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यहां होली पर होती है विभीषण की पूजा, चमत्कारी है 'घर के भेदी' का यह मंदिर

कोटा के कैथून कस्बे में लंकापति रावण के भाई विभीषण का विशाल मंदिर (Vibhishan Temple in Kota) स्थापित है. खास बात ये है कि विश्व भर में विभीषण का यह एक मात्र मंदिर है. हर साल होली पर यहां सात दिन का वृहद आयोजन होता है जिले और आसपास के लोग भी इसमें शामिल होते हैं. यही वजह है कि स्थानीय लोग मंदिर को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की मांग कर रहे हैं. इससे जुड़े तमाम कथानक भी प्रचलित हैं. पेश है इस अद्भुत मंदिर पर खास रिपोर्ट...

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Published : Mar 16, 2022, 10:53 PM IST

Published : Mar 16, 2022, 10:53 PM IST

विभीषण का विशाल मंदिर
विभीषण का विशाल मंदिर

कोटा:'घर का भेदी लंका ढाए' यह कहावत तो आपने जरूर सुनी होगी और इसमें घर का भेदी किसे कहा गया था यह भी भलीभांति जानते होंगे. जी हां, हम बात कर रहे हैं लंकापति रावण के भाई विभीषण की. शायद आपको यह जानकर अचरज होगा कि विश्व भर में कोटा एक मात्र ऐसी जगह है जहां विभीषण का विशाल मंदिर (Vibhishan Temple in Kota) स्थापित है. जानकारों का अनुमान है कि यह मंदिर हजारों साल पुराना है जिसमें दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा भी लगता है.

जिले के कैथून कस्बे के नजदीक विश्व का एकमात्र विभीषण मंदिर स्थापित है. इस अत्यधिक प्राचीन मंदिर में लगातार पूजा के लिए श्रद्धालु भी आते हैं. रावण से युद्ध में भगवान राम की मदद करने के चलते ही विभीषण की पूजा-अर्चना की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम के राजतिलक त्रेतायुग के बाद ही यहां पर यह मंदिर स्थापित किया गया था.

कोटा में होली पर होती है विभीषण की पूजा

कोटा जिले के कैथून कस्बे में विश्व का एकमात्र विभीषण मंदिर स्थित है, जिसे हजारों वर्ष पहले स्थापित किया गया था और वर्तमान में यह विस्तार ले चुका है. कैथून कस्बे में विभीषण मेला भी आयोजित किया जाता है जो होली उत्सव के दौरान आयोजित होता है. होली पर करीब 7 दिन तक यहां पर अलग-अलग आयोजन किए जाते हैं. जिनमें बड़ी संख्या में कोटा शहर, कैथून और आसपास के ग्रामीण इलाके से श्रद्धालु भी भाग लेते हैं. विभीषण मंदिर को लेकर कई मान्यताएं भी जुड़ी हैं.

भगवान शिव और हनुमान जी से जुड़ी है मंदिर की कथा
कोटा से ठीक 15 किलोमीटर दूर स्थित कैथून कस्बे में यह मंदिर है. मंदिर के पुजारी कालूदास का कहना है कि वह बीते 20 सालों से मंदिर में पूजा कर रहे हैं. इसके पहले दूसरे पुजारी थे. उन्होंने मंदिर की मान्यता के बारे में बताया कि लंका पर विजय के बाद भगवान राम का अयोध्या में राजतिलक हो रहा था और इसमें भाग लेने के लिए लंका नरेश विभीषण भी पहुंचे थे. यहां पर हनुमान जी और शंकर भगवान बात कर रहे थे कि वह यहां का आयोजन पूरा करने के बाद भारत के देव स्थानों का भ्रमण करेंगे. यह बात विभीषण ने सुनी तो उन्होंने कहा कि मैं आप दोनों को सभी देव स्थानों का भ्रमण कराऊंगा ताकि मैं भी वहां के दर्शन कर लूं.

