अहमदाबाद :आमतौर पर माना जाता है कि आजादी से पहले और बाद कश्मीर को लेकर सारे निर्णय जवाहर लाल नेहरू ने किए थे, लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका भी अहम थी. भले ही पटेल का कश्मीर से कोई नाता नहीं था लेकिन कश्मीर के फैसले लेते समय जवाहर लाल नेहरू उनसे बात जरूर करते थे. ऐसा कहना है इतिहास के जानकार हरि देसाई का.
कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किया गया है. कश्मीर का पूरा सच क्या था, इसे जानने के लिए 'ईटीवी भारत' ने इतिहास के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक हरि देसाई से बात की.
हरि देसाई ने बताया कि जून 1947 से दिसंबर 1948 तक यानी जम्मू कश्मीर हमारे साथ हो गया तब तक जवाहर लाल नेहरू और पटेल साथ-साथ ही थे. कश्मीर के मसले पर दोनों में आपसी राय थी. हमें जनता को सच बताना चाहिए. कैबिनेट ने कश्मीर को लेकर फैसला किया था. उस कैबिनेट में वह निर्णय पारित हुआ था जिसमें पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में सरदार पटेल, डॉ. भीमराव अंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी समेत कई लोग थे.
हरि देसाई ने बताया कि 1953 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी जो जनसंघ के संस्थापक भी थे, ने संसद में इसे स्वीकार किया था. हरि देसाई ने बताया कि नेहरू और पटेल में दृष्टिकोण अलग था, मतभेद जरूर थे, लेकिन उनमें पत्र व्यवहार होता था. हमें पता है कि कश्मीर के विलय के लिए पटेल महाराज हरि सिंह से बात कर रहे थे जबकि नेहरू शेख अब्दुल्ला से बात कर रहे थे. हरि सिंह के पास पाकिस्तान से जुड़ने का विकल्प भी था.
सरदार पटेल ने उनसे कहा था कि जो भी निर्णय लेना है 15 अगस्त 1947 तक कर लें. 22 अक्टूबर 1947 को जब पाक से हमला हुआ तो महाराजा के पास विकल्प ही नहीं था. तब उन्होंने भारत के साथ विलयपत्र पर हस्ताक्षर किए. इस दौरान नेहरू और पटेल साथ ही थे.
उन्होंने कहा कि ये कहना कि 370 केवल नेहरू का था, ये गलत है. महाराजा के दीवान ने इसे डाफ्ट किया, इसे सरदार पटेल ने पढ़ा. उन्होंने कहा कि इस बारे में वी. संकर जो सरदार पटेल के सेक्रेटरी थे उन्होंने दो वॉल्यूम संपादित किए हैं, उसमें इसका जिक्र है. कोई भी देख सकता है. पढ़ सकता है.