महामारी के दौर में मानवाधिकारों की सुरक्षा दुनिया के सामने चुनौती
मानव अधिकार दिवस 10 दिसंबर को दुनियाभर में मनाया जाता है. इस साल मानवाधिकार दिवस की थीम 'रिकवर बेटर- स्टैंड अप फॉर ह्यूमन राइट्स' (Recover Better -Stand Up For Human Rights) है.
मानव अधिकार दिवस
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Published : Dec 10, 2020, 8:16 AM IST
हैदराबाद: मानव अधिकारों का मूल उद्देश्य मानव की गरिमा को सुरक्षा प्रदान करना है. मानव अधिकार दिवस का उद्देश्य है- हर देश और क्षेत्र के निवासियों को गरिमामय जीवन जीने का अधिकार मिले और उनके अधिकारों को सुरक्षा प्राप्त हो. इस वर्ष मानवाधिकार दिवस का विषय कोविड-19 महामारी से संबंधित है, जिसका उद्देश्य मानवाधिकारों की प्राप्ति के प्रयासों के लिए केंद्रीय मानदंडों को बेहतर करना है.
हम अपने सामान्य वैश्विक लक्ष्यों को तभी हासिल कर सकते हैं, जब हम सभी के लिए समान अवसर बनाने में सक्षम होंगे. मानवाधिकार दिवस 2020 की थीम 'रिकवर बेटर- स्टैंड अप फॉर ह्यूमन राइट्स' (Recover Better -Stand Up For Human Rights) है. मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि किसी भी दूसरे कारक के आधार पर अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता.
10 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को अपनाने की घोषणा की थी. हालांकि यह घोषणा बाध्यकारी दस्तावेज नहीं है. इसमें 60 से अधिक मानव अधिकारों के साधनों को प्रेरित किया गया, जो आज मानव अधिकारों के सामान्य मानक हैं. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाने के लिए यूएन असेंबली ने सभी देशों को 1950 में आमंत्रित किया था.
10 दिसंबर ऐसा दिन है, जहां हमें अधिकारों के महत्व को समझाने के साथ इसके पुनर्निर्माण की भी आवश्यकता है, जिससे हमारे सपनों की दुनिया को फिर से बनाने में मदद मिलेगी.
चर्चा किए गए कुछ अधिकार
राइट टू
फ्रीडम फ्रॉम
फ्रीडम टू
समानता
भेदभाव
विश्वास और धर्म
जीवन, स्वतंत्रता, व्यक्तिगत सुरक्षा
दासता
विकल्प और जानकारी
दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाना
प्रताड़ना
शादी और परिवार
मनमानी गिरफ्तारी
खुद की संपत्ति
आराम और अवकाश
शिक्षा
दुनिया के केंद्र में होना चाहिए मानवाधिकार
कोविड-19 संकट ने गरीबी, बढ़ती असमानता, संरचनात्मक और मानव अधिकारों के संरक्षण में भेदभावों और अन्य अंतरालों को गहरा करने का काम किया है. केवल इन अंतरालों को कम करके मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने के उपायों को लागू करने से हम ऐसी दुनिया का निर्माण कर सकते हैं, जो बेहतर, अधिक लचीला, न्यायसंगत और टिकाऊ हो.
महामारी के बाद भेदभाव का खात्मा के लिए एक कदम
संरचनात्मक भेदभाव और नस्लवाद को इस महामारी में काफी बढ़ावा मिला है. समानता और गैर-भेदभाव कोरोना महामारी के बाद की दुनिया के लिए मुख्य आवश्यकताएं हैं.
संकट से उबरने के लिए हमें महामारी के दौर में बनी अनियमितताओं के बारे में लोगों को बताने की जरूरत है. इसके लिए हमें आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को बढ़ावा देने के साथ अधिकारों की रक्षा करने की जरूरत है. नए युग के लिए एक नए सामाजिक अनुबंध की आवश्यकता है
कोरोना महामारी के दौरान हमें सबसे अधिक प्रभावित और कमजोर लोगों के अधिकारों के लिए दुनिया के निर्माण में भागीदारी और एकजुटता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है.
हमें लोगों के लिए सतत विकास को प्रमोट करने की आवश्यकता है. मानवाधिकार, 2030 का एजेंडा और पेरिस समझौता एक आधारशिला है, जो सबको साथ लेकर चलता है.
भारत 2019 की मानवाधिकार रिपोर्ट भारत द्विसदनीय विधायिका के साथ एक बहुपक्षीय, संघीय, संसदीय लोकतंत्र है. 2017 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पांच साल के कार्यकाल के लिए चुना गया. 2019 के आम चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जीत के बाद नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने. पर्यवेक्षकों ने संसदीय चुनावों पर विचार किया, जिसमें 600 मिलियन से अधिक मतदाता शामिल थे, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष थे. हालांकि कुछ हिस्सों में हिंसा की अलग-अलग घटनाएं भी सामने आईं.
महत्वपूर्ण मानवाधिकार उल्लंघन में शामिल मुद्दे गैरकानूनी और मनमानी हत्याएं, जिनमें पुलिस द्वारा की गई असाधारण हत्याएं भी शामिल हैं. जेल अधिकारियों द्वारा यातना, सरकारी अधिकारियों द्वारा मनमानी गिरफ्तारी और निरोध, कठोर और जीवन खतरे में डालने वाली जेल की स्थिति, कुछ राज्यों में राजनीतिक कैदी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस पर प्रतिबंध, हिंसा की धमकी, पत्रकारों के खिलाफ अनुचित गिरफ्तारियां या अभियोग, सामाजिक मीडिया भाषण, सेंसरशिप, साइट अवरुद्ध करने के लिए आपराधिक परिवाद कानूनों का उपयोग, गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) पर अत्यधिक प्रतिबंधात्मक नियम, सरकार के सभी स्तरों पर व्यापक भ्रष्टाचार की लगातार रिपोर्ट, धार्मिक संबद्धता या सामाजिक स्थिति के आधार पर अल्पसंख्यकों को लक्षित करने वाली हिंसा और भेदभाव और बंधुआ श्रम सहित मजबूर और अनिवार्य बाल श्रम.
मानवाधिकार उल्लंघन को रोकने के सरकारी प्रयासों के बावजूद जवाबदेही की कमी से ऐसे मामलों में दण्ड नहीं मिल पाता है. अलग-अलग मामलों की जांच और मुकदमों के पंजीकृत होने के बावजूद शिथिल प्रवर्तन, प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों की कमी, कमजोर अदालत प्रणाली ने ऐसे मामलों में सजा की संख्या नाममात्र है.