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India Justice Report 2022 : न्याय देने के मामले में कर्नाटक अव्वल, टॉप 5 में चार दक्षिणी राज्य शामिल

आम लोगों की न्याय तक पहुंच के मामले में कर्नाटक देश के विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में अव्वल है, जबकि दूसरा स्थान तमिलनाडु ने हासिल किया है. आईजेआर 2022 में इस बाबत मंगलवार को घोषणा की गई. रिपोर्ट के अनुसार, न्याय तक सुगम पहुंच प्रदान करने वाले पांच शीर्ष राज्यों में चार दक्षिणी भारत से हैं. एक करोड़ से अधिक आबादी वाले बड़े राज्यों की इस सूची में तीसरा स्थान तेलंगाना ने हासिल किया है, जबकि गुजरात और आंध्र प्रदेश क्रमश: चौथे और पांचवें स्थान पर हैं.

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Published : Apr 4, 2023, 7:46 PM IST

नई दिल्ली : आम लोगों की न्याय तक पहुंच के मामले में कर्नाटक देश के विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में अव्वल है, जबकि दूसरा स्थान तमिलनाडु ने हासिल किया है. ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट’ (आईजेआर)-2022 में इस बाबत मंगलवार को घोषणा की गई. रिपोर्ट के अनुसार, न्याय तक सुगम पहुंच प्रदान करने वाले पांच शीर्ष राज्यों में चार दक्षिणी भारत से हैं. एक करोड़ से अधिक आबादी वाले बड़े राज्यों की इस सूची में तीसरा स्थान तेलंगाना ने हासिल किया है, जबकि गुजरात और आंध्र प्रदेश क्रमश: चौथे और पांचवें स्थान पर हैं. वर्ष 2020 के छठे स्थान की तुलना में गुजरात ने इस बार तीन पायदान की छलांग लगायी, जबकि आंध्र प्रदेश 12वें पायदान से सीधे पांचवें स्थान पर पहुंच गया है.

रिपोर्ट ने हालांकि, इस पहलू को भी उजागर किया है कि दिल्ली और चंडीगढ़ को छोड़कर, कोई भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश न्यायपालिका पर अपने कुल वार्षिक व्यय का एक प्रतिशत से अधिक खर्च नहीं करता है. टाटा ट्रस्ट की ओर से 2019 में शुरू की गयी आईजेआर के तीसरे संस्करण में यह भी कहा गया है कि एक करोड़ से कम आबादी वाले सात छोटे राज्यों की सूची में सिक्किम ने इस मामले में पहला स्थान हासिल किया है. रिपोर्ट के अनुसार, इस श्रेणी में अरुणाचल प्रदेश दूसरे और त्रिपुरा तीसरे स्थान पर है. वर्ष 2020 में सिक्किम जहां दूसरे स्थान पर था, वहीं अरुणाचल प्रदेश पांचवे स्थान पर था. रिपोर्ट के अनुसार, त्रिपुरा हालांकि पहले स्थान से खिसककर तीसरे स्थान पर पहुंच गया है.

आईजेआर में न्यायपालिका में रिक्तियों, बजटीय आवंटन, बुनियादी ढांचे, मानव संसाधन, कानूनी सहायता, जेलों की स्थिति, पुलिस और राज्य मानवाधिकार आयोगों के कामकाज जैसे विभिन्न मापदंडों पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है. आईजीआर-2022 के अनुसार, देश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 30 प्रतिशत पद खाली हैं, जबकि अधीनस्थ अदालतों में यह आंकड़ा 22 प्रतिशत का है. रिपोर्ट बताती है कि उच्च न्यायालयों में स्टाफ की कमी निर्धारित संख्या का 26 प्रतिशत है. रिपोर्ट में पुलिस बल, अधिकारियों, कारा अधिकारियों, कारा चिकित्सा स्टाफ आदि की निर्धारित पदों पर भी रिक्तियों का लेखा प्रस्तुत किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कारा चिकित्सा अधिकारियों के 48 प्रतिशत पद रिक्त हैं, जबकि पुलिस कांस्टेबल के 22 फीसदी तथा पुलिस अधिकारी के 29 फीसदी पद खाली पड़े हैं.

आईजेआर के अनुसार, कुछ राज्यों ने खाली पदों को भरने के लिए सशक्त प्रयास किये हैं. रिपोर्ट में कहा गया है तेलंगाना में कांस्टेबुलरी की रिक्तियों को 40 फीसदी से घटाकर 26 फीसदी किया गया है, जबकि मध्य प्रदेश में अधिकारियों की रिक्तियां 49 प्रतिशत से 21 प्रतिशत पर लाई गई हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, स्वीकृत क्षमता के सापेक्ष गणना करने पर पाया गया कि दिसंबर 2022 तक, देश में प्रत्येक 10 लाख लोगों के लिए 19 न्यायाधीश थे और 4.8 करोड़ मामले लंबित थे, जबकि 1987 की शुरुआत में विधि आयोग ने निर्देश दिए थे कि यह संख्या एक दशक के अन्दर 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की हो जानी चाहिए.

रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस बल में महिलाओं की कुल हिस्सेदारी लगभग 11.75 प्रतिशत है, हालांकि, अधिकारी रैंक में यह अब भी कम महज आठ फीसदी है. रिपोर्ट बताती है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में महिलाओं की भागीदारी केवल 13 फीसदी और अधीनस्थ अदालतों में महिला न्यायाधीशों की संख्या 35 प्रतिशत है. रिपोर्ट में बताया गया है कि ज्यादातर राज्यों ने वकीलों के पैनल में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाई है तथा राष्ट्रीय स्तर पर, यह हिस्सेदारी 18 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई है. आईजेआर के अनुसार, 28 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च न्यायालयों में हर चार में से एक मामला पांच साल से अधिक समय से लंबित है, जबकि 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के जिला अदालतों में प्रत्येक चार में से एक मामला पांच वर्ष से अधिक समय से लंबित है. रिपोर्ट में इस पहलू का भी जिक्र किया गया है कि मुफ्त कानूनी सहायता पर भारत का प्रति व्यक्ति खर्च मात्र 3.84 रुपये प्रति वर्ष है, जबकि इसके लिए भारत की 80 प्रतिशत आबादी पात्र है.

(पीटीआई-भाषा)

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