वाराणसी : कोरोना काल में लोग जीते जी दूर हो रहे हैं और जब कोई मर जाता है, तो मुट्ठी भर लोग उसे अंतिम विदाई देते हैं. कोरोना ने 'अपनों' को 'अपनों' से दूर कर दिया है. अब तो मरने के बाद चार कंधे देने के लिए श्मशान घाट पर कोई नहीं रहता. कोरोना अभी जिंदगी में कितना इम्तिहान लेगा, यह तय नहीं है. हालात यह हैं कि कोरोना संक्रमित मरीज के मौत के बाद शव के पास आने से सगे-संबंधी कतरा रहे हैं. शवों को कंधा देने वाला कोई नहीं है.
दो महाश्मशान, लेकिन मानवता शर्मसार
वाराणसी के दो महाश्मशान हरिश्चंद्र व मणिकर्णिका घाट पर इन दिनों कोरोना से मरने वालों का दाह संस्कार किया जा रहा है. हर रोज सैकड़ों शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है, लेकिन इन दोनों घाटों पर मानवता शर्मसार हो रही है. मोक्ष नगरी में अंतिम समय में चार कंधे भी शवों को नसीब नहीं हो रहे हैं. हालात यह हैं कि कोरोना से मरने वालों को चिता तक पहुंचाने के लिए कोई नहीं है. शवों की लंबी कतारें लगी हैं और जलाने के लिए मोल भाव किया जा रहा है.
मिल रहे भाड़े के कंधे
इस समय मोक्ष नगरी में शवों के दाह संस्कार के लिए भाड़े के कंधे का सहारा लेना पड़ रहा है. यह सुनकर आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन यही सच है. कोरोना ने अंतिम संस्कार की पुरानी परंपरा को ध्वस्त करके रख दिया है. रीति रिवाज के साथ कोरोना से मरने वालों का दाह संस्कार नहीं हो पा रहा है. अंतिम क्षणों में न तो सगे संबंधी श्मशान घाट पर मौजूद रहते हैं और न ही लोगों को अपने प्रिय को अंतिम बार देखने का मौका मिलता है.
आने वाले लोगों ने बयां किया दर्द
इस समय शवों को लेकर सौदा होने लगा है. श्मशान घाट पर शवों को उठाने के लिए मोल भाव करना पड़ता है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले एक छात्र के रिश्तेदार का निधन हुआ, तो वह दाह संस्कार के लिए हरिश्चंद्र घाट पहुंचा, लेकिन वहां मौजूद लोगों ने 3500 रुपये की डिमांड रखी. काफी देर तक मोल भाव करने के बाद 2 हजार रुपये पर सौदा हुआ. इसके बाद लाश को कंधा देकर चिता तक पहुंचाया गया.
ऐसी स्थिति वाराणसी के दोनों श्मशान घाटों पर देखने को मिल रही है. स्थानीय नागरिक अमित राय का कहना है कि 2 दिन पहले उनके मित्र की माता जी का देहांत हुआ. जब शव को लेकर घाट पर पहुंचे, तो वहां मौजूद लोगों को जानकारी हुई कि कोविड के चलते माताजी का देहांत हुआ है. इसके बाद शव को जलाने के लिए चार कंधे देने के लिए आना-कानी शुरू हो गई. कुछ लोगों ने रुपयों के लेन-देन की बात कही. जिसके बाद शव का अंतिम संस्कार संभव हो सका.