हैदराबाद :कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व होता है. इस बार एकादशी 25 नवंबर को है. इस एकादशी को देवउठनी, देवोत्थान और देवप्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. देवउठनी एकादशी के बारे में मान्यता है कि भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा के बाद इसी तिथि पर जागते हैं. यह एकादशी दीपावली के बाद मनाई जाती है. इस दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है. इसी के साथ चतुर्मास भी समाप्त हो जाएगा. देवउठनी एकादशी के बाद विवाह कार्यक्रम फिर से आरंभ हो जाएंगे.
कहा जाता है कि तुलसी वैष्णवों के लिए परमाराध्य हैं. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में भगवान श्री शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह बड़े धूमधाम से किया जाता है. वाराणसी के ज्योतिषाचार्य गणेश प्रसाद मिश्र का कहना है कि देवउठनी एकादशी पर बेहद शुभ संयोग बन रहा है. इस दिन की शुरुआत सर्वार्थसिद्धि नामक योग से हो रही है, जिसे बेहद कल्याणकारी माना गया है. इस योग में व्रत करने से इसका फल कई जन्मों तक मिलता रहेगा. यह योग सुबह 6.52 से शाम 6.21 बजे तक रहेगा.
एकादशी से जुड़ी कथा
देवउठनी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान क्षणभर भी सोते नहीं है, फिर भी भक्तों की भावना यथा देहे तथा देवे के अनुसार भगवान चार महीने सोते हैं. भगवान विष्णु के क्षीर शयन के विषय में कथा प्रसिद्ध है, जिसमें कहा गया है कि भगवान ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को मारा था. उसके बाद थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में जाकर सो गए.
भगवान विष्णु चार मास तक सोते रहे और कार्तिक शुक्ल एकादशी को नींद से जागे. इसी से इस एकादशी का नाम देवोत्थान या प्रबोधनी एकादशी पड़ गया. वाराणसी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश प्रसाद मिश्र कहते हैं कि इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है. पद्मपुराण के अनुसार इस दिन व्रत करने से सारे पापों और कष्टों से मुक्ती मिल जाती है. यदि कोई उपवास न कर सके, तो एक समय फलाहार करना चाहिए और समय-नियमपूर्वक रहना चाहिए.
इस तिथि पर रात्र जागरण करने से विशेष फल की प्राप्ती होती है. रात्रि में कीर्तन, वाद्य, नृत्य और पुराणों का पाठ करना चाहिए, जिससे विशेष फल मिलता है. धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गन्ध, चन्दन, फल और अर्घ्य आदि से भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि से भगवान की प्रार्थना की जाती है.
बेहद शुभ फल देता है तुलसी विवाह