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जम्मू कश्मीर में 149 साल पुरानी दरबार मूव की परंपरा खत्म - दरबार मूव की परंपरा खत्म

जम्मू कश्मीर में उपराज्यपाल प्रशासन ने सचिवालय के कर्मचारियों को 21 दिनों के भीतर जम्मू और श्रीनगर में आवंटित सरकारी आवास खाली करने का आदेश दिया है. जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में 149 साल पुरानी दरबार मूव (Darbar Move) की परंपरा को खत्म करते हुए ऐसा किया गया है.

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा

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Published : Jun 30, 2021, 8:21 PM IST

श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने दरबार मूव से जुड़े सचिवालय के कर्मचारियों को तीन सप्ताह के भीतर जम्मू और श्रीनगर में सरकारी आवास खाली करने का नोटिस जारी किया है.

उपराज्यपाल प्रशासन ने बुधवार को जारी एक आदेश में जम्मू-कश्मीर में 149 साल पुरानी परंपरा को खत्म करते हुए सचिवालय के कर्मचारियों को 21 दिनों के भीतर जम्मू और श्रीनगर में आवंटित सरकारी आवास खाली करने का आदेश दिया.

इस संबंध में राज्य विभाग के आयुक्त, सचिव एम. राजू की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि सचिवालय में सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को सौंपे गए आवासीय क्वार्टरों को रद्द करने की मंजूरी दे दी गई है. तीन सप्ताह के भीतर क्वार्टर खाली कर दिए जाएं.

ऐसे में माना जा रहा है कि ई-सिस्टम की शुरुआत के साथ, अब जम्मू और श्रीनगर में फाइलों को स्थानांतरित किए बिना पूरे साल सचिवालय में एक साथ काम करना संभव है.

उपराज्यपाल ने दिए थे संकेत

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 20 जून को घोषणा की थी कि दोहरे हस्तांतरण को समाप्त करने से 200 करोड़ रुपये की बचत होगी और धन का उपयोग युवाओं के कल्याण के लिए किया जाएगा.

सिविल सचिवालय ने जम्मू-कश्मीर में दो पालियों में काम किया - जम्मू की शीतकालीन राजधानी में छह महीने और श्रीनगर की ग्रीष्मकालीन राजधानी में छह महीने, लेकिन अब ई-सिस्टम की शुरुआत के साथ दरबार मूव की 149 साल पुरानी परंपरा खत्म हो गई.

जानिए क्या है दरबार मूव

जम्मू और कश्मीर में दो राजधानियों-श्रीनगर और जम्मू में हर साल सचिवालय स्थानांतरित किया जाता है. मई में श्रीनगर और अक्टूबर-नवंबर में जम्मू. दरबार मूव या राजधानी के परिवर्तन की यह पारंपरिक प्रथा 1872 से प्रचलन में है, जब डोगरा के पूर्व शासक महाराजा रणबीर सिंह ने इसे शुरू किया था. इस पर 200 करोड़ से अधिक का व्यय किया जाता है.

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पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने 1987 में इस प्रथा को रोकने की कोशिश की थी, जब उन्होंने श्रीनगर में सचिवालय को पूरे साल खुला रखने के आदेश जारी किए थे. हालांकि, इस फैसले ने जम्मू क्षेत्र में एक नाराज प्रतिक्रिया पैदा की, जहां वकीलों और राजनीतिक दलों ने इसके खिलाफ आंदोलन किया और अब्दुल्ला को अपना निर्णय रद करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

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