शिमला : दुनिया में जिस समय वैश्विक महामारी कोरोना का संकटपूर्ण दौर आया, सबसे पहले चर्चा में आने वाला शब्द हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन था. इन दिनों देश-दुनिया में एक और शब्द की चर्चा है. ये नाम स्पूत्निक-वी का है. रूस की इस वैक्सीन का उत्पादन हिमाचल में शुरू होना प्रस्तावित है.
इस तरह वैश्विक महामारी कोरोना के कठिन समय में हिमाचल का एक खास एरिया लगातार चर्चा में बना हुआ है. इस इलाके का नाम बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ है. इसे शॉर्ट में बीबीएन कहते हैं. बीबीएन एशिया का फार्मा हब है. यहां सालाना 40 हजार करोड़ रुपए से अधिक की दवाएं बनती हैं.
देश में सालाना 75 हजार करोड़ रुपए से अधिक का फार्मा कारोबार है. इसका बड़ा हिस्सा हिमाचल के सोलन जिला के बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ में तैयार होता है. पिछले साल यहां से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन अमेरिका और दुनिया के अन्य देशों को भेजी गई. अकेले अमेरिका को 50 लाख टैबलेट भेजी गई थीं. रेमडिसिवर इंजेक्शन भी यहीं की कंपनी डॉ. रेड्डीज लैब में तैयार होता है.
को-वैक्सीन के बाद अब स्पूत्निक टीके के उत्पादन के कारण बीबीएन सुर्खियों में है. इसके लिए पेनेशिया बॉयोटेक का नाम सुखियां बटोर रहा है. ये कंपनी भी बद्दी में है. आखिर क्या है बीबीएन की खासियत और क्यों इसे एशिया का फार्मा हब कहते हैं, इन जिज्ञासाओं का शमन करने के लिए आगे की खबर पढ़ना जरूरी है.
अमेरिका तक को दी गई यहां से दवा
दुनिया भर में जितनी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन तैयार होती है, उसका सत्तर फीसदी भारत में बनता है. देश में भी अधिकांश हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन बीबीएन में बनती है. अमेरिका को भी यहीं से सप्लाई की गई थी. कोरोना की पहली लहर में उक्त दवा के लिए दुनिया की नजरें भारत पर थीं.
देश में मिलने वाली हर तीसरी दवा का निर्माण बीबीएन में होता है. हिमाचल में करीब 700 दवा उद्योग स्थापित हैं. जिनमें से 200 से ज्यादा ईयू से, इतने ही डब्ल्यूएचओ व जीएमपी से तथा अन्य इकाइयां यूएसएफडीए से मंजूर हैं. यदि यहां और अधिक फार्मा इकाइयों को लाइसेंस मिल जाए तो देश भर की दवाइयों की जरूरत अकेले बीबीएन पूरी कर सकता है.
हिमाचल में मात्र चार से पांच फीसदी दवा निर्माताओं के पास क्लोरोक्वीन व एंटीबॉयोटिक एजिथ्रोमाइसिन टैबलेट का लाइसेंस है. यदि प्रदेश के हर फार्मा उत्पादक को लाइसेंस मिल जाता है तो पूरे देश के लिए यह दवा यहां से उपलब्ध करवाई जा सकती है. कैडिला कंपनी सहित तीस अन्य कंपनियां हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन बनाती हैं.
शांत वातावरण में खिल रहा फार्मा कारोबार
हिमाचल के सोलन जिला का बीबीएन इलाका तीन क्षेत्रों को मिलाकर बना है. बद्दी-बरोटीवाला और नालागढ़. बीबीएन की अहमियत का पता इस बात से चलता है कि यहां के लिए अलग से पुलिस का एसपी तैनात है. इसे पुलिस जिला बनाया गया है. वैसे तो ये विशाल इंडस्ट्रियल एरिया है, लेकिन इसकी पहचान एशिया का फार्मा हब के तौर पर है.
कोरोना के समय में इस एरिया की अहमियत और भी बढ़ी है. विप्रो, कोलगेट-पामोलिव, डाबर, सिप्ला, रैनबेक्सी, टौरेक्स फार्मा और कैडिला सहित पेनेशिया बॉयोटेक यहीं पर काम कर रही हैं. पेनेशिया बॉयोटेक में ही स्पूत्निक-वी का निर्माण होगा. इससे पूर्व को-वैक्सीन के निर्माण को लेकर भी यही कंपनी सक्रिय हुई है. डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरी में रेमडेसिविर इंजेक्शन भी तैयार किया जाता रहा है.
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अन्य राज्यों के मुकाबले बेहतर कानून-व्यवस्था
देश-दुनिया की विभिन्न प्रतिष्ठित दवा कंपनियां हिमाचल के इस शांत वातावरण में निर्भय होकर से कारोबार कर रही हैं. श्रमिक हड़ताल को लेकर कहीं से कोई खबर नहीं सुनाई देती. दिन भर काम-काज की भागम-भाग के बाद उद्यमियों, फैक्ट्री प्रबंधकों, अधिकारियों व कर्मियों को गपशप लगाते आराम से घर जाते देखा जा सकता है. देश के अन्य राज्यों के मुकाबले कानून-व्यवस्था की बेहतर स्थिति के कारण यहां उद्योग-धंधा खूब फल-फूल रहा है.
देश में सालाना 75 हजार करोड़ के दवा उद्योग का अधिकांश कारोबार अकेले इसी औद्योगिक क्षेत्र में है. बद्दी तो दवा उद्योग के बादशाह के रूप में पहचान बना ही चुका है, साथ लगते औद्योगिक क्षेत्र बरोटीवाला व नालागढ़ में पैकेजिंग यूनिट्स, स्पिनिंग मिल्स व इंजीनियरिंग सहित कल-पुर्जों के कारखाने मौजूद हैं.
ऐसा है माहौल बीबीएन का