भोपाल। जीत की बधाई के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे नेताओं और सियासी दलों को किन्नरों की बधाई इस बार शायद ना मिल पाए. वजह ये है कि किन्नर किसी सियासी दल के एजेंडे में ही नहीं है, एमपी में किन्नर कल्याण बोर्ड से लेकर किन्नरों को सरकारी नौकरी में 3 फीसदी आरक्षण जैसे कई एलान हुए लेकिन अधूरे, वो भी उस प्रदेश में, जिस प्रदेश ने देश को पहला किन्नर विधायक दिया हो. सामाजिक सरोकारों को दम भरने वाले सियासी दलों की फेहरिस्त में किन्नर क्यों दर्ज नहीं हुए आखिर? ईटीवी भारत ने भारत निर्वाचन आयोग की ब्रांड अम्बेसडर ट्रांसजेंडर संजना सिंह से किन्नरों से जुड़े इन तमाम मुद्दों पर बात की.
कौन हैं ब्रांड अम्बेसडर संजना सिंह:संजना भोपाल के मंगलवारा के किन्नर दायरे से ताल्लुक रखने वाली ट्रांसजेंडर हैं, उन्होंने 12वीं के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी. फिलहाल वे आज सोशल एक्टिविस्ट के साथ भोपाल जिला कोर्ट में पैरालीगल वॉलेंटियर हैं. खास बात ये है कि वे भारत निर्वाचन आयोग की ओर से ब्रांड अम्बेसडर भी हैं और किन्नर समाज के अलावा अलग-अलग समाजों में जाकर वोट करने की अपील भी करती हैं. (EC Brand Ambassador Sanjana Singh)
क्या कीमती नहीं है थर्ड जेंडर का वोट?ईटीवी भारत ने ट्रांसजेंडर संजना सिंह ने जब किन्नरों के मुद्दे पर बात की तो उन्होंने कहा कि सरकारी नौकरी में 3 फीसदी आरक्षण किन्नर कल्याण बोर्ड जैसे कई वादे और प्रस्ताव रखे गए, लेकिन अमल में कुछ भी नहीं आया. संजना कहती हैं हर वर्ग के लिए पहल की जाती है, स्त्री और पुरुष के लिए कुछ ना कुछ होता हैस लेकिन यहां किन्नरों को अनदेखा कर दिया जाता है. वे कहती हैं "3 फीसदी आरक्षण कहां है, मुझे नहीं पता. किन्नर कल्याण बोर्ड का गठन हो गया होता तो आज किन्नरों की स्थिति ही कुछ और होती."
किन्नरों को आर्थिक संबल मिले तो क्यों मांगे बधाई: संजना किन्नरों की आर्थिक हालत पर इशारा करते हुए कहती हैं कि "अब बधाई मिलना भी मुश्किल हो रहा है. लेकिन देखिए महिलाओं को लाड़ली बहना योजना में जैसे राशि दी जा रही है, उसमें किन्नरों के लिए कोई प्रावधान नहीं है. यहां तक कि हमें आयुष्मान कार्ड, राशन कार्ड बनवाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है. ऐसी कोई योजना हमारे लिए नहीं है, अगर आर्थिक रुप से किन्नरों को भी योजनाओं से जोड़ दिया जाए तो स्थिति बदल जाएगी."