नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों को मौखिक निर्देश देने से बचना चाहिए क्योंकि यह न्यायिक रिकार्ड का हिस्सा नहीं होता. शीर्ष अदालत ने कहा कि वहां न्यायिक जवाबदेही का तत्व खो जाता है, जहां मौखिक शासन होता है. यह एक खतरनाक मिसाल कायम करता है, जो कि अस्वीकार्य है.
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक फैसले के खिलाफ अपील पर एक फैसले में यह टिप्पणी की है. जिसमें धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के मामले में एक आरोपी को गिरफ्तार नहीं करने का मौखिक निर्देश जारी किया गया था.
बेंच ने कहा कि अदालत में मौखिक टिप्पणियां न्यायिक प्रवचन के दौरान होती हैं. एक लिखित आदेश बाध्यकारी और लागू करने योग्य होता है. मौखिक निर्देश जारी करना (संभवतः सरकारी अभियोजक को) गिरफ्तारी को रोकना, न्यायिक रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं बनता है और इससे बचना चाहिए.
शीर्ष अदालत ने कहा कि पहले प्रतिवादी की गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा मौखिक निर्देश जारी करने की प्रक्रिया अनियमित थी. पीठ ने कहा कि यदि उच्च न्यायालय का विचार है कि पक्षकारों के वकील को समझौते की संभावना तलाशने का अवसर दिया जाना चाहिए.
इस आधार पर गिरफ्तारी के खिलाफ अंतरिम संरक्षण दिया जाना चाहिए तो इसके लिए एक विशिष्ट न्यायिक आदेश जारी किया जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायिक आदेश के अभाव में जांच अधिकारी के पास उच्च न्यायालय से जारी कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं होगा, जिसके आधार पर गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाती है.