त किया.
मणिपुर में मुद्दे
भाजपा लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए जी जान से प्रचार करती दिखी. सत्ता में लौटने के लिए भाजपा एन बीरेन सिंह सरकार द्वारा पिछले पांच वर्षों में किए गए विकास कार्यों के अलावा 'केंद्र की प्राथमिकता में पूर्वोत्तर' जैसे आधार पर वोट मांगती दिखी. विपक्षी कांग्रेस और अन्य दल उम्मीद कर रहे हैं कि केंद्र सरकार द्वारा सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को निरस्त करने में विफल रहना और मणिपुर की घाटी और पहाड़ियों के बीच विकास के पैमाने पर विभाजन, बेरोजगारी के बढ़ते मुद्दे और भाजपा की अंदरूनी कलह इस चुनाव में उनके पक्ष में काम करेगी.
विकास के दावे और जमीनी हकीकत
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मणिपुर में पिछले पांच वर्षों में विकास कार्य हुए हैं. सरकार कानून-व्यवस्था की स्थिति में काफी सुधार करने में सक्षम रही है. राज्य में बंद और नाकेबंदी जैसे अवरोध की संख्या में भारी गिरावट आई है. सरकार ने सड़क नेटवर्क में सुधार के लिए भी कदम उठाए हैं और अब मणिपुर के कई हिस्सों तक पहुंचना सुगम हुआ है. देश के रेल नेटवर्क से भी मणिपुर को जोड़ा गया है. भाजपा सरकार के कार्यकाल में ही इंफाल हवाई अड्डे को अपग्रेड किया गया है. अब यहां अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट की सेवाएं भी मिलेंगी. इसके अलावा प्रमुख भारतीय शहरों के साथ मणिपुर की कनेक्टिविटी में भी सुधार होगा. भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और आगामी 9,000 करोड़ रुपये की प्राकृतिक गैस पाइपलाइन की प्रस्तावित परियोजना मणिपुर समेत पूर्वोत्तर में सरकार के विकास के दावे की गवाही देते हैं.
निचले इलाकों में बदलाव
हालांकि, यह भी वास्तविकता है कि सरकार मणिपुर की पहाड़ियों और घाटी के बीच 'विकासात्मक विभाजन' को पाटने में विफल रही है. घाटी के नीचे के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण विकास देखा गया है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र और पहाड़ियों में लोगों के रहने की स्थिति में सुधार अभी बाकी है.
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मणिपुर विधानसभा चुनाव 2022 (Manipur Assembly Election 2022)
बता दें कि मणिपुर में 60 विधानसभा सीटें हैं. 2017 में कांग्रेस ने 28 और बीजेपी ने 21 सीटों पर जीत हासिल की थी. कोई भी दल अपने दम पर सरकार बनाने के लिए जरूरी 31 सीटों का जादुई आंकड़ा नहीं छू पाया, लेकिन मणिपुर में बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही.