नई दिल्ली: जर्मन नौसेना के प्रमुख वाइस एडमिरल अचिम शॉनबाच (Vice Admiral Kay-Achim Schönbach) ने मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (Manohar Parrikar Institute for Defence Studies and Analyses (MP-IDSA)) का दौरा किया और 'जर्मनी की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीति' (‘Germany's Indo-Pacific Strategy’) पर एक भाषण दिया. इस अवसर पर बोलते हुए, वाइस एडमिरल अचिम शॉनबाच ने कहा कि इस क्षेत्र में जर्मन युद्ध पोत एफजीएस बायरन (एफ217)की तैनाती जर्मनी के हिंद-प्रशांत क्षेत्रनीति दिशानिर्देशों के अनुरूप है. जो समुद्री सुरक्षा और सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हैं. इस क्षेत्र में अपनी सुरक्षा और रक्षा गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए जर्मनी की प्रतिबद्धता के बारे में बताते हुए, वाइस-एडमिरल ने कहा कि उनका देश खुले शिपिंग मार्गों, खुले बाजारों और मुक्त व्यापार का पक्षधर है. साथ ही डिजिटलाइजेशन, कनेक्टिविटी और मानवाधिकारों का भी समर्थन करता है.
भारत को इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बताते हुए वाइस एडमिरल अचिम शॉनबाच ने कहा कि दोनों देशों को नौसेना सहयोग को मजबूत करने और बढ़ाने के रास्ते तलाशने चाहिए. चीन पर विचार करते हुए उन्होंने कहा कि हालांकि बीजिंग भारत और जर्मनी दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार है, लेकिन इसके व्यवहार ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर दबाव डाला है. जर्मन फ्रिगेट जर्मन युद्ध पोत एफजीएस बायरन (एफ217)की तैनाती को इस क्षेत्र में जर्मनी के नए सिरे से रणनीतिक हित के रूप में देखा जाता है.
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इससे पहले अपने स्वागत भाषण में सुजान आर. चिनॉय, महानिदेशक, एमपी-आईडीएसए ने लगभग दो दशकों के बाद क्षेत्र में जर्मन नौसेना की वापसी को 'व्यापक रणनीतिक प्रभावों के साथ एक महत्वपूर्ण समुद्री घटना' बताया. एशिया में चल रहे बदलावों पर प्रकाश डालते हुए चिनॉय ने कहा कि वैश्विक आर्थिक विकास के पारंपरिक इंजनों के पश्चिम से पूर्व की ओर संक्रमण ने भू-रणनीतिक परिदृश्य को बदल दिया है. समृद्धि पर अब एशिया के किसी विशेष हिस्से का एकाधिकार नहीं है. यह अधिक व्यापक है और हिंद-प्रशांत क्षेत्रकी समावेशी अवधारणा को जन्म देता है. यह क्षेत्र पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैला हुआ है.
चीन पर बोलते हुए चिनॉय ने कहा कि बीजिंग की वर्तमान आर्थिक और सैन्य नीतियों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्रमें भू-आर्थिक और भू-रणनीतिक क्षेत्र में असर डाला है. उन्होंने कहा कि भारत की भौगोलिक स्थिति और पड़ोसी देशों के साथ बढ़ते व्यापार के कारण आर्थिक और रणनीतिक हितों पर समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ मिलकर नेविगेशन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की एक बड़ी जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि भारत और जर्मनी को मिलकर काम करना चाहिए.
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