नई दिल्ली: अनुसंधान कार्य के लिए कथित तौर पर एक चीनी जहाज की श्रीलंका यात्रा के समय को लेकर कोलंबो और बीजिंग के बीच मतभेद पैदा हो गए हैं. वहीं परियोजना में एक प्रमुख श्रीलंकाई भागीदार ने सौदे से हाथ खींच लिया है. जहां चीन चाहता है कि जहाज शि यान- 6 को पहले की तरह 25 अक्टूबर को श्रीलंका में खड़ा किया जाए. वहीं श्रीलंका इस महीने कोलंबो में होने वाली हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) की बैठक का हवाला देते हुए इसे अगले महीने के लिए टालना चाहता है.
डेली मिरर अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे भी अपनी आगामी बीजिंग यात्रा के दौरान अपने चीनी समकक्ष शी जिनपिंग के साथ इस मामले पर चर्चा कर सकते हैं. नवीनतम घटनाक्रम अनुसंधान कार्य की आड़ में चीनी नौसैनिक जहाजों द्वारा श्रीलंकाई जलक्षेत्र में बार-बार दौरे ने भारत की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि नई दिल्ली भी इसके प्रभाव क्षेत्र में आता है. रिपोर्ट के मुताबिक भौगोलिक निकटता के कारण भारत की चिंताओं को देखते हुए श्रीलंका ने चीन से अपने क्षेत्रीय जल के उत्तरी हिस्से को जहाज की अनुसंधान गतिविधियों से बाहर करने का भी अनुरोध किया है. अमेरिका ने भी शि यान-6 की श्रीलंका यात्रा को लेकर चिंता जताई है.
पिछले महीने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र से इतर श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी के साथ बैठक के दौरान अमेरिका के राजनीतिक मामलों के अवर सचिव विक्टोरिया नूलैंड ने यह मामला उठाया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस मुद्दे पर श्रीलंका, जापान के दबाव में भी है. वहीं भारत, अमेरिका और जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ उस क्वाड का हिस्सा हैं जो जापान के पूर्वी तट से अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैले क्षेत्र में चीनी आधिपत्य के खिलाफ एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के लिए काम कर रहा है. चीनी नौसैनिक जहाजों को अपने जल क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देने के लिए श्रीलंका द्वारा भारत के लगातार विरोध के बाद भी श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रीय जलीय संसाधन अनुसंधान के अनुरोध के लिए शि यान-6 को हिंद महासागर द्वीप राष्ट्र के जल में प्रवेश करने की अनुमति दे दी. हालांकि, स्थिति स्पष्ट करने के लिए श्रीलंकाई विदेश मंत्री साबरी ने 26 सितंबर को कहा कि उनके देश ने अभी तक अक्टूबर में शि यान-6 को अपने जलक्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी है और कोलंबो और बीजिंग के बीच बातचीत चल रही है.
उन्होंने कहा कि जहां तक मुझे पता है, हमने (शि यान-6 को) अक्टूबर के दौरान श्रीलंका आने की अनुमति नहीं दी है. बातचीत चल रही है. भारतीय सुरक्षा चिंताएं, जो वैध हैं, हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने कहा कि हम अपने क्षेत्र को शांति का क्षेत्र बनाए रखना चाहते हैं. बता दें कि अनुसंधान कार्य की आड़ में श्रीलंका में चीनी जहाजों की मौजूदगी से भारत के परेशान होने का मुख्य कारण यह है कि ऐसे जहाजों के सैन्य उद्देश्य भी होते हैं. चीनी राज्य प्रसारक सीजीटीएन के अनुसार, शि यान-6 में 60 सदस्यीय चालक दल है. साथ ही यह वैज्ञानिक अनुसंधान पोत है, जिसके द्वारा समुद्र विज्ञान, समुद्री भूविज्ञान और समुद्रकी पारिस्थितिकी परीक्षण करता है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे जहाजों में समुद्र तल की मैपिंग करने की क्षमता होती है जो चीनी नौसेना को क्षेत्र में पनडुब्बियों को तैनात करने में मदद कर सकती है. 2022 में, जब युआन वांग 5 नामक एक चीनी सर्वेक्षण जहाज को हंबनटोटा बंदरगाह पर खड़े करने की अनुमति दी गई थी, तो भारत ने कड़ा विरोध किया था. हालांकि जहाज को एक अनुसंधान और सर्वेक्षण जहाज के रूप में वर्णित किया गया था.
सुरक्षा विश्लेषकों ने कहा कि यह अंतरिक्ष और उपग्रह ट्रैकिंग इलेक्ट्रॉनिक्स से भी भरा हुआ था जो रॉकेट और मिसाइल प्रक्षेपण की निगरानी कर सकता है. आर्थिक संकट के बीच देश छोड़कर भागने से एक दिन पहले तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने जहाज को खड़ा करने की अनुमति दी थी. फिर, इस साल अगस्त में एक चीनी जहाज जो अनुसंधान पोत होने का दावा कर रहा था जो कथित तौर पर पुनःपूर्ति के लिए कोलंबो बंदरगाह पर खड़ा हुआ. जबकि हाओ यांग 24 हाओ वास्तव में एक चीनी युद्धपोत निकला. 129 मीटर लंबे जहाज पर 138 लोगों का दल सवार थे और इसकी कमान कमांडर जिन शिन के पास है. एक मीडिया ब्रीफिंग में इसके बारे में पूछे जाने पर, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि भारत सरकार भारत के सुरक्षा हितों पर असर डालने वाले किसी भी विकास की सावधानीपूर्वक निगरानी करती है और उनकी रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करती है.