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भारत स्वतंत्र विदेश नीति की राह पर, किसी दबाव में तय नहीं होते देशों के रिश्ते

भारत की विदेश नीति अचानक ही बदली-बदली सी नजर आ रही है. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारतीय विदेश नीति स्वतंत्र रास्ते पर चल पड़ी है, जिसका मूल सिद्धांत 'भारत का हित' है. इसके बाद से ऐसे कई मौके आए, जहां विदेश नीति यूरोप और अमेरिका के दबाव से मुक्त नजर आई है. पढ़ें संजीब बरूआ की रिपोर्ट.

finally walks the talk on strategic autonomy
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Published : Jun 13, 2022, 5:46 PM IST

नई दिल्ली : स्ट्रैटजिक ऑटोनॉमी यानी 'रणनीतिक स्वायत्तता' अब भारतीय विदेश नीति के लिए एक कल्पना नहीं है. अब भारत विश्व के ताकतवर देशों के दबाव में फैसले नहीं लेता. 24 फरवरी को यूक्रेन में रूसी सैन्य कार्रवाई से शुरू होने के बाद से यह बदलाव भारत को दुनिया के मुख्य ताकतवर देशों के बीच स्थिति मजबूत कर रहा है. हाल में ही कई ऐसी घटनाएं हुईं, जहां भारतीय विदेश नीति में बदलाव के संकेत मिले.

पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ भारत के दो साल पुराने युद्धरत गतिरोध के बीच रविवार को समाप्त हुए सिंगापुर में शांगरी-ला डायलॉग में भारत ने जो रुख अपनाया, उस पर गौर करना जरूरी है. शांगरी-ला डायलॉग में अमेरिका ने एलएसी का मुद्दा उठाया मगर भारत ने इस मंच पर चीन की आलोचना नहीं की. शनिवार को अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने अपने शांगरी-ला भाषण में कहा था कि चीन ने भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपनी स्थिति सख्त करना जारी रखा है. ऑस्टिन के बयान के बाद अमेरिकी सेना के पैसिफिक कमांडिंग जनरल जनरल चार्ल्स ए फ्लिन ने 8 जून को नई दिल्ली में कहा कि लद्दाख के पास चीनी गतिविधि "आंख खोलने वाली" है और एलएसी पर चीनी सेना पीएलए की ओर से बनाई जा रही कुछ बुनियादी सुविधाएं 'खतरनाक' हैं. शांगरी-ला डायलॉग की मेजबानी अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज (IISS) करता है. इस संगठन का हेडक्वॉर्टर लंदन में है.

अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के बयान पर चीन ने रविवार को शांगरी-ला डायलॉग में ही प्रतिक्रिया दी. चीनी रक्षा मंत्री वेई फेंघे ने ऑस्टिन के बयान का खंडन करते हुए कहा कि अच्छे संबंध के कारण भारत और चीन दोनों को लाभ हो रहा है. वेई ने कहा कि चीन और भारत पड़ोसी हैं और अच्छे संबंध बनाए रखना दोनों देशों के हित में है. और इसी पर हम काम कर रहे हैं. भारत के साथ चीन की कमांडर स्तर पर 15 दौर की बातचीत हो चुकी है और हम इस क्षेत्र (LAC) में शांति के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने शुक्रवार को अमेरिका पर आग में घी डालने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि अमेरिका क्षेत्रीय शांति और स्थिरता में योगदान देने वाले और काम कर सकता है. चीन-भारत सीमा प्रश्न दोनों देशों के बीच का मामला है.

