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Published : Aug 7, 2021, 10:04 AM IST

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मिलिए, खतरों के खिलाड़ी इंस्पेक्टर 'मोदी' से, 27 साल के करियर में 800 बम कर चुके हैं डिफ्यूज

27 साल की ड्यूटी और 800 बम डिफ्यूज, खतरों से खेलकर, जान हथेली पर लेकर अपने सैकड़ों साथियों की जान बचाई. ये और कोई नहीं बल्कि खतरों के खिलाड़ी इंस्पेक्टर असित कुमार मोदी हैं. जिन्होंने झारखंड में नक्सलियों के ना जाने कितने मंसूबों पर पानी फेर दिया. आइये इस रिपोर्ट की मदद से जानते हैं कि आखिर कौन हैं असित कुमार मोदी.

असित कुमार मोदी
असित कुमार मोदी

रांची : झारखंड में पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती नक्सलियों की ओर से लगाए गए लैंडमाइंस है. बिहार से झारखंड जब अलग हुआ उस दौर से लेकर अब तक नक्सलियों की ओर से लगाए गए लैंडमाइंस में सबसे ज्यादा सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाया. लेकिन एक जवान ने अपनी दिलेरी से नक्सलियों को करारी चोट पहुंचाई.

जिस समय झारखंड पुलिस के पास अपना कोई बम डिटेक्शन डिस्पोजल स्क्वॉड (Bomb Detection Disposal Squad - BDDS) यानी बम निरोधक दस्ता नहीं था. उस दौर में 1994 बैच के एक दरोगा ने नक्सलियों के लगाए बमों को निष्क्रिय करना शुरू किया. अपनी काबिलियत के बल पर इंस्पेक्टर असित कुमार मोदी ने अपने 27 साल के करियर के दौरान 800 से भी अधिक बमों को डिफ्यूज कर अपने साथियों को सुरक्षित किया.

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खतरों के खिलाड़ी-असित कुमार मोदी

साल 1996 में संयुक्त बिहार के गया जिला में 1994 बैच के एक दरोगा की पोस्टिंग हुई, जिसका नाम था असित कुमार मोदी. झारखंड के बोकारो के चंदनक्यारी के एक छोटे-से गांव रामडीह के रहने वाले असित कुमार मोदी की पोस्टिंग उस वक्त हुई, जब गया जिला में नक्सलियों का खौफ सिर चढ़कर बोलता था.

नक्सली आमने-सामने की लड़ाई पर विश्वास ना कर गोरिल्ला वार के जरिए पुलिस को लगातार नुकसान पहुंचा रहे थे. नक्सलियों के लगाए बम नक्सल अभियान में लगे जवानों के लिए आफत बने हुए थे. अगर कहीं बम होने की खबर मिलती तो सेना के बम निरोधक दस्ते को बमों को निष्क्रिय करने के लिए बुलाना पड़ता था. केमिस्ट्री में बैचलर डिग्री लेकर दारोगा बने असित कुमार मोदी को बमों के आगे बेबस अपने अधिकारियों और जवानों को देखकर यह ख्याल आया कि क्यों नहीं बमों को निष्क्रिय करने के लिए वो कोई प्रयास करें.

असित कुमार मोदी

रसायन विज्ञान के छात्र रह चुके असित कुमार मोदी बम के विषय में अनजान नहीं थे. उन्हें यह अच्छी तरह पता था कि बम बनाने में किस मैकेनिज्म का इस्तेमाल किया जाता है. अपनी अथक प्रयास के बाद असित कुमार मोदी ने बमों को कैसे निष्क्रिय किया जाता है यह सीख लिया. जिसके बाद वो संयुक्त बिहार के पहले बमों को निष्क्रिय करने वाले पुलिस अधिकारी बने. कैडर विभाजन के बाद साल 2004 में असित कुमार मोदी झारखंड चले आए और गुमला में उनकी पोस्टिंग हो गई.

असित कुमार मोदी

एनएसजी में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया

झारखंड पुलिस के आला अधिकारियों ने जब देखा कि असित कुमार मोदी बिना किसी ट्रेनिंग के ही बमों को निष्क्रिय कर दे रहे हैं तो उन्हें बकायदा विशेष ट्रेनिंग के लिए एनएसजी भेजा गया. एनएसजी में ट्रेनिंग लेने के बाद जिस जिला में भी असित कुमार मोदी की पोस्टिंग हुई, वहां उन्होंने जान पर खेलकर खतरनाक बमों को निष्क्रिय किया. उनकी काबिलियत को देखकर झारखंड पुलिस की तरफ से उन्हें अमेरिका भेजा गया, जहां उन्होंने विशेष रूप से बमों को निष्क्रिय करने की नई-नई तकनीक सीखी. असित कुमार मोदी कहते हैं कि सीनियर अफसरों ने उनकी काफी मदद की, यही वजह है कि अब झारखंड में बम निरोधक दस्ते की 12 टीमें काम कर रही हैं.

