नई दिल्ली :तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर किसानों का विरोध 87 दिनों के बाद भी जारी है. साथ ही सरकार और प्रदर्शनकारी किसान यूनियनों के बीच भी गतिरोध बना हुआ है. संयुक्ता किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच 11 विफल दौरों के बाद, दोनों पक्षों का कहना है कि वह वार्ता के लिए तैयार हैं, हालांकि अभी तक कोई औपचारिक प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है.
जहां किसान यूनियन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांगों पर अड़ी हुई हैं और एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी सुनिश्चित की मांग कर रही हैं, वहीं अखिल भारतीय किसान सभा, सीपीआईएम की किसान विंग किसान आंदोलन में सबसे आगे रही है और वाम दलों के बैकअप वाले संगठन ने तीनों कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन को आगे बढ़ाने में कामयाबी हासिल की है.
इस बीच ईटीवी भारत से बात करते हुए ऑल इंडिया किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धावले ने कहा कि सरकार इस आंदोलन के प्रति पहले दिन से प्रतिक्रियात्मक रूख अपना रही है.
वहीं 26 जनवरी को लाल किले पर हुई हिंसा को लेकर उन्होंने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि 26 जनवरी की हिंसा भी सरकार और इसके एजेंट्स की करतूत थी.
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार किसानों के साथ-साथ पत्रकारों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का दमन कर रही है.
किसान नेता ने आगे कहा कि जो भी किसान आंदोलन का समर्थन कर रहा है, सरकार उस पर कार्रवाई कर रही है.
अशोक धावले ने कहा कि देशभर में सरकार के खिलाफ आक्रोश सामने आएगा, लोकतंत्र की हत्या की जा रही है. 30 जनवरी को महात्मा गांधी की शहादत के दिन किसानों ने अपनी एकजुटता दिखाई.
उन्होंने कहा कि 6 फरवरी को संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से देशव्यापी चक्का जाम किया गया.14 फरवरी को पुलवामा के शहीदों के अलावा किसानों की मौत पर दिल्ली सीमा पर श्रद्धांजलि दी गई. इसके अलावा18 फरवरी को रेल रोको आंदोलन को भी देशभर में किसानों को समर्थन मिला.
उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली सीमा पर हजारों की संख्या में किसान आ रहे हैं, जिससे किसान आंदोलन मजबूत हो रहा है.