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न्यायाधीशों को निर्णय व आदेशों के माध्यम से बोलना चाहिए न कि मौखिक निर्देश जारी करें : SC - उच्च न्यायालय में विचाराधीन

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों को अपने फैसलों और आदेशों के माध्यम से बोलना चाहिए. उन्हें मौखिक निर्देश जारी नहीं करने चाहिए क्योंकि यह न्यायिक रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं होता इसलिए इससे बचना चाहिए.

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Published : Aug 31, 2021, 5:23 PM IST

नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों को मौखिक निर्देश देने से बचना चाहिए क्योंकि यह न्यायिक रिकार्ड का हिस्सा नहीं होता. शीर्ष अदालत ने कहा कि वहां न्यायिक जवाबदेही का तत्व खो जाता है, जहां मौखिक शासन होता है. यह एक खतरनाक मिसाल कायम करता है, जो कि अस्वीकार्य है.

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक फैसले के खिलाफ अपील पर एक फैसले में यह टिप्पणी की है. जिसमें धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के मामले में एक आरोपी को गिरफ्तार नहीं करने का मौखिक निर्देश जारी किया गया था.

बेंच ने कहा कि अदालत में मौखिक टिप्पणियां न्यायिक प्रवचन के दौरान होती हैं. एक लिखित आदेश बाध्यकारी और लागू करने योग्य होता है. मौखिक निर्देश जारी करना (संभवतः सरकारी अभियोजक को) गिरफ्तारी को रोकना, न्यायिक रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं बनता है और इससे बचना चाहिए.

शीर्ष अदालत ने कहा कि पहले प्रतिवादी की गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा मौखिक निर्देश जारी करने की प्रक्रिया अनियमित थी. पीठ ने कहा कि यदि उच्च न्यायालय का विचार है कि पक्षकारों के वकील को समझौते की संभावना तलाशने का अवसर दिया जाना चाहिए.

इस आधार पर गिरफ्तारी के खिलाफ अंतरिम संरक्षण दिया जाना चाहिए तो इसके लिए एक विशिष्ट न्यायिक आदेश जारी किया जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायिक आदेश के अभाव में जांच अधिकारी के पास उच्च न्यायालय से जारी कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं होगा, जिसके आधार पर गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाती है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि आपराधिक न्याय का प्रशासन शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच एक निजी मामला नहीं है. बल्कि कानून-व्यवस्था के संरक्षण में राज्य के व्यापक हितों के साथ-साथ आपराधिक न्याय प्रशासन की पवित्रता में सामाजिक हित को भी शामिल करता है.

पीठ ने कहा कि न्यायाधीश अपने निर्णयों और आदेशों के माध्यम से बोलते हैं. न्यायाधीश, जितने सरकारी अधिकारी, जिनके आचरण पर वे अध्यक्षता करते हैं, अपने कार्यों के लिए जवाबदेह हैं.

शीर्ष अदालत सलीमभाई हमीदभाई मेनन द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने धारा 405 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी), 465 (धोखाधड़ी), धारा 405 (आपराधिक विश्वासघात) के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. इस मामले के उच्च न्यायालय में विचाराधीन रहने के दौरान मेनन को गिरफ्तार कर लिया गया था.

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जब गिरफ्तारी के बाद कार्यवाही की गई तो उच्च न्यायालय का विचार था कि पक्षकारों के वकील को एक समझौते की संभावना का पता लगाने का अवसर दिया जाना चाहिए और उस आधार पर गिरफ्तारी के खिलाफ अंतरिम संरक्षण प्रदान किया गया.

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