उदयपुर.राजस्थान के उदयपुर में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की ओर से 21 दिसंबर से आयोजित किए जाने वाले विश्व विख्यात शिल्पग्राम महोत्सव की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. 'शिल्पग्राम उत्सव' में गुजरात के धमाकेदार सिद्धि धमाल डांस ग्रुप रोंगटे खड़े कर देने वाले डांस से रोमांचित करने आ चुका है. यह डांस न सिर्फ हिंदुस्तान, बल्कि दुनियाभर के लाखों कला प्रेमियों के दिलों पर राज कर रहा है. यह इतना लयबद्ध और कोरियोग्राफिक है कि धूम-धड़ाके में भी दर्शकों को बांधने और ताल के साथ झूमने को मजबूर कर देने वाला. इतना ही नहीं, यह डांस कई टीवी रीएलिटी शो के साथ ही ओलंपिक और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों में भी अपनी छाप छोड़ चुका है. यह नृत्य सिद्धि समुदाय के लोग अपने पूर्वज बाबा हजरत की आराधना में करते हैं. यह समुदाय अफ्रीकी मूल के लोगों का है.
इसलिए प्रसिद्ध :दरअसल, इस डांस फोरम को सिद्धि समुदाय के लोक अफ्रीकी 'गोमा' म्यूजिक पर करते हैं. गोमा शब्द न्गोमा से बना है, जिसका अर्थ 'ड्रम्स' होता है. जाहिर है इस डांस में ड्रम के संगीत का अहम स्थान है. इसकी खासियत है इसका कॉस्टयूम, धमाकेदार संगीत और लयबद्ध नृत्य के साथ पेश किए जाने वाले करतब. डांस के दौरान तेज और धूम-धड़ाके वाला संगीत दर्शकों को लय में थिरकने को मजबूर कर देता है. इस डांस के लिए जो ड्रम बाबा की मजार पर रखा हुआ है, वह इतना बड़ा और भारी है कि उसे चार मजबूत आदमी ही उठा सकते हैं. इसलिए ये लोग कहीं परफोर्मेंस देने जाते हैं, तब मोडिफाइड यानी हल्का ड्रम ले जाते हैं.
सिर से नारियल फोड़ना :जब एक-एक कर डांस ग्रुप के सदस्य नारियल को हवा में कई फीट तक उछाल उसे सिर से फोड़ते हैं, तो दर्शक दांतों तले उंगली दबा लेते हैं. साथ ही, कुछ नर्तक मुंह से आग के गोले उगल दर्शकों को स्तब्ध कर देते हैं. फिर, इनका अफ्रीकी आदिवासियों के अंदाज की भाव-भंगिमाएं और अदाकारी दिलों को रोमांच से सराबोर कर देती है.
ये है इतिहास :माना जाता है कि करीब 1300 साल 628 ईस्वी में अफ्रीकी देशों मोंबासा, सूडान, तंजानिया, युगांडा आदि से विभिन्न कबीलों के लोग पहली बार भरूच पोर्ट पर उतरे थे. कुछ जानकार मानते हैं कि पुर्तगालियों ने अफ्रीकी कबीलों के बाशिंदों को जूनागढ़ के तत्कालीन नवाब को भेंट में दिया था. बहरहाल, इस समुदाय के अल्ताफ मसूद सिद्धि बताते हैं कि गुजरात में हजरत बाबा गोर ने इन कबीलाइयों को संगठित कर एक कबीला बनाया और समुदाय को 'सिद्धि' घोषित किया. यह वर्तमान में भरूच से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. कुछ जानकार 'सिद्धि' का अर्थ 'हब्शी' भी बताते हैं. बाबा हजरत जहां रहे, वह स्थान हजरत बाबा गोर कहलाया. सिद्धि समुदाय बाबा हजरत की अकीदत में हर साल जून या जुलाई महीने में इकट्ठा होकर उनकी आराधना करता है.