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बंगाल में जीत के बाद राष्ट्रीय राजनीति में ममता की होगी अहम भूमिका

विधानसभा चुनाव में मिली शानदार जीत के बाद ममता बनर्जी खुद को विपक्षी नेताओं में सबसे अग्रणी मान सकती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने भाजपा नीत एनडीए के खिलाफ अभूतपूर्व जीत हासिल की है. ममता बनर्जी जिन्हें 'बंगाल की शेरनी' भी कहा जाता है, उनकी जीत के क्या मायने हैं यह समझने के लिए पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट

ममता बनर्जी
ममता बनर्जी

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Published : May 7, 2021, 2:41 AM IST

नई दिल्ली : पिछले दिनों खत्म हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में सबसे चर्चित और लंबे समय तक याद रखा जाने वाला चुनाव, पश्चिम बंगाल में हुआ. इसके कई निहितार्थ हैं और राष्ट्रीय राजनीति पर भी इस राज्य का चुनाव अपना प्रभाव रखता है. बहुत कम लोगों ने इस बात का अनुमान लगाया, हालांकि, एक चतुर राजनेता की तरह ममता बनर्जी इस बात को भांपने में कामयाब रहीं. ममता खुद पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस की मुखिया हैं.

ममता बनर्जी ने 28 मार्च, 2021 को एक पत्र लिखा, जिसके बाद अफवाहों को और बल मिला. संभावना जताई गई कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद एक अलग मोर्चा बनेगा ऐसे में गैर भाजपाई दलों में ममता प्रमुख भूमिका चाहती थीं. हालांकि यह तभी संभव होता जब तृणमूल कांग्रेस सत्ता में बरकरार रहे. गैर भाजपाई नेता और दलों में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो शरद पवार समेत डीएमके, समाजवादी पार्टी, राजद, शिवसेना, झारखंड मुक्ति मोर्चा, आम आदमी पार्टी, बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस सीपीआई(एमएल), नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी भी शामिल हैं.

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पश्चिम बंगाल की 294 सदस्यीय विधान सभा में 213 सीटों (लगभग 72 फीसद) पर जीत हासिल करने के बाद ममता बनर्जी ने अपनी साख और मजबूत की है, जबकि भाजपा तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें मात नहीं दे सकी. ममता की साख विपक्षी नेता के रूप में मजबूत है इसका प्रमाण मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बयान से भी मिलता है. कमलनाथ ने ममता बनर्जी को 'देश की नेता' करार दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि एक अप्रत्याशित चुनाव में ममता बनर्जी ने कड़े मुकाबले के बाद जीत हासिल की है, और लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगी.

ममता को इस बात का भी श्रेय दिया जाएगा कि उन्होंने भाजपा को पूर्वी भारत में पार्टी का प्रसार करने से रोक दिया. भाजपा पश्चिम बंगाल और ओडिसा में खुद को मजबूत करने का प्रयास कर रही है.

कृषि कानूनों को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन के कारण उत्तर भारत में भाजपा के जनाधार को नुकसान पहुंचा है. मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तर राजस्थान, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में भाजपा के खिलाफ आक्रोश देखा जा रहा है. हाल ही में खत्म हुए उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में भी भाजपा, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल से पिछड़ती दिखी. उत्तर प्रदेश में होने वाले 2022 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर स्थानीय निकाय चुनावों के परिणाम काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं

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किसी क्षेत्र में जनाधार घटने की भरपाई दूसरे इलाकों में जीत दर्ज कर की जा सकती है. ऐसे में पश्चिम बंगाल और ओडिसा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि, दक्षिण भारत में तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में अपेक्षित सफलता न मिलने से भी भाजपा को तगड़ा झटका लगा है. लोकसभा के दृष्टिकोण से ओडिशा और पश्चिम बंगाल में कुल 63 संसदीय सीटें हैं.

बदलते राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए कहा जा सकता है कि 2019 में मिली 303 सीटों पर जीत जैसा प्रदर्शन दोहराना भाजपा के लिए मुश्किल होगा. विधानसभा चुनाव में ममता को मिली जीत भाजपा को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, और इसलिए 2024 के लोकसभा चुनावों में ममता बनर्जी महत्वपूर्ण भूमिका मैं देखी जा सकती हैं.

हालांकि, ममता के रास्ते में भी कई विचित्र रुकावटें हैं. उन्होंने जिन दलों को पत्र लिखा है उनमें से कई एंटी-बीजेपी और एंटी-एनडीए मोर्चे में शामिल होने को तैयार नहीं हैं, इन दलों के आपस में भी कई मतभेद हैं, जैसे आम आदमी पार्टी और कांग्रेस.

ममता बनर्जी को सर्वसम्मति से नेता माने जाने का विषय अभी भी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद 'बंगाल की शेरनी' एक ऐसी स्थिति में है जहां वह भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय लिख सकती हैं.

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