पटना: भारत जिसे 'सोने की चिड़िया' कहा जाता था, उसे ब्रिटिश हुकूमत ने अपने औपनिवेशिक काल में लूटने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी. हमारे घर से वे बेशकीमती कोहिनूर लेकर चले गए और बना दिया महारानी विक्टोरिया के सर का ताज, जो आज भी ब्रिटानिया हुकूमत काल की सबसे बड़ी जागीर है. जिसे पाने की चाहत आज हर भारतीय करता है, लेकिन इस ब्रिटानिया हुकूमत के दौरान एक वायसराय ऐसा भी था, जिसका बिहार आज भी कर्जदार है. उस वायसराय का नाम है लॉर्ड हार्डिंग.
दरअसल, जब बिहार और ओडिशा को बंगाल से अलग किया गया था तो उस दौरान इसकी भूमिका बांधने में सबसे बड़ा योगदान लॉर्ड हार्डिंग का माना जाता है. हार्डिंग ने न सिर्फ बिहार को आधुनिक भारत में एक अलग स्थान दिया, बल्कि उस गौरव को भी लौटाया जिसे कभी मगध के तौर पर जाना जाता था. वैसे तो बिहार और खासकर पटना का इतिहास नंद वंश और सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य से रहा है, लेकिन आधुनिक भारत के इतिहास में पटना को महत्व दिलाने का काम ब्रितानिया हुकूमत के नौकरशाह लॉर्ड हार्डिंग ने किया.
यूरोपीय वास्तुकला का नमूना क्यों बिहार के लिए खास है यह वायसराय
लॉर्ड हार्डिंग ही वह पहले शख्स थे, जिन्होंने साल 1911 में जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार में इस बात की घोषण की थी कि बंगाल विभाजन के बाद संयुक्त बिहार (तब बिहार, झारखंड और उड़ीसा एक प्रांत हुआ करते थे) की राजधानी पटना होगी. पटना को एक मूर्त रूप देने के लिए लॉर्ड हार्डिंग ने न्यूजीलैंड से आर्किटेक्ट जे एफ मुनिंग्स और आर्किटेक्ट जे एफ मुनिंग्स को बुलाया.
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पटना अंग्रेजों के लिए क्यों था खास शहर
पटना तीन नदियों (गंगा, सोन और गंडक) के किनारे बसा है और यहां से जलमार्ग द्वारा जहाजों से सामान ढुलाई बेहद कम खर्चीले तरीके से किया जा सकता था, इसलिए लॉर्ड हार्डिंग ने पटना को बिहार की राजधानी के रूप में चुना और उसे विकसित किया.
पटना में सड़कों पर चलते वक्त हम और आप जिन पुरानी इमारतों को टकटकी लगाए हुए निहारते रहते हैं वह लॉर्ड हार्डिंग की ही देन हैं. जिस पटना हाईकोर्ट याविधानसभा की इमारतों को देख हम मोहित होते हैं, जिस यूरोपीय वास्तुकला की इमारतों के तले आज हमारे माननीय बैठते हैं, उसका निर्माण लॉर्ड हार्डिंग ने ही करवाया था. यही नहीं इन सभी इमारतों को लॉर्ड हार्डिंग ने तब पूरा किया जब पहले वर्ल्ड वॉर के दौरान ब्रिटिश हुकूमत की जर्मनी ने कमर तोड़ रखी थी.
यूरोपीय वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ठ नमूना है पटना हाईकोर्ट
पटना उच्च न्यायालय यूरोपीय वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ट नमूना है. 1916 में तत्कालीन वायसराय लार्ड हार्डिंग ने औपचारिक रूप से 3 फरवरी, 1916 को शानदार समारोह में पैलेडियन डिजाइन से निर्मित नियोक्लासिकल शैली में बनी पटना हाई कोर्ट की विशाल इमारत का उद्घाटन किया था. चाल सेटिंग ने 1 दिसंबर, 1913 को इमारत की नींव रखी थी और तीन साल में उच्च न्यायालय बनकर तैयार हो गया था. 1936 में उड़ीसा से अलग होने के बावजूद 1948 तक पटना उच्च न्यायालय भवन में ही न्यायिक कार्य चलता था.
बुद्धिजीवी डॉक्टर संजय कुमार बताते हैं, लॉर्ड हार्डिंग आधुनिक पटना के शिल्पकार थे. उनके प्रयासों से ही पटना शहर अस्तित्व में आया. तमाम ऐतिहासिक इमारतें इस बात को तस्दीक करती हैं कि लॉर्ड हार्डिंग पटना को विकसित करने को लेकर कितने संवेदनशील थे.
इतिहासकार डॉ पांडेय जयशंकर ने बताया कि अंग्रेजी शासक होने के बावजूद लॉर्ड हार्डिंग के लिए बिहारवासियों के मन में सम्मान है. लॉर्ड हार्डिंग के प्रयासों से ही पटना में शैक्षणिक संस्थान के अलावा बिहार में अनेक सड़कों के निर्माण करवाया.
पटना में लॉर्ड हार्डिंग के नाम पर जहां हार्डिंग रोड अलग पहचान बनाए हुए है, वहीं लॉर्ड हार्डिंग की आदमकद मूर्ति बिहार म्यूजियम में स्थापित है. बिहार सरकार ने भी हार्डिंग पार्क को विकसित कर गौरवशाली अतीत को कायम करने की कोशिश की है.