नई दिल्ली : नए साल के आगमन के साथ एक चीज जो निश्चित रूप से तय है कि नई दिल्ली के पाकिस्तान के साथ संबंध यथावत रहेंगे उनमें खास बदलाव नहीं आना है. अफगान सरकार के पतन और उसके बाद तालिबान 2.0 के उदय के साथ, अफगानिस्तान को लेकर नई दिल्ली और पाकिस्तान के बीच की पहेली चिंता का विषय बनी रहेगी. 'ईटीवी भारत' से बात करने वाले विशेषज्ञों ने इस बात को रेखांकित किया कि यह संभावना नहीं है कि काबुल,आतंकवाद और जम्मू-कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर इस्लामाबाद और नई दिल्ली के बीच संबंध बदलेंगे. वजह पाकिस्तान ने आतंकवाद और चरमपंथ के माध्यम से अस्थिरता पैदा करने के लिए जिस तरह की शत्रुता और आतंकी गतिविधियां की हैं.
दक्षिण एशिया क्षेत्र में नवीनतम घटनाक्रम पाकिस्तान के लिए निरंतर और अटूट संकट को प्रकट करता है क्योंकि ड्यूरंड लाइन पर पाकिस्तानी सेना और तालिबान लड़ाकों के बीच कुछ संघर्ष हुआ है.
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने कहा है कि वह ड्यूरंड रेखा (Durand Line) पर पाकिस्तान को किसी भी तरह की बाड़बंदी की अनुमति नहीं देगी. सीमा पर बाड़बंदी के मुद्दे को लेकर दोनों पड़ोसी मुल्कों में बढ़ रहे तनाव के बीच अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी है.
जहां पाकिस्तान को ड्यूरंड रेखा पर सीमा पर तनाव का सामना करना पड़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ वह जम्मू-कश्मीर के खिलाफ अस्थिरता और आतंक पैदा करने के लिए इसका इस्तेमाल करने के लिए अपने क्षेत्र में आतंकी संगठनों का समर्थन और पनाह देना जारी रखे हुए है.
पाक-अफगान शत्रुता भारत के हित में नहीं : डॉ. स्वर्ण सिंह
जेएनयू में कूटनीति और निरस्त्रीकरण के प्रोफेसर डॉ. स्वर्ण सिंह (Dr. Swaran Singh) का कहना है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच निरंतर शत्रुता भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में नहीं हो सकती है. अभी यह पाकिस्तान और तालिबान के बीच एक समस्या हो सकती है लेकिन भारत को वास्तव में जागरूक होना होगा कि इस क्षेत्र में तनाव भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के लिए नुकसानदेय होगा.
उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान के लिए यह लगभग 20 वर्षों के बाद तालिबान के पुनरुत्थान के साथ एक जीत थी, लेकिन यह तालिबान के केंद्रीय नेतृत्व से किए गए वादे को पूरा करने में विफल रहा और वह था अंतरराष्ट्रीय वैधता प्राप्त करना.
जैसा कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद से इस्लामाबाद द्वारा समर्थित विद्रोही समूहों द्वारा कश्मीर घाटी में हमलों में वृद्धि देखी जा रही है, एक महत्वपूर्ण पहलू अनसुलझा है कि तालिबान द्वारा सुरक्षा तंत्र प्रभावित होगा.
डॉ. स्वर्ण सिंह यह भी कहते हैं कि भारत ने जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करके उसकी स्थिति को बदल दिया. पाकिस्तान और चीन एक शत्रुतापूर्ण रुख पर बने रहे और इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए, लेकिन यह नई दिल्ली के लिए एक सफलता है कि उसने किसी भी आक्रामक और विरोधी रुख को विफल करना जारी रखा. उन्होंने कहा, 'इसलिए पाकिस्तान और चीन की प्रतिक्रिया को प्रबंधित करना दर्शाता है कि भारत ने इस लिहाज से अच्छा प्रदर्शन किया है.'
यह पूछे जाने पर कि क्या इस बात की संभावना है कि भविष्य में नई दिल्ली तालिबान के साथ सीधे राष्ट्र में पाकिस्तान के पदचिह्न को दबाने के लिए जुड़ सकती है. प्रो स्वर्ण सिंह कहते हैं, 'मुझे नहीं लगता कि पाकिस्तान को दंडित करने या अलग-थलग करने के लिए भारत को तालिबान को किसी तरह से उलझाने पर विचार करना चाहिए. प्रत्येक राष्ट्र के अपने रणनीतिक और राष्ट्रीय हित हैं और इस अर्थ में नई दिल्ली का भी एक ही विचार है और वह है यह युद्धग्रस्त क्षेत्र को मानवीय सहायता प्रदान करने का इच्छुक क्यों है.'