नई दिल्ली : प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण ने शनिवार को कहा कि विधायिका कानूनों के प्रभाव का आकलन या अध्ययन नहीं करती है, जो कभी-कभी बड़े मुद्दों की ओर ले जाते हैं और परिणामस्वरूप न्यायपालिका पर मामलों का अधिक बोझ पड़ता है.
प्रधान न्यायाधीश ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि विशेष बुनियादी ढांचे के निर्माण के बिना मौजूदा अदालतों को वाणिज्यिक अदालतों के रूप में पेश करने से लंबित मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. न्यायाधीशों और वकीलों को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति रमण ने कहा, हमें याद रखना चाहिए कि जो भी आलोचना हो या हमारे सामने बाधा आए, न्याय प्रदान करने का हमारा मिशन नहीं रुक सकता है. हमें न्यायपालिका को मजबूत करने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपने कर्तव्य का पालन करने को लेकर आगे बढ़ना होगा.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू की उपस्थिति में संविधान दिवस समारोह के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायपालिका में मामलों के लंबित होने का मुद्दा बहुआयामी प्रकृति का है और उम्मीद है कि सरकार इस दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान प्राप्त सुझावों पर विचार करेगी तथा मौजूदा मुद्दों का समाधान करेगी.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, एक और मुद्दा यह है कि विधायिका अपने द्वारा पारित कानूनों के प्रभाव का अध्ययन या आकलन नहीं करती है. यह कभी-कभी बड़े मुद्दों की ओर ले जाता है. परक्राम्य लिखत कानून की धारा 138 की शुरूआत इसका एक उदाहरण है. पहले से मुकदमों का बोझ झेल रहे मजिस्ट्रेट इन हजारों मामलों के बोझ से दब गए हैं. इसी तरह, मौजूदा अदालतों को एक विशेष बुनियादी ढांचे के निर्माण के बिना वाणिज्यिक अदालतों के रूप में पेश करने से लंबित मामलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
परक्राम्य लिखत कानून की धारा 138 बैंक खातों में पर्याप्त धन नहीं रहने पर चेक बाउन्स होने से संबंधित मामलों से जुड़ी है.