असित कुमार मोदी
कम हुई घटनाएं

झारखंड राज्य निर्माण के समय से ही नक्सलवाद सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने आई थी. साल 2000 से लेकर 2012 तक नक्सलियों ने लैंडमाइंस विस्फोट कर झारखंड पुलिस को कई मौकों पर बड़े-बड़े घाव दिए, पर अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं. असित कुमार मोदी ने जो प्रयास शुरू किया था, वह आज के समय पूरी तरह से सफल हो चुके हैं.

असित कुमार मोदी

आज के समय में झारखंड बीडीडीएस की टीम इतनी सक्षम हो चुकी है कि वह नक्सलियों के बिछाए बमों के जाल को नुकसान पहुंचाने के पहले ही निष्क्रिय कर पाने में सफल रही है. असित कुमार मोदी झारखंड के उन सभी इलाकों में जाकर अपने सहयोगियों और कनीय अफसरों को प्रैक्टिकली फील्ड ट्रेनिंग दे चुके हैं कि आखिर कैसे बम से बचना है, बम का मैकेनिज्म क्या है और कितनी सावधानी से लेकर बरतनी चाहिए.

फिलहाल कर रहे थानेदारी, फिर भी पढ़ाते हैं

असित कुमार मोदी फिलहाल राजधानी रांची में पोस्टेड हैं और गोंदा ट्रैफिक थाना के थानेदार हैं. लेकिन वर्तमान में भी उनका अधिकांश समय पढ़ाने में ही बीतता है. जब भी कोई टीम नक्सल अभियान के लिए निकलती है, उससे पहले उन्हें ब्रीफ करने का काम असित कुमार मोदी ही करते हैं. इसके अलावा नए बहाल पुलिस कर्मियों को भी अक्सर पुलिस लाइन में कानून की बारीकियों की जानकारियां भी देते हैं.


इंस्पेक्टर असित कुमार मोदी शिक्षक भी हैं

एक तरफ इंस्पेक्टर असित कुमार मोदी खतरनाक बम को निष्क्रिय करने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने साल 1994 में पुलिस में बहाली के बाद पुलिस सेवा में अपनी शिक्षक की ही भूमिका ज्यादा नजर आए हैं. असित कुमार मोदी झारखंड-बिहार के पहले बम डिफ्यूज करने वाले एक्सपर्ट हैं. जिस समय असित मोदी ने नक्सलियों के बिछाए बमों को निष्क्रिय करना शुरू किया था, उस समय ना तो झारखंड में बीडीडीएस की टीम थी और ना ही बिहार में.

सिर्फ बमों को निष्क्रिय करने में ही असित कुमार मोदी को महारत हासिल नहीं है. इसके अलावा कानून की बारीकियों को भी वो बखूबी समझते हैं. किताबों से उन्हें बेहद लगाव है, यही वजह है कि जब कभी कानून की धाराओं को लेकर कोई जूनियर पुलिस अफसर अटकता है तो वह सीधे इंस्पेक्टर असित को फोन लगाता हैं.

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घर में मेडल और सर्टिफिकेट की भरमार

इंस्पेक्टर असित कुमार मोदी के अनुसार वह जो कुछ भी हैं वह अपने सीनियर अधिकारियों की वजह से हैं. क्योंकि उन्हीं की ओर से दिए गए प्रोत्साहन और उचित ट्रेनिंग की वजह से उन्होंने अपना एक मुकाम हासिल किया. असित कुमार मोदी के घर में कई मेडल्स और सर्टिफिकेट यह गवाही देते हैं कि वह किस तरह के पुलिस अफसर हैं. राज्य में चाहे किसी की भी सरकार क्यों ना हो हर सरकार ने असित कुमार मोदी को सम्मानित किया है.

अब झारखंड में 12 बीडीडीएस टीम

वर्तमान समय में झारखंड में बीडीडीएस की 12 टीमें हैं, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलियों के लगाए बमों को निष्क्रिय करते हैं. लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब अगर राज्य के किसी भी जिला में बम मिलता था तो असित कुमार मोदी को ही याद किया जाता था.

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