हैदराबाद : आठ दिसंबर को भारत बंद बुलाया गया है. इससे पहले इसी साल 26 नवंबर को देशव्यापी बंद रखा गया था. 10 मजदूर संगठनों द्वारा बुलाई गई इस हड़ताल से देश को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ. दो सितंबर 2015 को बंदी की वजह से एक दिन में देश को 25 हजार करोड़ का नुकसान पहुंचा था. आइए जानते हैं आखिर कब-कब भारत बंद बुलाया गया और इसकी क्या वजहें थीं.
2018 में एससी-एसटी कानून पर बंद का आह्वान
दरअसल, 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में कहा कि 1989 के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का इस्तेमाल निर्दोष नागरिकों को 'ब्लैकमेल' करने के लिए किया जा रहा है. इसलिए लोक सेवकों और निजी कर्मचारियों को सुरक्षित रखने के लिए नया निर्देश जारी किया जा रहा है.
इसके मुताबिक इन अधिकारियों के नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित अनुमति के बाद ही इन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है. निजी कर्मचारियों के मामले में, संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को इसकी अनुमति देनी चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम को नागरिकों के खिलाफ पुलिस द्वारा शोषण या उत्पीड़न के लिए एक चार्टर में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है. एक निर्दोष नागरिक का उत्पीड़न, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो, कानून के खिलाफ है. शीर्ष अदालत ने यह भी निर्धारित किया था कि प्राथमिकी दर्ज होने से पहले एक प्राथमिक जांच की जानी चाहिए कि क्या यह मामला अत्याचार अधिनियम के मापदंडों के भीतर आता है और यदि यह अपमानजनक या प्रेरित है.
21 मार्च को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि वे इस फैसले की समीक्षा कर रहे हैं. कांग्रेस ने कहा कि इस फैसले की तुरंत समीक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि इससे दलित समुदाय के बीच असुरक्षा की भावना बढ़ेगी. सत्ताधारी दलों के दलित सांसदों ने कानून मंत्री से मिलकर तुरंत रिव्यू पिटीशन दायर करने की मांग की.
राष्ट्रीय गठबंधन ने एससी / एसटी (पीओए) अधिनियम को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह तेजी से कदम उठाए. लोक जनशक्ति पार्टी के संसदीय दल के प्रमुख चिराग पासवान ने कहा कि दलितों का सबसे मजबूत साधन चला गया.
छह सितंबर 2018 को मुख्य रूप से दलित समुदाय के सदस्यों ने विरोध रखा. विरोध प्रदर्शन में छिटपुट हिंसा भी हुई. हालांकि, सरकार ने समीक्षा याचिका दायर कर रखी थी.
सरकार ने अपनी समीक्षा याचिका में सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उसका 20 मार्च का फैसला एससी / एसटी समुदायों के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करेगा, इसलिए अधिनियम के प्रावधानों को बहाल करने का आदेश दें.
26 नवंबर, 2020 को भारत बंद
ट्रेड यूनियनों ने कृषि कानूनों के साथ अन्य कई मांगों को लेकर देशव्यापी बंद रखा. इसमें मुख्य रूप से 10 मजदूर संगठनों ने हिस्सा लिया था. ये थे - इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, हिंद मजदूर सभा, भारतीय व्यापार संघ का केंद्र, ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड सेंटर, एआईयूटीयूसी, ट्रेड यूनियन को-ऑर्डिनेशन सेंटर, सेल्फ-एम्प्लॉयड वुमेन्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस, लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन और यूनाइटेड स्टेट यूनियन कांग्रेस.
इनकी मुख्य मांगें थीं - कृषि कानून वापस हो. इनकम टैक्स नहीं देने वाले परिवारों के लिए 7500 रु प्रति माह की व्यवस्था की जाए. जरूरत मंद लोगों के लिए 10 किलो मुफ्त राशन दिया जाए. मनरेगा का दायरा बढ़े. इन्हें 200 दिनों का काम दिया जाए. सार्वजनिक कंपनियों का निजीकरण बंद हो. सभी नागरिकों के लिए पेंशन योजना लागू हो.