हैदराबाद :अकीरा कुरोसावा, लुइस बुनूएल, इंगमार बर्गमैन, किसलोवस्की, जीन ल्यूक गोडार्ड, विश्व सिनेमा के ये सभी मास्टर केरल के फिल्म प्रेमियों से काफी परिचित हैं. छोटी सी केरल की फिल्म इंड्स्ट्री राज्य के सुदूर कोनों में पहले से काम कर रही है, जिसने लोगों को पैरलेल अंतर्राष्ट्रीय फिल्में दीं. टेलीविजन और वीडियो लाइब्रेरी की लोकप्रियता के साथ, ये फिल्मी समाज धीरे-धीरी गायब हो गईं.
हालांकि, हाल ही में लॉन्च किए गए कुछ क्षेत्रीय ओटीटी प्लेटफॉर्म वर्तमान दर्शकों को शॉर्ट फिल्में, पैरलेल फिल्में और छोटे बैनर की फिल्में दे रहे हैं.
उद्योग के विशेषज्ञों को लगता है कि कोविड को रोकने के लिए जब प्रतिबंध लगाए गए, तब इन ओटीटी ने इन्हें एक मंच पेश किया और अब उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है. ऐसे में जब थिएटरों को फिर से खोला जा रहा है. उन्हें अपने व्यवसाय को बनाए रखने में मदद मिलेगी.
उनका मानना है कि थिएटर रिलीज के लिए कतारबद्ध बड़े बैनर की फिल्मों के साथ, छोटे बैनर को अपनी रिलीज के लिए और लंबे समय तक स्क्रीन पर उपस्थिति के लिए इन ओटीटी प्लेटफार्मों पर निर्भर रहना होगा.
हाल ही में लॉन्च की गई दो एक्सक्लूसिव मलयालम कंटेंट OTT कंपनी नेस्ट्रीम और प्राइम रील, स्टार कास्ट या बड़े बैनर्स के बजाय क्वालिटी कंटेंट के सिद्धांत पर काम करते हैं.
केरल में नीस्ट्रीम के क्षेत्रीय प्रमुख चार्ल्स जॉर्ज का कहना है कि 'द ग्रेट इंडियन किचन' को अमेजन और नेटफ्लिक्स दोनों ने खारिज कर दिया था, लेकिन हमने फिल्म में गुणवत्ता देखी और पता था कि केरल में इसको लोग काफी पसंद करेंगे.
इस बीच जब फिल्म को लोकप्रियता मिली, तो नेस्ट्रीम को इसका लाभ मिल रहा और लोग इसको सब्स्क्राइब कर रहे हैं.
चार्ल्स जॉर्ज का कहना है कि हमारे अधिकांश सब्स्क्राइबर केरल के बाहर से हैं, जिनके पास नई मलयालम रिलीज देखने की बहुत कम गुंजाइश है.
कोच्चि स्थित ओटीटी प्लेटफॉर्म प्राइम रील्स अच्छी, सामाजिक रूप से प्रासंगिक फिल्मों को भी जगह देता है.
उनकी नवीनतम रिलीज, 'द कन्फेशंस ऑफ ए कोयल', एक यथार्थवादी फिल्म है जिसमें बाल यौन शोषण के मामलों पर चर्चा की गई है, जिसमें अपराधी करीबी रिश्तेदार हैं, जिसका निर्देशन जय जितिन प्रकाश ने किया है.
यह निर्देशक की पहली फिल्म है, लेकिन ओटीटी मंच इसे स्वीकार करने और इसकी सामग्री का सम्मान करने से नहीं कतराया.
केरल में हमेशा अच्छी फिल्मों की संस्कृति रही है, जो व्यावसायिक रूप से विफल रही है. शक्तिशाली वितरण नेटवर्क ने ऐसी अधिकांश फिल्मों को थियेटरों से बाहर रखा, जिससे उनकी व्यावसायिक व्यवहार्यता पर संदेह पैदा हुआ. अब भी, सिनेमाघरों में ऐसी फिल्मों की जीवन अवधि एक या दो सप्ताह तक ही सीमित है.
क्षेत्रीय ओटीटी प्लेटफॉर्म ऐसी फिल्मों के लिए लंबे समय तक प्रमुख स्थान सुनिश्चित करने के साथ-साथ मदद भी प्रदान करते हैं, लेकिन इंडस्ट्री के विशेषज्ञों का कहना है कि अच्छी फिल्में अब पैसा भी कमा रही हैं.