विभीषण का मंदिर

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भगवान शिव और हनुमान जी की सहमति मिलने के बाद विभीषण ने अपने कंधे पर एक कावड़ ले ली. इसमें एक तरफ भगवान शंकर और दूसरी तरफ हनुमान विराजित हो गए. इस पर भगवान शंकर ने विभीषण से शर्त रख दी कि जहां भी आपका पैर जमीन को छू लेगा. हम यात्रा को खत्म कर देंगे. इसके बाद विभीषण दोनों भगवान को लेकर भारत भ्रमण के लिए निकले. कुछ स्थानों के भ्रमण के बाद में विभीषण का पैर कैथून कस्बे में धरती पर पड़ गया जिसके बाद उनकी यात्रा खत्म हो गई.

विभीषण का मंदिर

ऐसे में कावड़ का अगला सिरा करीब 4 कोस यानी 12 किलोमीटर आगे चारचौमा और दूसरा हिस्सा भी कोटा के रंगबाड़ी इलाके में था. यह भी करीब 12 किलोमीटर दूर है. ऐसे में रंगबाड़ी में भगवान हनुमान और चारचौमा में भगवान शंकर का मंदिर स्थापित हो गया. वहीं जहां पर विभीषण का पैर गिरा था, वहां पर विभीषण मंदिर का निर्माण करवा दिया गया.

हिरण्यकश्यप और विभीषण का पौराणिक कथाओं में जुड़ाव नहीं
मंदिर ट्रस्ट के फाउंडर मेंबर दुर्गा शंकर पुरी का कहना है कि वह करीब 50 साल पहले विभीषण मंदिर जाया करते थे. आसपास घना जंगल हुआ करता था. तब वहां पर ज्यादा कुछ नहीं था. केवल एक मूर्ति और चबूतरा बना हुआ था जिस पर एक छतरी भी लगी हुई थी. इसके बाद वहां एक संत आकर रहने लगे और उन्होंने स्थानीय लोगों की मदद से अखंड रामायण पाठ का आयोजन शुरू कर दिया. इसके बाद मंदिर का विकास होता रहा.

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1980 में उन्होंने विभीषण मेले का आयोजन शुरू किया. दुर्गा शंकर पुरी का मानना है कि वैसे तो विभीषण और हिरण्यकश्यप का पौराणिक कथाओं में जोड़ नहीं है, लेकिन होली के अवसर पर कैथून कस्बे में देव विमान निकाले जाते थे. यह विभीषण मंदिर के नजदीक स्थित कुंड पर जाते थे जिसमें केवल 20 से 25 लोग ही भाग लेते थे. उसी को देखते हुए होली के दिन हिरण्यकश्यप के पुतले को जलाने का आयोजन भी शुरू कर दिया गया. इसके बाद यह मेला विस्तार लेता गया.

मान्यताओं के अनुसार 5000 साल पुराना है मंदिर
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था. यह करीब 5000 साल पुरानी बात है. ऐसे में यह विभीषण मंदिर भी उनके राजा बनने के बाद ही स्थापित किए जाने का अनुमान है. स्थानीय लोगों का भी यह मानना है और यहां दर्शाए गए इतिहास में भी यही बताया गया है. हालांकि यह बोर्ड भी मंदिर ट्रस्ट के निर्देशन पर ही किसी व्यक्ति ने लगवाया है. स्थानीय लोगों की यह भी मांग है कि जब पूरे विश्व में यह विभीषण का एकमात्र मंदिर है तो इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलनी चाहिए.

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राम की मदद करने के कारण पूजे जाते हैं विभीषण
विभीषण मंदिर आने वाली 70 वर्षीय मोहिनी बाई जांगिड़ का कहना है कि उनकी शादी करीब 50 साल पहले हुई थी. तब यह मंदिर बिल्कुल छोटा सा था, लेकिन कैथून कस्बे के लोगों ने ही इसे बड़ा स्वरूप दिलवाया है. विभीषण के प्रति आस्था को लेकर मान्यता यह है कि वह प्रभु राम के भक्त थे और उन्होंने रावण से युद्ध में उनकी मदद की थी. रावण वध और लंका विजय में विभीषण ने अहम भूमिका निभाई थी. रावण के भाई होने के बावजूद विभीषण ने सत्य का साथ दिया था. इसीलिए विभीषण की पूजा की जाती है. मोहिनी बाई मानती हैं कि यह मंदिर चमत्कारी है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मांग जरूर पूरी होती है.

