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भारत-चीन गतिरोध : दोनों सेनाओं के बीच कई बार हुए टकराव, पीछे हटीं सेनाएं - बर्ट्स 2015 में एक सप्ताह तक चलने वाला स्टैंड

पैंगोंग त्सो से भारत और चीन के सैनिकों को हटाने की रिपोर्ट दोनों देशों के लिए एक स्वागत योग्य संकेत है. हालांकि दोनों देशों के बीच इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं. रिपोर्ट से जानें कब-कब आमने-सामने हुई सेनाएं और कब-कब सैनिक पीछे हटे.

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Published : Feb 11, 2021, 4:02 PM IST

Updated : Feb 11, 2021, 4:47 PM IST

हैदराबाद :भारत-चीन सीमा विवाद की ताजा शुरुआत मई 2020 में हुई थी. जब चीनी पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर फिंगर 8 और फिंगर 4 के बीच 8 किमी की दूरी पर आ गए थे. भारतीय सेना फिंगर 8 को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) होने का दावा करती है. जबकि चीनी यथास्थिति का स्पष्ट परिवर्तन कर फिंगर 4 पर डेरा डाले हुए हैं और उन्होंने फिंगर 5 और 8 के बीच किलेबंदी की है.

29/30 अगस्त :भारत और चीन के बीच कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ता के दौरान पिछली आम सहमति के बावजूद 29/30 अगस्त 2020 की रात को PLA सैनिकों ने यथास्थिति को बदलने के लिए भड़काऊ सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया.

चीनी पक्ष द्वारा पिछली बार सर्वसम्मति के इस उल्लंघन के जवाब में भारतीय सैनिकों ने दक्षिणी बैंक ऑफ पैंगोंग त्सो झील पर पीएलए गतिविधि को खाली करा दिया. पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी बैंक में तनावपूर्ण मुठभेड़ के बाद दशकों में पहली बार एलएसी पर शॉट्स लगाए गए थे.

24.01.2021: भारत और चीन ने भारतीय सेना के अनुसार सैन्य कमांडरों की मैराथन बैठक के बाद "सीमावर्ती सैनिकों के शुरुआती विघटन" के लिए जोर देने पर सहमति व्यक्त की है.

10.02.2021:चीनी और भारतीय सीमा सैनिकों ने पैंगॉन्ग झील के दक्षिणी और उत्तरी तट पर विघटन की प्रक्रिया शुरू की. चीनी मीडिया ने चीन के रक्षा मंत्रालय के हवाले से बताया कि पैंगोंग त्सो से अलग होने में 9 महीने लगेंगे.

गलवान घाटी में इन बिंदुओं पर गतिरोध:

. 15 जून, 2020 की रात को भारत और चीनी सैनिकों की भिडंत में 20 भारतीय सैनिकों की मौत हुई. जिसमें एक कर्नल भी शामिल थे. चीनी पक्ष में एक अनुमानित संख्या थी.

. 6 जुलाई 2020 को द पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने दीवान मंडला क्षेत्र के भारतीय पक्ष में पूरी तरह से आगे बढ़ी.

. 28 जुलाई, 2020 भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में गलवान, गोगरा और हॉट स्प्रिंग एरिया से होने वाले संकट को पार किया.

पिछली बार के गतिरोध का समाधान कैसे किया

समदोरोंग चू स्टैंड (1986) : गतिरोध हल करने में 9 साल लगे

1986 में चीनी सेना ने कथित रूप से एलएसी को पार किया और अरुणाचल प्रदेश के सुमदोरोंग चू घाटी में प्रवेश किया. यहां हेलीपैड और स्थायी संरचना का निर्माण शुरू किया. तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल के सुंदरजी ने ऑपरेशन फाल्कन शुरू किया. भारतीय वायु सेना (IAF) की मदद से कई बटालियनों को एयर लिफ्ट किया गया और उन्हें चीन-भारतीय सीमा पर गिरा दिया गया. भारतीय सेना चीनी सैनिकों के साथ सीमा पर आंख-मिचौली करने के लिए खड़ी रही. जब तक कि पीएलए ने सहयोग करने की सहमति नहीं दी. सुमदोरोंग चू संकट अगस्त 1995 तक चला. इस संकट को हल करने में नौ साल लग गए लेकिन कूटनीतिक बातचीत के जरिए इसे सुलझा लिया गया.

