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2 सितंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया था अंतरिम सरकार का गठन - क्रिप्स मिशन

02 सितंबर 1946 में के दिन ही जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत की अंतरिम सरकार का गठन किया गया था. यह भारत के इतिहास में एकमात्र ऐसा कैबिनेट था जिसमें कट्टर प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने केंद्र में सत्ता साझा की थी. आखिरकार अंतरिम सरकार के गठन के क्या कारण थे और कैसे यह संभव हुआ? पढ़ें यह विशेष रिपोर्ट.

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Published : Sep 2, 2021, 5:55 PM IST

हैदराबाद : 02 सितंबर 1946 में के दिन ही जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत की अंतरिम सरकार का गठन किया गया था. इस सरकार में कांग्रेस व मुस्लिम लीग दोनों ने साझेदारी की थी. अंतरिम सरकार ने बड़ी स्वायत्तता के साथ काम किया और ब्रिटिश शासन के अंत तक सत्ता में रही. जिसके बाद भारत और पाकिस्तान के डोमिनियन ने इसे सफल बनाया.

भारत की अंतरिम सरकार के गठन के क्या कारण?

- 1942 में क्रिप्स मिशन से शुरू होकर भारत में एक अंतरिम सरकार बनाने के लिए औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा कई प्रयास किए गए.

- 1946 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली द्वारा भेजे गए ब्रिटिश कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों के बाद संविधान सभा के चुनाव हुए. इस चुनाव में कांग्रेस ने विधानसभा में बहुमत प्राप्त किया और मुस्लिम लीग ने मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपना समर्थन मजबूत किया.

- वायसराय वेवेल ने बाद में भारतीय प्रतिनिधियों से अंतरिम सरकार में शामिल होने का आह्वान किया.

- 1935 के भारत सरकार अधिनियम के तहत एक संघीय योजना की कल्पना की गई थी लेकिन भारत की रियासतों के विरोध के कारण इस घटक को कभी लागू नहीं किया गया. परिणामस्वरूप अंतरिम सरकार ने 1919 के पुराने भारत सरकार अधिनियम के अनुसार कार्य किया.

अंतरिम सरकार की अंतरिम कैबिनेट

- 2 सितंबर 1946 को कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई. 23 सितंबर को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने कांग्रेस कार्य समिति के फैसले की पुष्टि की.

- मुस्लिम लीग ने शुरू में सरकार से बाहर बैठने का फैसला किया और मुसलमानों के लिए आरक्षित पांच मंत्रालयों में से तीन पर आसफ अली, सर शफात अहमद खान और सैयद अली जहीर सभी गैर-लीग मुस्लिम प्रतिनिधियों का कब्जा था. हालांकि दो पद खाली रहे.

- लॉर्ड वेवेल द्वारा मुस्लिम लीग को सभी पांच आरक्षित विभागों को आवंटित करने के लिए सहमत होने के बाद में इसमें शामिल किया गया. अक्टूबर में नए मुस्लिम लीग के सदस्यों को समायोजित करने के लिए कैबिनेट में फेरबदल किया गया था. तब शरत चंद्र बोस, सर शफात अहमद खान और सैयद अली जहीर को पिछली टीम से हटा दिया गया था. बलदेव सिंह, सीएच भाभा और जॉन मथाई अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिनिधित्व करते रहे.

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कैबिनेट के कुछ महत्वपूर्ण फैसले

- 26 सितंबर 1946 को नेहरू ने सभी देशों और सद्भावना मिशनों के साथ सीधे राजनयिक संबंधों में शामिल होने के लिए सरकार के योजना की घोषणा की. उन्होंने उपनिवेश राष्ट्रों की स्वतंत्रता के लिए भी समर्थन व्यक्त किया.

- नवंबर 1946 में भारत ने अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन पर कन्वेंशन की पुष्टि की. उसी महीने सशस्त्र बलों के राष्ट्रीयकरण पर सरकार को सलाह देने के लिए एक समिति नियुक्त की गई थी. दिसंबर में मौलाना अबुल कलाम आजाद को कैबिनेट में शामिल किया गया था.

- वर्ष 1947 में भारत और कई देशों के बीच राजनयिक चैनल खुले. अप्रैल 1947 में अमेरिका ने भारत में अपने राजदूत के रूप में डॉ हेनरी एफ ग्रेडी की नियुक्ति की. यूएसएसआर और नीदरलैंड के साथ दूतावास स्तर के राजनयिक संबंध भी अप्रैल में शुरू हुए. मई में पहले चीनी राजदूत डॉ. लो चिया लुएन पहुंचे और कोलकाता में बेल्जियम के महावाणिज्य दूत को भारत में बेल्जियम का राजदूत नियुक्त किया गया.

- 1 जून को भारतीय राष्ट्रमंडल संबंध विभाग और विदेश मामलों के विभाग को मिलाकर विदेश मामलों और राष्ट्रमंडल संबंधों के एकल विभाग का गठन किया गया.

- 3 जून को विभाजन की घोषणा के बाद 5 जून को स्थिति से निपटने के लिए एक समर्पित कैबिनेट उप-समिति का गठन किया गया और इसमें जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभाई पटेल, लियाकत अली खान, अब्दुर रब निश्तार और बलदेव सिंह शामिल थे.

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- बाद में 16 जून को विभाजन के प्रशासनिक परिणामों से निपटने के उद्देश्य से एक विशेष कैबिनेट समिति बनाई गई. इसमें वायसराय, सरदार वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद, लियाकत अली खान और अब्दुर रब निश्तार शामिल थे. इस समिति को बाद में विभाजन परिषद द्वारा बदल दिया गया था.

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