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ह्युमैनिटेरियन पॉज या सीजफायर, इन दो शब्दों के चक्कर में गाजा के लोगों को नहीं मिल रही मदद - unsc gaza resolution

गाजा के लोगों को किस तरह से मदद पहुंचाई जाए, इस पर संयुक्त राष्ट्र में मतभेद है. दो शब्दों के चक्कर में अलग-अलग देशों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है. एक तरफ जहां अमेरिका चाहता है कि लड़ाई को पॉज कर मदद की जाए, वहीं दूसरी ओर रूस और चीन जैसे देश हैं जो चाहते हैं कि मदद पहुंचाने के लिए अविलंब सीजफायर हो. वरिष्ठ पत्रकार अरुणिम भुइयां का एक विश्लेषण.

UN fails on Gaza
संयुक्त राष्ट्र हुआ फेल

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 8, 2023, 7:06 PM IST

नई दिल्ली : इजराइल और हमास के बीच युद्ध जारी है, इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कोई भी ठोस कदम उठाने में नाकामयाब रहा है. वह यह निर्णय नहीं ले पा रहा है कि गाजा के आमलोगों को युद्ध के बीच किस तरह से मानवीय मदद दी जा सके. मानवीय आधार पर अमेरिका ह्युमैनिटेरियन पॉज चाहता है, ताकि लोगों तक सहायता सामग्री पहुंच सके, जबकि सुरक्षा परिषद के दूसरे देश चाहते हैं कि अविलंब सीजफायर हो.

अमेरिका के राजदूत रॉबर्ट वूड ने कहा कि सुरक्षा परिषद में मतभेद है. उनके अनुसार कुछ देश सीजफायर चाहते हैं, जबकि कुछ देश पॉज चाहते हैं. उनका बयान उस समय आया है, जबकि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने तुरंत सीजफायर की अपील की है. यह पांचवीं बार है कि गाजा मामले पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद शांति स्थापित करने के लिए कोई भी संकल्प पारित नहीं करा सका.

सबसे पहले 16 अक्टूबर को रूस एक प्रस्ताव लेकर सामने आया था. इसमें उसने कहा था कि जिन लोगों को बंधक बनाया गया है, उसे रिहा किया जाए और आम लोगों तक सहायता शीघ्र से शीघ्र पहुंचाया जाए. इस प्रस्ताव के पक्ष में रूस के अलावा चीन और यूएई ने मतदान किया, जबकि फ्रांस, जापान, अमेरिका और यूके ने विरोध में मत किया, जबकि छह सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. इनमें ब्राजील, ईक्वाडोर और स्विटजरलैंड शामिल है.

इसके दो दिन बाद ब्राजील प्रस्ताव लेकर आया. इसने गाजा में मानवीय मदद पहुंचाए जाने की अपील की. नागरिकों पर हो रहे हिंसा की निंदा करने करने का प्रस्ताव दिया. प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि इजराइल के उस आदेश को तुरंत वापस लिया जाए, जिसमें उसने फिलिस्तीनियों को उत्तरी गाजा छोड़कर दक्षिणी गाजा में जाने को कहा है. यूएनएससी के 12 सदस्यों ने फेवर में मतदान किया, रूस और यूके गैर हाजिर रहे, जबकि अमेरिका ने इस प्रस्ताव को ही वीटो कर दिया.

फिर 25 अक्टूबर को एक नया प्रस्ताव सामने लाया गया. इसे भी रूस लेकर आया. इसने इजराइल को उस आदेश को वापस लेने को कहा, जिसमें फिलिस्तीनियों को उत्तरी गाजा छोड़ने को कहा गया था. इसमें कहीं भी इजराइल के सेल्फ डिफेंस के अधिकार का जिक्र नहीं था. जाहिर है, अमेरिका और यूके ने इसे वीटो कर दिया. नौ देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जबकि रूस, चीन, यूएई और गिबॉन ने समर्थन किया था.

