नई दिल्ली: शिक्षा के तरीकों पर 1984 में बेंजामिन ब्लूम के मौलिक अध्ययन के बाद से 'दो सिग्मा समस्या' शिक्षा के सिद्धांत में विश्व स्तर पर सर्वाधिक स्वीकृत अवधारणाओं में से एक बन गई है. प्रसिद्ध अध्ययन प्रयोगों के एक सेट पर आधारित था जिसका निष्कर्ष है कि प्राइवेट ट्यूशन के चलते औसत छात्र सिर्फ क्लास में पढ़ने वाले छात्रों से दो मानक विचलन ( two standard deviations ) (सिग्मा) बेहतर प्रदर्शन करता है.
दो सिग्मा समस्या सिद्धांत की सुंदरता इसकी तत्काल सहजता में निहित है. सभी देशों और समाजों में प्राइवेट ट्यूशन ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए स्पष्ट प्राथमिकता है जो इसे वहन कर सकता है. भारत में, एक श्रद्धेय 'गुरु' की अवधारणा, जो अपने शिष्यों पर अति-व्यक्तिगत ध्यान देकर ज्ञान प्रदान करता है, के इतिहास और पौराणिक कथाओं दोनों में कई संदर्भ मिलते हैं. जैसे-जैसे औद्योगिक क्रांति का प्रसार हुआ, प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के साथ, शिक्षा एक व्यक्ति के विशेषाधिकार से बढ़कर अवसर के लिए एक अधिक सुलभ सेतु बन गई. इसने कक्षा पद्धति की शुरूआत को चिह्नित किया, जो अपने सदियों बाद भी सर्वव्यापी बनी हुई है.
प्राइवेट ट्यूशन बहुत महंगा
विशेष रूप से, भारतीय क्लासरूम की विशेषता ये है कि इसका आकार बड़ा है. देश में 25 करोड़ से अधिक सक्रिय रूप से नामांकित छात्र हैं जबकि अच्छे शिक्षकों की संख्या इसके सौवें हिस्से से भी कम है. यहां तक कि शिक्षा प्रदान करने के सबसे हालिया प्रयासों, यानी एड-टेक, में भी अनेक के साथ एक का संवाद सभी व्यवहार्य व्यवसाय मॉडल पर हावी है. ब्लूम के नोट्स में इस चुनौती को बहुत अच्छी तरह से उजागर किया गया था - उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि प्राइवेट ट्यूशन "अधिकांश समाजों के लिए बड़े पैमाने पर वहन करना बहुत महंगा है" और शिक्षा शोधकर्ताओं को समूह निर्देश के तरीकों को प्राइवेट ट्यूशन के समान प्रभावी बनाने की चुनौती दी.
आशाजनक है जेनरेटिव एआई
भारत में, एक्सेल ( accel ) में हमारा मानना है कि लंबे समय से चली आ रही दो-सिग्मा समस्या को आखिरकार Generative AI Technology से एक आशाजनक समाधान मिल गया है. यदि हम थोड़ा गौर करें कि एलएलएम किसमें अच्छे हैं - ढेर सारी असंरचित जानकारी का विश्लेषण करने और वैयक्तिकृत उत्तर तैयार करने में - तो सशक्त शिक्षण उपकरणों में उनकी प्रयोज्यता काफी स्पष्ट हो जाती है. आश्चर्य नहीं कि कई छात्र ChatGPT के सबसे नियमित यूजरों में से हैं. डुओलिंगो और खान अकादमी जैसे वैश्विक एड-टेक दिग्गजों ने पहले से ही अपने हाल ही में लॉन्च किए गए एआई ट्यूटर फीचर्स पर उल्लेखनीय प्रतिक्रिया देखी है. हमारा अनुमान है कि, अगले कुछ वर्षों में, जेनेरेटिव एआई को भारतीय शिक्षा में तीन तरीकों से बड़े पैमाने पर लागू किया जाएगा.
1. बड़े पैमाने पर वैयक्तिकरण
एआई-आधारित अनुशंसा प्रणाली लंबे समय से यूजरों (जिसमें एड-टेक भी शामिल हैं) के लिए प्रासंगिक कंटेंट पेश करती है. वहीं, Generative AI न केवल सिफारिश करता है बल्कि अत्यधिक प्रासंगिक कंटेंट का सृजन करके एक कदम आगे निकल जाता है. प्रत्येक छात्र के लिए अनुकूलित शिक्षण पथ ( customized learning path ) एक वास्तविकता बनने की राह पर है क्योंकि नये कंटेंट तैयार करने की लागत शून्य के करीब पहुंच गई है.