विभीषण का मंदिर

आयोजन में शामिल होते हैं हजारों श्रद्धालु
श्रद्धालु राहुल का कहना है कि वह काफी समय से मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं. बताते हैं कि विभीषण भगवान के परम भक्त थे, इसलिए उनमें उनकी अटूट आस्था है. उनका कहना है कि कैथून कस्बे के अधिकांश लोग साल में कई बार इस मंदिर में आते हैं. हालांकि मंदिर में रोजाना श्रद्धालुओं की संख्या दो दर्जन से ज्यादा रहती है, लेकिन विशेष आयोजन पर यहां हजारों लोग जुट जाते हैं. कैथून और आस पास के कस्बे के लोगों के लिए विभीषण मंदिर नया नहीं है क्योंकि वह बरसों से यहां आ रहे हैं. मंदिर के पास ही अशोक वाटिका भी बनाई गई है जहां धार्मिक आयोजन भी बड़ी संख्या में होते हैं.

कोरोना ने छोटा कर दिया आयोजन
कैथून नगर पालिका के उपाध्यक्ष और मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हरिओम पुरी का कहना है कि महामारी के कारण छोटे स्तर पर आयोजन किया जा रहा है. पिछले साल 2021 में महज 20 फीट के हिरण्यकश्यप की प्रतिमा का दहन किया गया था. इस साल आयोजन थोड़ा सा बड़ा है, लेकिन पहले की अपेक्षा 7 दिन का न होकर 3 दिन ही चलेगा. मेला भी नहीं हो रहा है. इस साल होली दहन के दिन मंदिर में भजन और जागरण होगा. इसके बाद धुलण्डी के दिन शोभायात्रा भी निकाली जाएगी. इसके साथ ही हिरण्यकश्यप के पुतले का भी दहन होगा. 19 मार्च को हाड़ौती केसरी दंगल आयोजित किया जाएगा.

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अगली बार फिर भव्य होगा आयोजन
मंदिर प्रबंधन से जुड़े रमेश चंद्र मेहरा का कहना है कि पहले सात दिवसीय आयोजन होता था. इसके बाद विभीषण मेला होली दहन के दिन से शुरू हो जाता था जो 7 दिन तक चलता था. इसमें सांस्कृतिक आयोजनों के साथ-साथ कवि सम्मेलन और अन्य कई कार्यक्रम होते थे. कई तरह की प्रतियोगिताएं भी होती थीं, लेकिन कोविड-19 के बाद से यह नहीं हो पा रहा है. इस बार सरकार ने अनुमति भी कुछ दिन पहले ही दी है. ऐसे में कोई तैयारी भी मंदिर प्रबंधन नहीं कर पाया है, लेकिन अगली बार सब ठीक रहा तो भव्य आयोजन होगा.

धीरे-धीरे हुआ मंदिर का विकास
विभीषण मंदिर का पुनरुद्धार 1980 के बाद ही शुरू हुआ. धीरे-धीरे यहां पर चहारदीवारी करवाई गई. इसके अलावा नजदीक स्थित कुंड का भी सार संभाल किया गया और पानी की व्यवस्था की गई और बगीचे लगाए गए. जब यह मंदिर प्रचलित हो गया, तब निरंतर धार्मिक आयोजन भी यहां पर होने लगे. धीरे-धीरे यहां पर श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती गई और ट्रस्ट को भी आमदनी होने लगी. इसके बाद मंदिर को भव्य रूप दिया गया. लगातार मंदिर में निर्माण कार्य जारी रहता है और अन्य भगवान की प्रतिमाएं भी यहां पर स्थापित की गईं हैं. इनमें भगवान गणेश, शंकर, हनुमान और अन्य देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं. स्थानीय लोगों की मांग है कि यह विश्वभर में विभीषण का एक मात्र मंदिर है तो इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी मिलनी चाहिए.

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