नई दिल्ली:IPC की धारा 124-ए यानी राजद्रोह कानून पर सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की ओर से की गई तल्ख और सख्त टिप्पणी के बाद से कानून एक बार फिर से चर्चा में है. देश की सुप्रीम अदालत ने याचिका पर सुनवाई करते हुए इसके दुरुपयोग और इस पर कार्यपालिका की जवाबदेही की स्थिति पर चिंता जाहिर की और साफ तौर पर कहा कि देश को स्वतंत्र हुए 75 साल बीत गए, फिर भी इस कानून का अस्तित्व होना बेहद चिंताजनक है. न्यायालय ने कहा कि अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए इस कानून का उपयोग स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom Movement) के नायक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की आवाज को दबाने के लिए किया जाता था. ये तीखी टिप्पणियां चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है.
दरअसल, साल 1870 में वहाबी क्रांति के बाद अंग्रेजों ने अपनी सरकार का विरोध करने वालों की आवाजों को दबाने के लिए राजद्रोह कानून देश में लागू किया था. देश में पहली इस कानून के तहत महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ 1897 में इसे लागू किया गया. फिर तो कई स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस कानून के तहत कार्रवाई की गई. महात्मा गांधी के खिलाफ भी अंग्रेजी सरकार ने इसका इस्तेमाल किया था. जहां तक बात दुनिया के अन्य देशों की है तो ये काला कानून अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, मलेशिया, सूडान, ईरान, तुर्की आदि देश शामिल हैं.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार 5 सालों में दर्ज मामले जानें कानून के बारे में
भारतीय कानून संहिता (IPC) की धारा 124-ए के अनुसार, सरकार के खिलाफ लिखना, बोलना, प्रचारित या प्रसारित करना जिससे शांति भंग हो, राजद्रोह की श्रेणी में आएगा. साथ ही राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों और संविधान का अपमान करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ भी राजद्रोह के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है.
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कानून के तहत सजा के प्रावधान की बात करें तो इसके दोषी को 3 साल या फिर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है और दोषी पर जुर्माना लग सकता है. इसके तहत दोषी की जमानत नहीं हो सकती.
जानें क्या कहाSupreme Courtने
देश में अभिव्यक्ति की आजादी नागरिकों को मौलिक अधिकार है. ऐसे में राजद्रोह कानून से नागरिकों की अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का हनन ना हो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1962 में केदारनाथ सिंह वर्सेस बिहार सरकार फैसले में कहा कि हर नागरिक को सरकार की नीतियों की आलोचना करने या फिर टिप्पणी करने का अधिकार है लेकिन उस टिप्पणी से हिंसा नहीं भड़कनी चाहिए या फिर कानून व्यवस्था नहीं बिगड़नी चाहिए.
राज्यवार जानें इस कानून के तहत कितनों पर हुई है कार्रवाई
- असम में दर्ज किए गए 56 मामलों में से 26 में आरोप पत्र दाखिल किए गए और 25 मामलों में मुकदमे की सुनवाई पूरी हुई.
- झारखंड में 40 मामले दर्ज किए गए जिनमें से 29 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गए और 16 मामलों में सुनवाई पूरी हुई जिनमें से एक व्यक्ति को ही दोषी ठहराया गया.
- हरियाणा में 31 दर्ज मामलों में 19 में आरोप पत्र दाखिल और 6 में सुनवाई पूरी हुई जिनमें महज एक व्यक्ति की दोष सिद्धि हुई.
- बिहार, जम्मू कश्मीर और केरल में क्रमश: 25 25 मामले दर्ज किए गए. बिहार और केरल में किसी भी मामले में आरोप पत्र दाखिल नहीं किए जा सके. वहीं, जम्मू-कश्मीर में 3 मामलों में आरोप पत्र दाखिल हुए. हालांकि तीनों राज्यों में किसी को भी सजा नहीं हुई
- कर्नाटक में राजद्रोह के 22 दर्ज मामलों में 17 मामलों में आरोप पत्र दाखिल हुई. सिर्फ एक मामले में सुनवाई पूरी की जा सकी और किसी को दोषी नहीं ठहराया गया
- यूपी में 17 मामले व पश्चिम बंगाल में आठ मामले दर्ज किए गए. उत्तर प्रदेश में 8 और पश्चिम बंगाल में 5 मामलों में आरोप पत्र दाखिल हुए लेकिन दोनों राज्यों में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया.
- दिल्ली में 4 मामले दर्ज किए गए, लेकिन किसी में भी आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया.
- मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, पुडुचेरी, चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा और नागर हवेली में छह वर्षों में राजद्रोह का कोई मामला दर्ज नहीं किया गया.
- महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तराखंड में राजद्रोह का एक-एक मामला दर्ज किया गया.
(स्रोत-केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से साल 2014-19 में एकत्रित आंकड़ों के अनुसार.)