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Article 370 पर सुनवाई, सिब्बल बोले- जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण निर्विवाद था...है और हमेशा रहेगा - अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट जम्मू-कश्मीर से जुड़ा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज से सुनवाई शुरू हुई, जहां वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं की दलीलें पेश कीं. यह सुनवाई केवल सोमवार और शुक्रवार के अलावा रोजाना होगी.

hearing on pleas challenging abrogation of Article 370 in Supreme Court today Aug 2
उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर न्यायालय दो अगस्त से सुनवाई करेगा

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Published : Aug 2, 2023, 9:48 AM IST

Updated : Aug 2, 2023, 6:29 PM IST

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय में पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई हुई. प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ, पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा हटाने और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के 2019 के राष्ट्रपति आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई की. आज की सुनवाई में याचिकाकर्ता पक्ष ने अदालत द्वारा नियुक्त नोडल वकील के माध्यम से संविधान पीठ को एक नोट सौंपा है, जिसमें कहा गया है कि मौखिक बहस के लिए लगभग 60 घंटे लगेंगे.

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं के लिए दलीलें शुरू कीं, जिसमें न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल थे. सिब्बल, मोहम्मद का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. अकबर लोन ने कहा कि यह ऐतिहासिक है कि इस मामले की सुनवाई शुरू होने में पांच साल लग गए और पांच साल तक जम्मू-कश्मीर में कोई प्रतिनिधि लोकतंत्र नहीं रहा. उन्होंने सवाल किया कि क्या क्षेत्र के लोगों की इच्छा को इस तरह से खत्म कराया जा सकता है? सिब्बल ने इस बात पर जोर दिया कि जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण निर्विवाद था, यह निर्विवाद है, और यह हमेशा निर्विवाद रहेगा- जो कि दिया गया है. सिब्बल ने तर्क दिया कि लोकतंत्र को बहाल करने की आड़ में हमने लोकतंत्र को 'नष्ट' कर दिया है. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर ऐतिहासिक रूप से उन रियासतों के विपरीत एक अनोखे रिश्ते का प्रतिनिधित्व करता है जो संघ में एकीकृत हो गईं और उन्होंने सवाल किया कि क्या हम दो संप्रभुओं के बीच के अनोखे रिश्ते को इस तरह से खत्म कर सकते हैं?

सुनवाई के दौरान एक जगह सिब्बल ने ये भी कहा, "मैं राजनीति को बीच में नहीं लाना चाहता, जैसे ही मैं नाम लूंगा तो दूसरा पक्ष कहेगा कि नहीं, नहीं, नेहरू का इससे कोई लेना-देना नहीं था, मैं नहीं चाहता, यहां राजनीति प्रवेश करें...कोई राजनीति नहीं, मैं इस तरह के बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर किसी प्रकार का हंगामा नहीं चाहता." सिब्बल ने दलील पेश की कि राज्यपाल ने सत्ता में एक दल के हटने के बाद जून 2018 से जम्मू-कश्मीर विधानसभा को निलंबित रखा. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के संबंध में केंद्र के फैसले के खिलाफ तर्क देते हुए सिब्बल ने कहा कि रिश्ते को एक ऐसी प्रक्रिया के माध्यम से रातों-रात बदल दिया गया, जो असंवैधानिक थी और उन्हें संविधान की बुनियादी विशेषताओं का पालन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि आपात स्थिति, बाहरी आक्रमण के अलावा वे लोगों के मौलिक अधिकारों को निलंबित नहीं कर सकते. मामले में सुनवाई जारी है.

सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या एक निर्वाचित विधानसभा के लिए अनुच्छेद 370 को निरस्त करना संभव है, जिसने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया था. सिब्बल ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 370 को राजनीतिक माध्यम से खत्म कर दिया गया था, न कि संवैधानिक प्रक्रिया से. उन्होंने संविधान पीठ के समक्ष अनुच्छेद 356 का उद्देश्य पेश किया, जिसके तहत किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, एक अस्थायी स्थिति मानी जाती है और इसका उद्देश्य लोकतंत्र को नष्ट करना नहीं है. सिब्बल ने पीठ के समक्ष दलील दी कि अनुच्छेद 370 के खंड 3 में दर्शाया गया है कि संविधान सभा को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने में भूमिका निभानी चाहिए.

मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा कि भारत के प्रभुत्व की संप्रभुता की स्वीकृति सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए पूर्ण थी और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने केवल कुछ विधायी विषयों पर कुछ अधिकार सुरक्षित रखे थे. उन्होंने कहा कि खंड 3 में, राष्ट्रपति 370 हटाने का अधिकार होगा. सिब्बल ने जवाब दिया कि अनुच्छेद 370 के खंड 3 में, संविधान सभा का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है जो अनुच्छेद 370 को निरस्त करने में भूमिका निभाने के इरादे को दर्शाता है, और इस बात पर जोर दिया कि अदालत को उस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को देखना होगा जिसमें उन्होंने हस्ताक्षर किए थे. सिब्बल ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं करता कि वे भारत में एकीकृत हैं, लेकिन संवैधानिक प्रावधान के अधीन हैं.

गौरतलब है कि संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं. सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर पीठ आज से लगातार मामले की सुनवाई करेगी. सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, दुष्यंत दवे, शेखर नफाड़े, दिनेश द्विवेदी, जफर शाह, सी.यू. सिंह, प्रशांतो चंद्र सेन, संजय पारिख, गोपाल शंकरनारायणन, डॉ. मेनका गुरुस्वामी, नित्या रामकृष्णन, पी.वी. सुरेंद्रनाथ मामले में याचिकाकर्ताओं और अन्य हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश किये जाएंगे. वहीं, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मुख्य रूप से केंद्र सरकार का पक्ष रखेंगे.

बता दें कि इससे पहले पीठ ने 11 जुलाई को विभिन्न पक्षों द्वारा लिखित दलीलें और मामले की विवरणिका (कन्वीनिएंस कम्पाइलेशन) दाखिल करने के लिए 27 जुलाई की समय सीमा तय की थी. पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि सुनवाई सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर दैनिक आधार पर होगी. सोमवार और शुक्रवार शीर्ष अदालत में विविध मामलों की सुनवाई के दिन हैं. इन दिनों में केवल नई याचिकाओं पर ही सुनवाई की जाती है और नियमित मामलों की सुनवाई नहीं की जाती है.

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न्यायालय ने विवरणिका तैयार करने और इसे 27 जुलाई से पहले दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं और सरकार की तरफ से एक-एक वकील को नियुक्त किया था और यह स्पष्ट कर दिया कि उक्त तिथि के बाद कोई भी दस्तावेज स्वीकार नहीं किया जाएगा. एक विवरणिका अदालत को पूरे मामले का सार-संक्षेप देती है ताकि तथ्यों को शीघ्रता से समझने में सहायता मिल सके. पीठ ने कहा था कि पांच अगस्त 2019 की अधिसूचना के बाद पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर की स्थिति के संबंध में केंद्र की ओर से सोमवार को दाखिल हलफनामे का पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा संवैधानिक मुद्दे पर की जा रही सुनवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

इस याचिका पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने दिल्ली में कहा,'हमें न्याय मिलने की उम्मीद है. हम यहां जम्मू-कश्मीर के लोगों की ओर से इस उम्मीद के साथ आए हैं कि हम यह साबित कर सकते हैं कि 5 अगस्त, 2019 को जो हुआ वह असंवैधानिक और अवैध था.'

(अतिरिक्त इनपुट-आईएएनएस)

Last Updated : Aug 2, 2023, 6:29 PM IST

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