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मणिपुर हमला उग्रवादी गतिविधियां भयावह और जटिल होने का संकेत - मणिपुर सेना पर हमला

मणिपुर के चुराचंदपुर जिले में भारत-म्यांमार सीमा के पास पिलर नंबर 43 के पास असम राइफल्स के काफिले पर हमला इस बात का संकेत है कि उग्रवादी गतिविधियों में तेजी अधिक भयावह, अस्थिर और जटिल हो सकती है. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट..

मणिपुर हमला
मणिपुर हमला

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Published : Nov 15, 2021, 5:32 PM IST

Updated : Nov 15, 2021, 6:18 PM IST

नई दिल्ली : मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में भारत-म्यांमार सीमा के पास असम राइफल्स के काफिले पर गत शनिवार हुए हमले में मणिपुर नगा पीपुल्स फ्रंट (MNPF) के शामिल होने की जानकारी सामने आई है. यह पूर्वोत्तर क्षेत्र में, विशेष रूप से संघर्षग्रस्त राज्यों में उग्रवाद दोबारा पनपने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है. एमएनपीएफ एक अपेक्षाकृत अज्ञात सशस्त्र संगठन है, जो उग्रवादी गतिविधियों में शामिल है.

उग्रवादियों ने शनिवार को घात लगाकर सेना के काफिले पर हमला किया गया था, जिसमें 46 असम राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल विप्लव त्रिपाठी, उनकी पत्नी और छह साल के बेटे सहित सात लोगों की जान चली गई थी. जिसमें क्विक रिएक्शन टीम के चार जवान शामिल थे.

यह 2015 के बाद पहला बड़ा हमला है. इससे पहले 4 जून, 2015 को पड़ोसी चंदेल जिले में उग्रवादी हमले में सेना के 18 जवान शहीद हुए थे.

उग्रवादी संगठन रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ) ने एक प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया गया था कि यह हमला इसकी सशस्त्र शाखा पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) और एमएनपीएफ द्वारा किया गया. साथ ही आरपीएफ ने कहा है कि हमलावरों को काफिले में शामिल अधिकारी के परिवार के सदस्यों के बारे में पता नहीं था.

पीएलए एक दशक पुराना सशस्त्र संगठन है, जिसमें ज्यादातर मणिपुरी मीतेइ समुदाय (Manipuri Meiteis) के सदस्य शामिल हैं. जबकि एमएनपीएफ में जेलियांग नगा (Zeliang Naga) समुदाय से संबंधित कैडर शामिल हैं जो मणिपुर, नागलैंड और असम के तीन राज्यों में फैले हुए हैं.

एमएनपीएफ का गठन जून 2013 में किया गया था, जो मुख्य रूप से मणिपुर के तामेंगलोंग जिले में स्थित बताया जाता है. एनएससीएन (आईएम) के कुछ जेलियांग नगा कैडर ने अलग होकर इसका गठन किया, जिसका उद्देश्य जेलियांग समुदाय (Zeliang community) के अधिकारों की रक्षा और सुरक्षा करना है.

एनएससीएन (आईएम) में मणिपुर की तंगखुल जनजाति (Tangkhul tribe) के लोगों का वर्चस्व है, जबकि दूसरा सबसे बड़ा कैडर जेलियांग जनजाति के लोगों का था. जेलियांग कैडर का एनएससीएन (आईएम) से अलग होना और एक अलग संगठन बनाना इस बात का संकेत है कि मणिपुर में नगाओं के बीच चुनौतीहीन तंगखुल प्रभुत्व अब शायद ऐसा नहीं रहा.

22 सितंबर, 2021 को एनएससीएन (आईएम) के संदिग्ध कैडर द्वारा जेलियांग समुदाय के नेता अथुआन अबोनमाई (Athuan Abonmai) की हत्या से तंगखुल और जेलियांग के बीच पहले से तनावपूर्ण संबंध और खराब हो गए थे.

एमएनपीएफ के पब्लिसिटी सेक्रेटरी थॉमस नुमाई ने एक बयान में तब कहा गया था कि उनके कुकर्मों और नागरिकों के उत्पीड़न के परिणामस्वरूप, एनएससीएन (आईएम) को अब नगालैंड के नगा लोगों से कोई समर्थन प्राप्त नहीं है.

यह भी पढ़ें- मणिपुर में सेना की टुकड़ी पर हुए आतंकी हमले में रायगढ़ के कर्नल विप्लव शहीद, बेटे-पत्नी की भी मौत

यह घटनाक्रम शक्तिशाली पीएलए के साथ एमएनपीएफ को सहयोग को दिखाता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से मणिपुर घाटी के अन्य प्रमुख उग्रवादी संगठनों के साथ जुड़ा हुआ है. मणिपुर के सबसे बड़े सशस्त्र समूहों UNLF, PREPAK, PREPAK-Pro, KCP, और KYKL के साथ PLA का आयोजन एक बड़े समूह के तहत किया जाता है, जिसे समन्वय समिति (CorCom) कहा जाता है.

मणिपुर में एनएससीएन (आईएम) विरोधी जेलियांग कैडर द्वारा एक सशस्त्र नगा अलगाववादी संगठन का उदय 24 साल से चल रही नगा शांति प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है.

ऐसे समय में जब सरकार विभिन्न नगा समूहों को एकजुट करने पर जोर दे रही थी ताकि आम सहमति से इसका समाधान किया जा सके. सच्चाई यह है कि एनएससीएन (आईएम) के विरोध में एक और नगा विद्रोही संगठन सिर उठा रहा है, जो नगा मुद्दे के अंतिम समाधान के रास्ते में प्रभावी रूप से रोड़ा बन सकता है.

Last Updated : Nov 15, 2021, 6:18 PM IST

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