नई दिल्ली : वर्तमान संसद भवन, वास्तुशिल्प का नायाब उदाहरण एक ऐतिहासिक मील का पत्थर जिसने लगभग एक सदी तक भारत की नियति का मार्गदर्शन किया. जिसकी शानदार विरासत अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जायेगी. इस भवन का उद्घाटन 18 जनवरी, 1927 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नये संसद भवन का उद्घाटन करेंगे. जिसके साथ ही वर्तमान संसद भवन की 96 वर्षों की एतिहासिक यात्रा में एक पड़ाव आ जायेगा.
इसी भवन में गूंजी थी भगत सिंह के बम की आवाज : आज भारत के लोकतंत्र के मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित, पुराने संसद भवन ने कई दशकों तक अंग्रेजों के शाही शासन को देखा. इसके कक्ष में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा फेंके गए बमों की गूंज सुनी गई. भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में इस भवन की भूमिका अहम है. इस भवन के हॉल में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू 15 अगस्त, 1947 को आजाद भारत को पहली बार संबोधित किया. वह भाषण आज भी 'नियति से साक्षात्कार' (ट्रिस्ट विद डेस्टिनी) के नाम से पढ़ा जाता है.
भारत के पुनर्जन्म का प्रतीक :अपने आकर्षक गोलाकार डिजाइन और पहली मंजिल पर 144 प्रभावशाली स्तंभ के साथ यह इमारत ब्रिटिश राज की नई शाही राजधानी 'नई दिल्ली' का केंद्र था. अभिलेखीय दस्तावेजों और दुर्लभ पुरानी छवियों के अनुसार, 18 जनवरी, 1927 को काउंसिल हाउस के उद्घाटन के लिए भव्य समारोह आयोजित किया गया था. एक शताब्दी पहले, जब आजादी हमसे 26 साल दूर थी, ब्रिटेन के ड्यूक ऑफ कनॉट ने 12 फरवरी, 1921 को संसद भवन की आधारशिला रखी थी. इस मौके पर उन्होंने कहा था कि यह इमारत भारत के पुनर्जन्म के प्रतीक के रूप में खड़ा होगा.
दुनिया के विशिष्ट भवन संरचनाओं में से एक : 560 फीट के व्यास और एक-तिहाई मील की परिधि वाली इस इमारत को सर हर्बर्ट बेकर द्वारा डिजाइन किया गया था. 'नई दिल्ली - मेकिंग ऑफ ए कैपिटल' पुस्तक के अनुसार, लॉर्ड इरविन अपनी वाइसरीगल गाड़ी में ग्रेट प्लेस (अब विजय चौक) में स्थापित एक मंडप में पहुंचे थे. फिर 'काउंसिल हाउस के दरवाजे को खोलने के लिए आगे बढ़े'. सर हर्बर्ट बेकर ने उन्हें एक सुनहरी चाबी सौंपी थी. लगभग छह एकड़ के क्षेत्र को कवर करने वाली विशाल इमारत और बलुआ पत्थरों से बने इसके स्तंभ, दुनिया के विशिष्ट भवन संरचनाओं में से एक हैं. संसद भवन भवन के उद्घाटन के बारे में तब घरेलू और विदेशी प्रेस दोनों में बहुत चर्चा हुई थी.
वर्तमान संसद भवन की यात्रा तत्कालीन सम्राट किंग जॉर्ज पंचम ने भी की थी. 1920 के दशक में शाही राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने के बाद अंग्रेजों ने इस 'नई दिल्ली' में राजधानी बनाने की कल्पना की गई थी. जिसे 1926 में पहली बार नई दिल्ली का नाम दिया गया था. लुटियंस और बेकर ने नई शाही राजधानी को डिजाइन किया था. वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) और नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक 'नई दिल्ली' के केंद्र में थे. लॉर्ड इरविन ने 1927 में वर्तमान संसद भवन का उद्घाटन किया था.
काउंसिल हाउस को मिला संसद भवन का नाम :भारत में वायसराय देश में ब्रिटिश राज का सर्वोच्च प्रतिनिधि था. लॉर्ड इरविन रायसीना हिल के ऊपर बने वायसराय हाउस पर कब्जा करने वाले पहले व्यक्ति थे. 1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद, इसे राष्ट्रपति भवन के नाम से जाना जाने लगा. उसी समय काउंसिल हाउस को संसद भवन का नाम दिया गया. सेंट्रल विस्टा के पुनर्विकास का हिस्सा, नया संसद भवन अपने उद्घाटन के बाद, 1927 में बने वर्तमान संसद भवन से शुरू हुए एक इतिहास में कई और नये पृष्ठ जोड़ देगा. 24 जनवरी, 1927 को तीसरे विधान सभा के पहले सत्र को संबोधित करते हुए वायसराय लॉर्ड इरविन ने कहा था कि आज, आप दिल्ली में अपने नये और स्थायी घर में पहली बार मिल रहे हैं. इस कक्ष में, सभा को उसकी गरिमा और महत्व के योग्य एक सेटिंग प्रदान की गई है, और मैं इसके डिजाइनर की इससे बड़ी तारीफ नहीं कर सकता कि यह भवन उन मनोभावों को प्रतिबिंबित करता है जिससे भारत के सार्वजनिक मामलों को यहां से संचालित किया जाएगा.
आजादी की पहली सुबह से सैन्य क्षमता के प्रदर्शन तक : स्व-शासन की ओर पहले कदम से लेकर आजादी की सुबह तक और फिर देश के परमाणु शक्ति के रूप में उभरने तथा उससे आगे तक, मौजूदा संसद भवन की इमारत भारत की विकास गाथा की गवाह रही है. संसद के परिसर ने संविधान के निर्माण पर जीवंत बहस, महात्मा गांधी की मृत्यु की घोषणा के बाद मार्मिक दृश्यों और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा बांग्लादेश में पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के बिना शर्त आत्मसमर्पण की घोषणा के बाद खुशी के पलों को महसूस किया है.
ओजस्वी भाषणों और बेहतरीन संवादों का गवाह : पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के भाषण, लाल बहादुर शास्त्री का शांत लेकिन दृढ़ संकल्प, इंदिरा गांधी की वाक्पटुता, अटल बिहारी वाजपेयी की काव्य प्रतिभा और नरेंद्र मोदी के ओजस्वी भाषणों का भी वर्तमान संसद भवन गवाह रहा है. पंडित मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, पंडित मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, सी एस रंगा अय्यर, माधव श्रीहरि अणे, विट्ठलभाई पटेल सहित अन्य तीसरी एसेंबली के सदस्य थे.