भारत इस मसले पर जो प्रतिक्रिया दी, वह काफी दिलचस्प है. भारत ने बड़ी सफाई से अमेरिकी रक्षा मंत्री बयान से दूरी बनाने का संकेत दे दिया. गुरुवार (9 जून) को भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए कई उपाय किए हैं. इन उपायों से न सिर्फ भारत की रणनीतिक और सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा बल्कि क्षेत्र के विकास के लिए आर्थिक सुविधा भी दी जा सकेगी. पूर्वी लद्दाख की स्थिति पर अरिंदम बागची ने कहा कि जहां तक ​​मौजूदा स्थिति का सवाल है, हमने डिप्लोमैटिक और मिलिट्री चैनल के जरिये चीनी पक्ष के साथ लगातार बात की है. भारतीय प्रवक्ता ने कहा कि भारत पूर्वी लद्दाख में मुद्दों को हल करने के लिए चीनी पक्ष के साथ अपनी बातचीत जारी रखेगा.

भारत की बदली विदेश नीति 9 जून को एक बार फिर उस समय नजर आई, जब ईरान के विदेश मंत्रालय ने एक अभूतपूर्व घटना में अपने विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुल्लाहियन और भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के बीच बैठक पर रीड-आउट के अपने वर्जन को बदल दिया. ईरान के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर पहले पैगंबर मुहम्मद का अपमान करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के डोभाल के स्पष्ट आश्वासन को खारिज कर दिया था. यह बदलाव क्यों हुआ है. माना जा रहा है कि इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी के साथ टकराव पर भारत ने ईरान को समर्थन देने का आश्वासन दिया है. 8 जून (बुधवार) को ईरान के खिलाफ आईएईए (IAEA) के प्रस्ताव पर मतदान हुआ, तब भारत ने वोटिंग नहीं की. उस दिन ईरान के विदेश मंत्री अब्दुल्लाहियन नई दिल्ली में थे. आईएईए के प्रस्ताव में नियमों के उल्लंघन के लिए ईरान की निंदा की गई थी. वोटिंग के दौरान रूस और चीन ने आईएईए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में 35 देशों के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, 30 देशों ने अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस द्वारा लाए गए प्रस्ताव के लिए मतदान किया, जबकि भारत, पाकिस्तान और लीबिया ने भाग नहीं लिया.

राज्य के स्वामित्व वाले इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान शिपिंग लाइन्स ग्रुप (IRISL), रूस और ईरान ने हाल ही में तीनों देशों ने एक नए ट्रांजिट कॉरिडोर की टेस्टिंग शुरू कर दी है. जो ट्रेड और कॉमर्स के मामले में 'गेम चेंजर' हो सकता है. यह ट्रेड कॉरिडोर मार्ग बाल्टिक सागर पर सेंट पीटर्सबर्ग से शुरू होता है, पश्चिमी रूस में अस्त्रखान के कैस्पियन बंदरगाह तक जाता है और अंजालि के उत्तरी ईरानी बंदरगाह तक पहुंचने के लिए कैस्पियन सागर को पार करता है. अंजालि से यह मार्ग पर्शियन गल्फ पर बांदर अब्बास के दक्षिण ईरानी बंदरगाह तक हाइवे तक जाता है, जहां से एक जल मार्ग जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट या जेएलएन पोर्ट से जुड़ता है, जो इंडिया का सबसे बड़ा कंटेनर पोर्ट है.

फिलहाल रूट पर रूसी 41-टन कार्गो के जरिये टेस्टिंग की जा रही है. इस कार्गों में दो 40 फुट का कंटेनर शामिल हैं. उम्मीद जताई जा रही है सेंट पीटर्सबर्ग से चले इस कार्गो को मुंबई के पास जेएलएन पोर्ट तक पहुंचने में 25 दिन लग सकते हैं. फिलहाल भारत और रूस सेंट पीटर्सबर्ग से जेएलएन पोर्ट तक 8,675 समुद्री मील शिपिंग रूट से जुड़े हुए हैं जो स्वेज नहर और रॉटरडैम बंदरगाह से होकर गुजरता है. अमेरिका ने रूस और ईरान के साथ-साथ आईआरआईएसएल को प्रतिबंधों के तहत रखा है. जब से यूक्रेन में संघर्ष शुरू हुआ है, नाटो देश और रूस-चीन गठबंधन दोनों भारत से समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं. इस मसले पर भारत ने कई बार अपनी स्थिति साफ की है.

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