गोवर्धन पूजा को भगवान इंद्र पर भगवान कृष्ण की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है. कहा जाता है कि कार्तिक प्रतिपदा के दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की मदद से अपने गांव के लोगों को भगवान इंद्र के क्रोध से बचाते हुए अपना प्रभाव दिखाया था, जिससे इंद्र का अभिमान चूर-चूर हो गया था. इसी पूजा के जरिए भगवान कृष्ण ने अपने गांव में सभी को प्रचुर वर्षा के लिए प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाते हुए गोर्वधन के महत्व को समझाया था. तभी से ब्रजक्षेत्र समेत कई जगहों पर हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग इसे गोवर्धन पूजा व अन्नकूट के रूप में मनाते हैं.
गोवर्धन पूजा विधि (Govardhan Puja Vidhi)
गोवर्धन पूजा का मथुरा, वृंदावन व गोकुल के साथ साथ पूरे ब्रज क्षेत्र में खास महत्व है. इस दिन इन इलाकों में भगवान कृष्ण के साथ साथ गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का प्राविधान है. गोवर्धन पूजा को किसान खास तौर पर करते हैं. इसके लिए घरों में खेत की शुद्ध मिट्टी अथवा गाय के गोबर से लेपकर पूरा घर-द्वार और घर का आंगन साफ करते हैं. खेतों, दरवाजों व मंदिरों में गोवर्धन पर्वत या भगवान कृष्ण की गोवर्धन पर्वतधारी आकृति बनाकर उन्हें 56 भोग का नैवेद्य चढ़ाया जाता हैं, ताकि उनको खुश करके अपने मंगल की कामना की जा सके.
ऐसे करें गोवर्धन पूजा की तैयारी
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें.
- पुरुष पूजा सामग्री एकत्रित करके व अन्य तैयारियां करें.
- महिलाएं घर की रसोई में ताजे पकवान तैयार किए जाते हैं.
- घर के आंगन में या दरवाजे पर अथवा खेत में गोबर से भगवान गोवर्धन की प्रतिमा तैयार की जाती है.
- इसके साथ में गाय, भैंस, खेत खलियान, बैल, खेत के औजार, दूध दही एवम घी वाली चीजों को भी सम्मिलित किया जाता है.
- भगवान के नैवेद्य चढ़ाएं .
- इसके उपरांत भगवान कृष्ण व गोवर्धन भगवान की कथा सुनाएं.
- भगवान कृष्ण व गोवर्धन भगवान की आरती करें.
- पूजन खत्म होने के बाद आसपास में प्रसाद का वितरण करें.
- इसके पश्चात् पूरे परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करते हुए भोजन करें.
- गोवर्धन पूजा के जरिये खेती से जुड़ी सभी चीजों एवम प्राकृतिक संसाधनों की पूजा करें.
- गोवर्धन पूजा के जरिए प्रकृति के महत्व व संरक्षण का संदेश देने की कोशिश करें और लोगों को प्रेरित करें.
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