नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 जुलाई यानी आज सुनवाई हो रही है. इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने की. मामले में प्रक्रियात्मक निर्देश जारी करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले में दो अगस्त से हर रोज सुनवाई की जायेगी.
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे सीजेआई ने कहा कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 2 अगस्त से शुरू होगी. मंगलवार को कोर्ट को जानकारी दी गई कि आईएएस अधिकारी शाह फैसल और कार्यकर्ता शेहला रशीद अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ अपनी याचिकाओं को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं और अदालत के रिकॉर्ड से अपना नाम हटाना चाहते हैं, अदालत ने याचिकाकर्ताओं के रूप में उनके नाम हटाने के उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है, अब मामले का शीर्षक 'इन रे: संविधान का अनुच्छेद 370' होगा.
इससे पहले शाह फैसल मुख्य याचिकाकर्ता थे. उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने दस्तावेज दाखिल करने, पक्षों द्वारा लिखित दलीलें देने के लिए 27 जुलाई की समय सीमा तय की. उच्चतम न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की सूची से अपना नाम हटाने के लिए कार्यकर्ता शेहला राशिद शोरा के आवेदन पर विचार की मंजूरी दी.
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाएं आखिरी बार मार्च 2020 में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की गई थीं. पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया. उस सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का एक और बैच पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. पीठ ने अनुच्छेद 370 से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई एक साथ करने का फैसला किया.
संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लगभग चार साल बाद, भारत का सर्वोच्च न्यायालय 11 जुलाई को जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. के साथ जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बी.आर. गवई और सूर्यकांत मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई की. मंगलवार को दस्तावेज दाखिल करने और लिखित प्रस्तुतियां, मौखिक दलीलों के क्रम और समय के आवंटन के बारे में प्रक्रियात्मक निर्देश जारी किये गये. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के एक सवाल के जवाब में न्यायमूर्ति गवई ने बीते बुधवार को ही स्पष्ट किया था कि मामले में मौखिक दलीलों पर सुनवाई अगस्त में ही शुरू होगी.
पीठ ने यह भी तय किया कि नौकरशाह शाह फैसल की मुख्य याचिका वापस ली जा सकती है. फैसल ने 2018 में भारतीय प्रशासनिक सेवाओं (आईएएस) से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने का विरोध किया था. वह सेवाओं में फिर से शामिल हो गए. हाल ही में उन्हें संस्कृति मंत्रालय में उप सचिव नियुक्त किया गया. बाद में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक आवेदन दायर कर अपनी याचिका वापस लेने की मांग की.
याचिकाओं को 2 मार्च, 2020 के बाद पहली बार सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा रहा है. उस समय न्यायमूर्ति एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया था. इस मामले की सुनवाई करने वाली पिछली पीठ में से जस्टिस एनवी रमना और सुभाष रेड्डी सेवानिवृत्त हो चुके हैं. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजीव खन्ना नवीनतम पीठ के नए सदस्य हैं.
ये याचिकाएं किसने दायर की हैं?
इस मामले में वकीलों, कार्यकर्ताओं, राजनेताओं और सेवानिवृत्त सिविल सेवकों द्वारा लगभग 23 याचिकाएं दायर की गई हैं. इनमें वकील एमएल शर्मा, सोयब कुरेशी, मुजफ्फर इकबाल खान, रिफत आरा बट और शाकिर शब्बीर, नेशनल कॉन्फ्रेंस के लोकसभा सांसद मोहम्मद अकबर लोन और हसनैन मसूदी, सीपीआई (एम) नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी, कार्यकर्ता शेहला रशीद, कश्मीरी कलाकार इंद्रजीत टिक्कू उर्फ इंदर सलीम और अनुभवी पत्रकार सतीश जैकब शामिल हैं. पूर्व एयर वाइस मार्शल कपिल काक, सेवानिवृत्त मेजर जनरल अशोक मेहता, पूर्व आईएएस अधिकारी हिंडाल हैदर तैयबजी, अमिताभ पांडे और गोपाल पिल्लई सहित पूर्व सैन्य अधिकारियों और नौकरशाहों और जम्मू-कश्मीर के लिए गृह मंत्रालय के वार्ताकारों के समूह के पूर्व सदस्य राधा कुमार ने भी केंद्र सरकार के इस फैसले को चुनौती दी है. पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, जम्मू और कश्मीर बार एसोसिएशन और जम्मू और कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस जैसे संघों और राजनीतिक दलों ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.
चुनौती का कारण क्या था?
संविधान के अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा दिया था. जिसने अन्य राज्यों की तुलना में राज्य के लिए कानून बनाने की संसद की शक्ति को काफी हद तक सीमित कर दिया था. यह प्रावधान 1947 में जम्मू-कश्मीर के पूर्व शासक महाराजा हरि सिंह द्वारा हस्ताक्षरित विलय पत्र के परिणामस्वरूप लागू किया गया था. 5 अगस्त, 2019 को, भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने अनुच्छेद 370(1) के तहत, संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 (सीओ 272) को समाप्त कर दिया. जिससे जम्मू और कश्मीर राज्य में संविधान के सभी प्रावधानों को लागू करने की अनुमति मिल गई.