उसी दिन अमेरिका एक और प्रस्ताव लेकर सामने आया. इसने अपने प्रस्ताव में ह्युमैनिटेरियन पॉज शब्द का इस्तेमाल किया, न कि सीजफायर का. इसने सभी देशों को अपने आत्म रक्षा करने के अधिकार का समर्थन किया. इसने अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने की भी सलाह दी, साथ ही हमास द्वारा बंदी बनाए गए सभी लोगों को तुरंत रिहा किए जाने की अपील की. 10 देशों ने इसका समर्थन किया, जबकि रूस और चीन ने इसे वीटो कर दिया, जबकि ब्राजील और मोजांबिक गैर हाजिर रहे.

आखिरकार 26 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने एक प्रस्ताव को स्वीकार किया. इसमें मानवीयता के आधार पर युद्ध वाले इलाके में शांति की अपील की गई. फिलिस्तीनियों ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया. इजराइल ने इसे यूएन और मानवता के इतिहास में काला दिन बताया. यहां आपको बता दें कि यूएनजीए का संकल्प किसी भी देश पर बाध्यकारी नहीं होता है. यह संबंधित पक्षों से सिर्फ अपील कर सकता है.

यही वजह है कि यूएनजीए की जगह पर अगर कोई भी प्रस्ताव यूएनएससी पारित करता है, तो वह अधिक प्रभावकारी होता है. इसके निर्णय अंतरराष्ट्रीय कानूनों के हिसाब से बाध्यकारी होते हैं. यूएनएससी में 15 देश होते हैं. चीन, फ्रांस, रूस, यूके, अमेरिका पांचों देश स्थायी सदस्य हैं. बाकी के 10 देश अस्थायी तौर पर सदस्य होते हैं. उनका चयन यूएनजीए से होता है. 15 में से अगर नौ देशों ने हां पर सहमति जता दी, तो उस प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है. लेकिन किसी भी देश ने अगर वीटो कर दिया, तो फिर वोटिंग का कोई भी मतलब नहीं रह जाता है. यूएनएससी के प्रस्ताव के बाद सोमवार को इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अल्पविराम की बात को साफ तौर पर नकार दिया.

ईटीवी भारत से बात करते हुए उसानास फाउंडेशन थिंक टैंक के संस्थापक और सीईओ अभिनव पांड्या ने कहा कि ह्युमैनिटेरियन पॉज या विराम देशों को युद्ध जारी रखने की स्वतंत्रता देता है. उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान फंसे हुए आम नागरिकों को मदद पहुंचाने के लिए अल्पकालिक समय दिया जाता है, ताकि उन्हें राहत सामग्री मिल सके. पर सीजफायर हो जाता है, तो दोनों ही पक्षों को लंबा समय मिल जाता है. इस दौरान युद्ध भी बंद हो जाते हैं. इसके बाद बातचीत शुरू होने की भी संभवान बनी रहती है और आम लोगों का नुकसान होना बंद हो जाता है.

जहां तक अमेरिका की बात है, तो वह इजराइल के पक्ष में खड़ा है. वह चाहता है कि युद्ध जारी रहे, लेकिन साथ ही आम नागरिकों को नुकसान न पहुंचे, इसके लिए भी वह अपनी चिंता प्रकट कर रहा है. लेकिन ग्लोबल साउथ के अधिकांश देश चाहते हैं कि यूएनजीए के संकल्प को लागू किया जाए.

इन सारे सवालों के बीच भारत के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि क्या उसे हमास को आतंकी संगठन घोषित कर देना चाहिए, जैसा कि इजराइल के भारत में राजदूत नाओर गिलोन ने कुछ दिनों पहले अपील की थी. गिलोन का मानना है कि बिना हमास को नष्ट किए हुए शांति संभव नहीं है और यही वह रास्ता है, जो लोगों को आतंकवाद के रास्ते पर जाने से हतोत्साहित करेगी.

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