हैदराबाद :वुहान और महाबलिपुरम शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के नेताओं के बीच सामंजस्य का प्रदर्शन हुआ तो बीजिंग ने सेना की भारी तैनाती की, जिससे सीमाओं के पास युद्ध के घने बादल छा गए. यह एक स्वागत योग्य कदम है कि पिछले कई महीनों से किए गए निर्णायक प्रयासों के परिणामस्वरूप विनाशकारी टकराव रोका गया.
बीजिंग के जुझारूपन का भारतीय सेना ने विरोध किया और भारत के क्षेत्रों को छीनने की अपनी रणनीतिक के लिए तुरंत कदम उठाए. भारतीय सेना ने पहाड़ी इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया ताकि वह चीनी सेना का मुकाबला कर सके. केंद्र ने संसद को सूचित किया है कि दोनों देश आपसी समन्वय के साथ चरणबद्ध तरीके से अपनी सेना को हटा लेंगे.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया कि नवीनतम समझौता के तहत सीमा पर मई के पहले सप्ताह की स्थिति को बहाल किया जाएगा. उन्होंने कहा कि चीन को एक इंच भी जमीन नहीं दी जाएगी. रक्षा मंत्री यह भी कह रहे हैं कि जब तक पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण तट पर दोनों पक्षों की स्थिति तय नहीं हो जाती, तब तक दोनों देशों द्वारा गश्त को रोक दिया जाएगा.
विशेषज्ञ दे रहे हैं चेतावनी
हालांकि चीन-भारत मामलों के विशेषज्ञों को डर है कि पैंगोंग त्सो क्षेत्र में गश्त को रोकने के लिए भारत को सामरिक रूप से रणनीतिक स्थानों के नुकसान का जोखिम होगा. चीन 18 पड़ोसी देशों के साथ सीमा संघर्ष में लगा जुझारू देश है. चीन की विस्तारवादी रणनीतियों के बारे में पूरी जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ भारत को इसकी धोखे की रणनीतियों से बचने की चेतावनी दे रहे हैं. इस तरह की चेतावनी को हल्के में नहीं लिया जा सकता है.
हो चुके हैं कई समझौते
मार्च 2013 में जब शी जिनपिंग को चीनी राष्ट्रपति के रूप में चुना गया तो उन्होंने भारत के साथ संबंध मजबूत करने के लिए एक नया पंचशील प्रस्तावित किया था. उस सिद्धांत का पहला बिंदु द्विपक्षीय संबंधों को उचित मार्ग पर रखने के लिए रणनीतिक चर्चा जारी रखना था. 1962 और 2020 के दौरान यह चीन था, जिसने झगड़े को बढ़ाया. लेकिन दोनों मौकों पर संघर्ष के घने कोहरे को दूर करने के लिए विचार-विमर्श भारत द्वारा ही शुरू किया गया था.