वाराणसी :शहर से लगभग 18 किलोमीटर दूर लोहता क्षेत्र के कोटवा इलाके में स्थित कब्रिस्तान में हिंदू समुदाय के लोगों को, आज से नहीं बल्कि सैकड़ों साल से दफनाए जाने की परंपरा निभाई जा रही है. यहां पर मौजूद सैकड़ों कब्र इस बात की गवाही देती हैं कि हिंदू समुदाय में भी शवों को दफन करने की परंपरा रही है.
लंबे वक्त से जारी है परंपरा
निरंकारी, कबीरपंथी और वह लोग जो बौद्ध धर्म को अपनाते हैं. उनमें शवों को भूमि समाधि देने की परंपरा है. इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए मोक्ष नगरी काशी के इस इलाके में बनाए गए हिंदू कब्रिस्तान में कबीर पंथ, बौद्ध संप्रदाय से जुड़े लोगों के शवों को दफनाने का सिलसिला लंबे वक्त से चला आ रहा है.
इस कब्रिस्तान की देखरेख का जिम्मा उठाने वाले बब्बन यादव का कहना है कि उनके दादा जी के पिता जी के समय से यह परंपरा देखने में आ रही है. लहरतारा, लोहता भरथरा, कोटवा, धनीपुर समेत बनारस में रहने वाले कबीरपंथी और बौद्ध संप्रदाय के लोगों को इस कब्रिस्तान में दफनाया जाता है.
कोरोना संक्रमण से मौत के बाद दर्जनों शवों को यहां पर दफनाने की प्रक्रिया अपनाई गई है. पूरी परंपरा हिंदू रीति रिवाज से अपनाई जाती है और शवों को कफन में लपेटकर कब्रिस्तान में बनाई गई कब्र में दफन किया जाता है. यानी ठीक उसी तरह जैसा कि प्रयागराज में गंगा तट पर देखने को मिलता है.