नई दिल्लीःमार्च महीने को रंगों के त्योहार का महीना भी कहा जाता है, क्योंकि मार्च में होली के रंगों में रंगने की बेसब्री रहती है. हमारे देश में इस रंगों के पर्व को अलग-अलग तरीके से मनाए जाने की भी परंपरा है. उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन, गोकुल और बरसाना में लठमार होली खेली जाती है. पंजाब में होली को होला मोहल्ला पर्व के नाम से जाना जाता है. यह पवित्र धर्मस्थान श्री आनंदपुर साहिब (रूपनगर) में होली के अगले दिन मनाया जाता है. बिहार में होली को फगुआ और जोगीरा गीत के साथ मनाने का रिवाज है. दरअसल में होली खुलकर और खिलकर खेलने और कहने की परंपरा भी है. इसी तरह पहाड़ी राज्य उत्तराखंड और हिमाचल में भी होली मनाने की अनूठी परंपरा और रिवाज है जो देशभर में प्रचलित है. खास बात ये है कि पहाड़ की होली की मैदान की होली से तुलना की जाए तो दोनों ही अपनी अनोखी परंपरा के लिए प्रचलित हैं.
देशभर में पहाड़ की होली का अलग ही रंग है. सबसे पहले बात करते हैं हम उत्तराखंड की होली की. उत्तराखंड में होली का त्योहार नाच गाकर मनाया जाता है. उत्तराखंड की कुमाऊंनी होली देशभर में प्रचलित है. इसके भी कई रंग हैं यानी इसे कई प्रकार से मनाया जाता है. कहीं इसे बेठली होली तो कहीं खड़ी होली के नाम से मनाया जाता है. इसके अलावा कुमाऊं की महिला होली का भी बड़ा क्रेज होता है. खास बात ये है कि जब मैदान में होली का त्योहार दो से तीन दिन का होता है तो कुमाऊंनी होली के रंगों की खुशबू बसंत पंचमी के दिन से महकने लगती है. यह पर्व लगभग 2 महीनों तक चलता है. पहाड़ में होली ऋतु के आगमन दूसरी ऋतु के विदाई का पर्व के तौर पर भी मनाया जाता है.
उत्तराखंड में 2 महीने पहले ही होली का खुमार शुरू हो जाता है. बैठकी होली
बैठकी होली पारंपरिक रूप से कुमाऊं मंडल के अल्मोड़ा और नैनीताल में ही मनाई जाती रही है. बैठकी होली बसंत पंचमी के दिन से शुरू होती है. इसमें होली पर आधारित गीत घर की बैठक में राग रागनियों (होल्यार के रूप में ) के साथ हारमोनियम और तबले की थाप पर गाए जाते हैं. इन गीतों में मीराबाई से लेकर नजीर तथा बहादुर शाह जफर की रचनाएं सुनने को मिलती हैं. बैठकी होली में ठुमरियों का रस भी इस पर्व को और भी ज्यादा उत्साहित कर देता है.
बैठकी होली में हारमोनियम और तबले की थाप पर शास्त्रीय गीतों की महफिल सजती है. खड़ी होली
खड़ी होली का आयोजन बैठकी होली के कुछ दिनों बाद से शुरू होता है. इसका प्रसार कुमाऊं के ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलता है. खड़ी होली में गांव के लोग नुकीली टोपी, कुरता और चूड़ीदार पायजामा पहन कर एक जगह एकत्रित होकर होली गीत गाते हैं. साथ ही ढोल-दमाऊ और हुड़के की धुनों पर नाचते भी हैं. खड़ी होली के गीत, बैठकी के मुकाबले शास्त्रीय गीतों पर कम ही आधारित होते हैं और पूरी तरह कुमाऊंनी बोली में होते हैं. होली के गीत गाने वाले होल्यार बारी बारी गांव के प्रत्येक व्यक्ति के घर जाकर गीत गाते हैं और उनकी सुख समृद्धि की कामना करते हैं.
खड़ी होली में लोग नाच गाकर होली के उत्सव को मनाते हैं. महिला होली
कुमाऊं की महिला होली की धूम भी काफी होती है. प्रत्येक शाम बैठकी होली जैसी ही बैठकें लगती हैं लेकिन इनमें केवल महिलाएं ही भाग लेती हैं. इसके गीत भी प्रमुखत महिलाओं पर ही आधारित होते हैं. इसके महिलाएं गीतों की धुन पर नृत्य भी करती हैं. खास बात ये है कि इन होली में होल्यार अबीर-गुलाल का टीका नहीं बल्कि शास्त्रीय गीतों की परंपरा अपनाते हैं.
महिलाओं की बैठकी होली में सिर्फ महिलाएं ही शामिल होती हैं. उत्तराखंड से भिन्न नहीं है हिमाचल की होली
इसी तरह हिमाचल में भी होली की बड़ी धूम रहती है. हिमाचल में भी बसंत पंचमी के दिन से होली का त्योहार मनाए जाने लगता है. हिमाचल के कुल्लू की होली सबसे अहम मानी जाती है. देशभर की होली से एक दिन पहले कुल्लू में होली मनाने की परंपरा है. जबकि इसका आयोजन पूरे 40 दिन तक होता है. बसंत पंचमी पर भगवान रघुनाथ के ढालपुर आगमन के बाद से ही कुल्लू की होली का आगाज होता है. इसके बाद लगातार रघुनाथ मंदिर में होली गायन होता है. बैरागी कम्यूनिटी के लोग एक दूसरे के घरों व मंदिरों में जाकर होली मनाते हुए गुलाल उड़ाते हैं और होली के गीत गाते हैं. इसके बाद जब होली को 8 दिन शेष रहते हैं तो उस दिन से इस समुदाय की होली में होलाष्ठक शुरू होते हैं.
उत्तराखंड में बसंत पंचमी से होली का खुमार चढ़ने लगता है. ये भी पढ़ेंःHolashtak 2023 Beliefs : जानिए होलाष्टक की ज्योतिषीय व उससे जुड़ी अन्य मान्यताएं