रांची : झारखंड में पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती नक्सलियों की ओर से लगाए गए लैंडमाइंस है. बिहार से झारखंड जब अलग हुआ उस दौर से लेकर अब तक नक्सलियों की ओर से लगाए गए लैंडमाइंस में सबसे ज्यादा सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाया. लेकिन एक जवान ने अपनी दिलेरी से नक्सलियों को करारी चोट पहुंचाई.
जिस समय झारखंड पुलिस के पास अपना कोई बम डिटेक्शन डिस्पोजल स्क्वॉड (Bomb Detection Disposal Squad - BDDS) यानी बम निरोधक दस्ता नहीं था. उस दौर में 1994 बैच के एक दरोगा ने नक्सलियों के लगाए बमों को निष्क्रिय करना शुरू किया. अपनी काबिलियत के बल पर इंस्पेक्टर असित कुमार मोदी ने अपने 27 साल के करियर के दौरान 800 से भी अधिक बमों को डिफ्यूज कर अपने साथियों को सुरक्षित किया.
साल 1996 में संयुक्त बिहार के गया जिला में 1994 बैच के एक दरोगा की पोस्टिंग हुई, जिसका नाम था असित कुमार मोदी. झारखंड के बोकारो के चंदनक्यारी के एक छोटे-से गांव रामडीह के रहने वाले असित कुमार मोदी की पोस्टिंग उस वक्त हुई, जब गया जिला में नक्सलियों का खौफ सिर चढ़कर बोलता था.
नक्सली आमने-सामने की लड़ाई पर विश्वास ना कर गोरिल्ला वार के जरिए पुलिस को लगातार नुकसान पहुंचा रहे थे. नक्सलियों के लगाए बम नक्सल अभियान में लगे जवानों के लिए आफत बने हुए थे. अगर कहीं बम होने की खबर मिलती तो सेना के बम निरोधक दस्ते को बमों को निष्क्रिय करने के लिए बुलाना पड़ता था. केमिस्ट्री में बैचलर डिग्री लेकर दारोगा बने असित कुमार मोदी को बमों के आगे बेबस अपने अधिकारियों और जवानों को देखकर यह ख्याल आया कि क्यों नहीं बमों को निष्क्रिय करने के लिए वो कोई प्रयास करें.
रसायन विज्ञान के छात्र रह चुके असित कुमार मोदी बम के विषय में अनजान नहीं थे. उन्हें यह अच्छी तरह पता था कि बम बनाने में किस मैकेनिज्म का इस्तेमाल किया जाता है. अपनी अथक प्रयास के बाद असित कुमार मोदी ने बमों को कैसे निष्क्रिय किया जाता है यह सीख लिया. जिसके बाद वो संयुक्त बिहार के पहले बमों को निष्क्रिय करने वाले पुलिस अधिकारी बने. कैडर विभाजन के बाद साल 2004 में असित कुमार मोदी झारखंड चले आए और गुमला में उनकी पोस्टिंग हो गई.
एनएसजी में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया
झारखंड पुलिस के आला अधिकारियों ने जब देखा कि असित कुमार मोदी बिना किसी ट्रेनिंग के ही बमों को निष्क्रिय कर दे रहे हैं तो उन्हें बकायदा विशेष ट्रेनिंग के लिए एनएसजी भेजा गया. एनएसजी में ट्रेनिंग लेने के बाद जिस जिला में भी असित कुमार मोदी की पोस्टिंग हुई, वहां उन्होंने जान पर खेलकर खतरनाक बमों को निष्क्रिय किया. उनकी काबिलियत को देखकर झारखंड पुलिस की तरफ से उन्हें अमेरिका भेजा गया, जहां उन्होंने विशेष रूप से बमों को निष्क्रिय करने की नई-नई तकनीक सीखी. असित कुमार मोदी कहते हैं कि सीनियर अफसरों ने उनकी काफी मदद की, यही वजह है कि अब झारखंड में बम निरोधक दस्ते की 12 टीमें काम कर रही हैं.
झारखंड राज्य निर्माण के समय से ही नक्सलवाद सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने आई थी. साल 2000 से लेकर 2012 तक नक्सलियों ने लैंडमाइंस विस्फोट कर झारखंड पुलिस को कई मौकों पर बड़े-बड़े घाव दिए, पर अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं. असित कुमार मोदी ने जो प्रयास शुरू किया था, वह आज के समय पूरी तरह से सफल हो चुके हैं.