नई दिल्ली :सरकार ने कहा है किकपास के आयात पर सीमा शुल्क में छूट देने से कीमतों में कमी लाने में मदद मिल सकती है. वहीं किसान महासभा ने सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने कॉरपोरेट टेक्सटाइल कंपनियों के इशारे पर इसे किया है. बता दें कि हाल ही में केंद्र सरकार ने 14 अप्रैल से 30 सितंबर तक सभी कपास आयातों पर सीमा शुल्क में छूट दी है. भारत में कपास के आयात पर टैक्स और अधिभार सहित लगभग 11 प्रतिशत कर लगता है.
इस संबंध में अखिल भारतीय किसान महासभा (एआईकेएस) के अध्यक्ष अशोक धवले ने अपने एक बयान में कहा है कि यह कदम भारत में किसानों द्वारा उगाए गए कपास की सुनिश्चित लाभकारी कीमतों और खरीद को तय बगैर किया उठाया गया है. इससे चीन, ब्राजील और संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य स्थानों से सस्ते में कापस आने की संभावना है. धवले ने कहा कि इस वजह से देश के संकटग्रस्त कपास किसानों पर कीमतों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से बोझ पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में कपास के क्षेत्र में संकट में किसानों के द्वारा सबसे अधिक आत्महत्या करने का मामला सामने आ चुका है.
दूसरी तरफ भाजपा सरकार का दावा है कि कपड़ा उद्योग को कच्चे माल की कमी से निपटने में यह निर्णय कारगर जरूरी हो गया है. वहीं वित्त मंत्रालय का कहना है कि देश में कपास की अपेक्षित पैदावार से कमी की वजह से घरेलू कपास की कीमतों में उछाल के कारण आयात शुल्क को समाप्त किया जाना आवश्यक था. मंत्रालय ने कहा है कि सरकार के इस कदम से घरेलू कपड़ा उद्योगों की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता के दबाव को कम करने में मदद मिलेगी, वहीं इससे उपभोक्ताओं को भी राहत मिलेगी. हालांकि बड़े कारपोरेट कपड़ा उद्योग कभी भी उपभोक्ताओं को सस्ते कच्चे माल का लाभ नहीं मुहैया कराते हैं बल्कि वे केवल लाभ को अधिकतम करने के उद्देश्य से चलाए जाते हैं.