नई दिल्ली : पिछले दिनों खत्म हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में सबसे चर्चित और लंबे समय तक याद रखा जाने वाला चुनाव, पश्चिम बंगाल में हुआ. इसके कई निहितार्थ हैं और राष्ट्रीय राजनीति पर भी इस राज्य का चुनाव अपना प्रभाव रखता है. बहुत कम लोगों ने इस बात का अनुमान लगाया, हालांकि, एक चतुर राजनेता की तरह ममता बनर्जी इस बात को भांपने में कामयाब रहीं. ममता खुद पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस की मुखिया हैं.
ममता बनर्जी ने 28 मार्च, 2021 को एक पत्र लिखा, जिसके बाद अफवाहों को और बल मिला. संभावना जताई गई कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद एक अलग मोर्चा बनेगा ऐसे में गैर भाजपाई दलों में ममता प्रमुख भूमिका चाहती थीं. हालांकि यह तभी संभव होता जब तृणमूल कांग्रेस सत्ता में बरकरार रहे. गैर भाजपाई नेता और दलों में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो शरद पवार समेत डीएमके, समाजवादी पार्टी, राजद, शिवसेना, झारखंड मुक्ति मोर्चा, आम आदमी पार्टी, बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस सीपीआई(एमएल), नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी भी शामिल हैं.
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पश्चिम बंगाल की 294 सदस्यीय विधान सभा में 213 सीटों (लगभग 72 फीसद) पर जीत हासिल करने के बाद ममता बनर्जी ने अपनी साख और मजबूत की है, जबकि भाजपा तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें मात नहीं दे सकी. ममता की साख विपक्षी नेता के रूप में मजबूत है इसका प्रमाण मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बयान से भी मिलता है. कमलनाथ ने ममता बनर्जी को 'देश की नेता' करार दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि एक अप्रत्याशित चुनाव में ममता बनर्जी ने कड़े मुकाबले के बाद जीत हासिल की है, और लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगी.
ममता को इस बात का भी श्रेय दिया जाएगा कि उन्होंने भाजपा को पूर्वी भारत में पार्टी का प्रसार करने से रोक दिया. भाजपा पश्चिम बंगाल और ओडिसा में खुद को मजबूत करने का प्रयास कर रही है.