डेपसांग (2013): 21 दिन का गतिरोध

15 अप्रैल की रात को जब पूर्वी लद्दाख में डेपसांग मैदानों में, दौलत बेग ओल्डी सेक्टर के पास लगभग 50 चीनी सैनिकों (एक पलटन स्तर) ने एलएसी पार किया और लगभग 17 हजार फुट पर एक तंबू स्थापित किया. भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) द्वारा इसे एक दिन बाद नोट किया. तम्बू स्पष्ट रूप से भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहा है. जवाब में ITBP ने चीनी शिविर से 300 मीटर की दूरी पर शिविर स्थापित किया. इसके कारण सैन्य टकराव नहीं हुआ लेकिन आमना-सामना हुआ. हालांकि पहले की अपेक्षआ LAC पार करने वाले चीनी सैनिक LAC के से लगभग तुरंत लौट आए. PLA सैनिक 20 दिनों के लिए रुके थे. 5 मई की शाम को सप्ताह के परामर्श और फ्लैग मीटिंग के बाद चीनी और भारतीय पक्ष इस क्षेत्र में यथास्थिति बहाल करने पर सहमत हुए.

चुमार, 2014: 16 दिन का गतिरोध

भारतीय सैनिकों द्वारा चीनी निर्माण कार्य को अवरुद्ध करने की कोशिश के बाद पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच 16 दिनों का गतिरोध जारी रहा. जिसे भारत अपना क्षेत्र मानता है. मोदी के पीएम चुने जाने के लगभग चार महीने बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पहली भारत यात्रा की पूर्व संध्या पर 16 सितंबर को यह गतिरोध शुरू हुआ. भारत और चीन के बीच एक सामान्य हल तक पहुंचने के के बाद गतिरोध समाप्त हुआ. जबकि चीनी चेपजी-चुमार सड़क के निर्माण को आगे बढ़ाने के लिए सहमत नहीं थे. भारत उसी क्षेत्र में टिबल में अपनी निगरानी हट को ध्वस्त करने के लिए सहमत हुआ और वहां बंकर बनाने से परहेज किया.

बर्ट्स 2015: एक सप्ताह तक चलने वाला स्टैंड

2015 में उत्तरी लद्दाख के देपसांग मैदानों में बर्ट में भारतीय और चीनी सेना के बीच एक और गतिरोध हुआ. भारत-तिब्बत सीमा पुलिस द्वारा कथित तौर पर निगरानी के लिए बनाए गए अस्थाई झोपड़ी को बर्टसे में बनाया गया था. इसके बाद पीएलए ने क्षेत्र में बल के सुदृढीकरण के लिए तैयारी की और भारतीय पक्ष ने जैसे को तैसा के नीति के साथ जवाब दिया. जमीनी स्तर पर स्थानीय सेना के प्रतिनिधियों द्वारा एक सप्ताह के भीतर स्टैंड-ऑफ को हल किया गया थाय सरकारों द्वारा किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं पड़ी. इसके बाद भारतीय और चीनी सेनाओं ने चीन में एक प्रमुख आत्मविश्वास निर्माण उपाय के रूप में 12 दिवसीय संयुक्त सैन्य अभ्यास करने का निर्णय लिया गया.

डोकलाम 2017: 73 दिन का गतिरोध

डोकलाम लगभग 100 वर्ग किलोमीटर में फैला है और इसमें एक घाटी और एक पठार शामिल है. यह क्षेत्र भूटान की हा घाटी, तिब्बत की (चीन) चुम्बी घाटी और भारतीय राज्य सिक्किम से घिरा हुआ है. डोकलाम में 2017 में भारत, चीन और भूटान के बीच त्रिकोणीय टकराव का बिंदु बना. .यह जून 2017 में शुरू हुआ जब चीनी सेना के इंजीनियरों ने चीन और भूटान दोनों द्वारा दावा किया गया कि डोकलाम पठार के माध्यम से सड़क बनाने का प्रयास किया. 16 जून से 28 अगस्त तक 73 दिन का स्टैंड-ऑफ हुआ और केवल गहन राजनयिक वार्ता के हफ्तों के बाद हल किया गया था.

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भूटानी अधिकारियों के साथ भारतीय समन्वय के बाद सीमा के उस पार स्थित भारतीय सैनिकों ने हस्तक्षेप किया और चीनी क्रू को उनके ट्रैक पर रोक दिया. प्रारंभ में चीनी विदेश मंत्रालय ने मांग की कि भारत को एकतरफा अपने सैनिकों को वापस लेना चाहिए. अंततः दोनों पक्ष सहमत हो गए और 28 अगस्त को अपने पूर्व 16 जून की जगह पर वापस आने की घोषणा की.

Last Updated : Feb 11, 2021, 4:47 PM IST

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